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मंगलवार, 22 सितंबर 2009

वतन के एक आशिक़ का ख़त "एक चिट्ठी देश के नाम"


मेरे अज़ीज़ वतन, 
मेरी जान-ए-जानां वतन तूने इस बार भी हर बार की ही तरह अपनी आज़ादी का जश्न जोश-ओ-खरोश से मनाया. तुझे ये भी खूब-तर याद है कि तेरे साथ तेरे अत्फालो ने भी इस रोज कितनी खुशिया मनाई, कितना जश्न किया, और हां याद आया इस बार तेरे एक तिफ्ल जो तेरे किरदार को बखूबी निभा रहे हैं "डॉ.मनमोहन सिंह" ने हर बार की तरह तेरी जमीन के एक अदना से तुकडे पर बनी ईमारत जिसे हम "लाल किला" कहते है, उस पर तेरा अलामत "तिरंगा" लहराया, आफताब की तेज चकाचोंद के दरमिया तिरंगा हर बार की तरह ही हसीन और महजबीं लग रहा था.


दिलबर वतन तेरा हाल पूछने की हिमाकत हम नहीं करेंगे क्योंकि हमें भी इल्म है कि तेरी हालत क्या है तू कैसा है फिलहाल के दिनों में, मगर हमें ये बताते हुए काफी सुकून मिल रहा है कि अब हम फिरंगियों के चाकर नहीं रहे है. हम अपने देसी हुकाम्मारानो के चाकर बन गए है. हां ये है वो भी उन गोरो से कुछ कम नहीं अगर हम ये कहे कि तेरी हुकूमत चलाने वाले नेता फिरंगियों से चार कदम बढे लगते है तो इस में कोई हेरानी नहीं होनी चाहिए, पर हर बार की ही तरह कुछ बुरे तो कुछ काबिल नेता इस बार भी तेरे चिराग को तमाम जहाँ में जलाये हुए है.

वतन याद है तुझे वो 14 अगस्त वाली शब्, जब तेरा तिफ्ल "नेहरू" तेरी बाग़-डोर सँभालने के लिए बेकरार थे, सच मानो वतन उस रोज भगत, राज गुरु, सुख देव, लाला लाजपत, चन्द्र शेखर, भाभी दुर्गा, रानी लक्ष्मी बाई, मंगल, सुभास चन्द्र बोस, और तमाम वतन परस्तो की आत्माओं ने फूलो की बरसात की थी, सहर की पहली किरण के साथ ही जब ऐलान हुआ कि तू आजाद हो गया है, तब करमचंद गांधी, वलभ भाई पटेल, साथ में नहरू, जाकीर हुसेन, और हां जिन्ना ने तमाम वतन को मानो घर जा जा कर ये खुशखबरी दी थी, देख वो कितना हसीन दिन था, हां पर 14 अगस्त की सहर की दास्ताँ हमें भुलाए नहीं भूलती जब चंद हुकाम्मारानो ने तेरे दो हिस्से कर दिए थे, वो भी तेरे ही अत्फाल थे जो तुझसे दूर हो गए.

आज भी वही शब् है वही सहर है और साथ में एक लम्बा दौर, एक लम्बा अरसा जिसको बीते हुए आज कु-बा-कु 62 साल का एक लम्बा वक़्त जाते जाते चला गया है, तुझे दिल का हाल बताऊ तो जो दिक्कते तब पेश-ए-खिदमत थी आज वो दिक्कते तो नहीं है मगर और भी बहुत सी मुश्किलें हमारे दरमियाँ आगई है, हां ये भी पुराने वाली दिक्कते अभी यु की यु बरकरार है मगर कुछ जरा सी रियायत भी मिली है इस में कोई दो राय नहीं, और तुझे बताऊ हम भी अब तरक्की की ओर निकल लिए है राह को पकडे पकडे.

बीते 62 सालो में जहाँ हमने बहुत सी कामयाबियाँ पाई, वही हम अपनी अज़ीज़ दिलकशी मान मर्यादा भूल गए है, तुझे बताते हुए तो शर्म के मारे गर्दन जमीं में धसी जाती है कि फिलहाल के ज़माने में इंसानों को valentine Day तो याद रहता है मगर तेरे अलामत तिरंगे में कितने रंग कौन सा कहाँ कहाँ है तक याद नहीं रहता है, कहते हुए एतराज तो है मगर कहना लाजमी है जहाँ आज के बशर पहली जनवरी को त्यौहार सा मानते है वहां तेरी सालगिरा किसी किसी को याद रहती है, सुना है आज कल इंसान ज्यादा मसरूफ रहने लगे है सो तेरे लिए मेरे लिए अब इन के पास वक़्त नहीं ना बचा है. इस गम जदा बात पर ख़याल यूं जोर मारते है और कहते है :-


वो वक़्त खो गया जब इंसानियत का दौर था
हां हमने माना हुजुर वो हेवानियत का दौर था


हां हमें ये बताते हुए भी कोई हर्ज नहीं कि नए ज़माने में जहाँ हम नए नए मुद्दे उठा रहे है, वहां हमारे पास वलीद और अम्मा को देने के लिए चंद पल फुर्सत के निकाले नहीं निकलते. इस ही लिहाज से ख़याल किया जा सकता है कि फिर हम कहाँ तेरे लिए सोचने की भी जहमत उठाते होंगे, कहते हुए शर्म आती है मगर ये सवाल चीख चीख कर कह रहा है कि ये कैसी मसरूफियत है जो हमें सब से दूर किये जा रही है और हमारे पास कोई जादू की कलम नहीं जो हम लिखे और वो हो जाए, हमारे पास है तो बस एक इन्तजार जिसको करो और बस करते जाओ की कभी तो हर बशर को अपना राहबर मिलेगा और उन्हें अपना अहम् मकसद तलाश करने में मदद करेगा :-


मेरे अज़ीज़ हिंदोस्ता को बचा ले अब कोई
उन शहीदों सी आग सीने में लगा ले अब कोई 

वतन, अब और तब में शब् और सहर सा अंतर आगया है, जहाँ इंसान आज़ादी का दिन बड़े धूम धाम से मनाया करते थे आज वही नए ज़माने के इन्सान इस रोज आराम करने और छूटी का मजा उठाने की सोचते है, तब जहाँ हर घर से एक देश भक्त, एक भगत, एक अशफुल्ला, निकला करता था मौत को गले लगाने हस्ते हस्ते, आज उन्ही घरो के दर-ओ-दरवाजे 14 अगस्त की सहर ढलते ही बंद हो जाया करते है, जो खुलते है तो बस बाजार से कुछ साज-ओ-सामान लाने के लिए, अब मरने मिटने की बात पर लोग हँसी उडाया करते है, साथ ही साथ पागल दीवाना होने का तमगा भी माथे पर लगा दिया करते है.

मेरे अहबाब, मेरे अज़ीज़, मेरे वतन ये सब बताने की हिम्मत तो में जुटा ना पता गर् तेरी माटी में पैदा ना हुआ होता तो, मेरे दोस्त, मेरे हमदम, मुझे इतना मान, इतना इश्क, इतना प्यार देने के लिए हम बड़े शुकरगुजार है तेरे, मेरे दिलबर, मेरे प्यारे वतन देख हम मानते है सच कड़वा होता है मगर होता सच ही है, देख मेरी इस नादानी से नाराज ना हो जाना कही, बस हमने जरा सा पर्दा खोला है उस रोज की आज़ादी का और इस रोज की आज़ादी का और इस में उस में क्या क्या अंतर आये है, ये माना अच्छे से ज्यादा कुछ बुरा सा ही हुआ है मगर हमने आजाद होकर बहुत सी तरक्किया पाई है उन सब का तुझे बखूबी इल्म है कि हम किन दस्तावेजो से तुझे मुखातिब करा रहे है.

यूं तो शब् का पिछला पहर चल रहा है मगर तेरे इस ख़त को मुक्कम्मल करने के लिए हमने भी जिगर में लो सी बाली हुई है जो इस सर्द रात में भी हमें इस ख़त को मुक्कम्मल करने की हिम्मत दे रही है. फिर से तुझे याद दिलाना चाहता हूँ कि हम तेरे बहुत शुक्रगुजार है कि तूने हमें अपनी माटी नसीब होने दी वरना हम तो इंसान होने के भी लायक नहीं थे, बस खुदा-ए-परवर, भगवान्, वाहे गुरु, से ये ही दुआ है की तू " हिन्दुतान" मेरे प्यारे, अज़ीज़, दिलबर, जान-ए-जानां वतन हमेशा खुशियों से लाबा लब रहे, तेरे दरख्तों पर शब्-ओ-सहर नए बर्ग-ओ-बार आये, तू गुलाब की तरह महकता रहे, तेरा नाम तमाम जहान में बड़े ही अदब से हमेशा लिया जाए, तू हम सब के दिलो पर रहता है, रहता था, और रहमत-ए-खुदा हमेशा रहेगा भी, ए वतन तेरे जवाब का इन्तजार बड़ी बेसब्री से रहेगा...


अब तेरे जवाब का बेसब्री से इन्तजार रहेगा
जियें या मर जाए फिर भी तुझसे प्यार रहेगा



जल्द ही इस ख़त का जवाब लिख भेजना मेरे अज़ीज़, मेरे प्यारे वतन, तेरे ख़त के इन्तजार में, तेरा अत्फाल, तेरा आशिक...

[दीपक पंवार "बेदिल"]
लेखक का ब्लॉग:  एज़ाज-ए-बेदिल
 

*-*-*
उल्टा तीर पर "एक चिट्ठी देश के नाम" कड़ी में दीपक पंवार 'बेदिल' की यह आखिरी चिट्ठी पढिये और अपनी अमूल्य राय दीजिए! इस चिट्ठी का हर सवाल आपसे जवाब मानंगे की एक अपील है! आशा है हम हमारे देश को  उत्तरित करेंगे! [उल्टा तीर]

5 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे अज़ीज़ हिंदोस्ता को बचा ले अब कोई
    उन शहीदों सी आग सीने में लगा ले अब कोई

    यूं तो शब् का पिछला पहर चल रहा है मगर तेरे इस ख़त को मुक्कम्मल करने के लिए हमने भी जिगर में लो सी बाली हुई है जो इस सर्द रात में भी हमें इस ख़त को मुक्कम्मल करने की हिम्मत दे रही है

    बहुत बढ़िया चिट्ठी है,

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  2. आज तो यह दर्द lagbhag हर bharatvasee के दिल का दर्द है....पर इसका जवाब koun dega???

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  3. जैसे अपने घरकी सफाई के लिए हम खुद ज़िम्मेदार होते हैं ..उसी तरह वतन के हालात के लिए लोक तंत्र में हम खुद ज़िम्मेदार होते हैं ..."आईये हाथ उठायें हम भी , हम , जिन्हें रस्मो दुआ याद नहीं , रस्मे मुहोब्बत के सिवा कोई बुत कोई खुदा याद नहीं ..."

    http://shamasamnsmaran.blogspot.com

    http://lalitlekh.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    Haan, chitthee behtareen hai....bade manse, kasak liye likhee gayee hai..

    जवाब देंहटाएं
  4. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आप मेरे ब्लॉग पर आए और टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बिल्कुल सही मुद्दे को लेकर बहुत ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है ! आपकी लेखनी को सलाम!

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  5. बेदिल जी का ख़त अभी तक आपके सभी लेखो मे बेहद प्रेरित ख़त लगा लेखक ने जो कुछ भी कहा बिलकुल दिल और दिमाग से लिखा जो उनकी मेहनत को दर्शाता है अमित जी आपको बहुत बधाई की अब ये कहतो का सिलसिला दोबारा उल्टा तीर के लिए जीवन दान लेकर आया और हम भी खुश नसीब है हमारा लिखा कोई तो पढ़ रहा है

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)