घरेलू हिंसा का मुख्य कारण पुरूषवादी सोच होना है और स्त्री को भोग की विषय वस्तु बनाना है। सामंती युग मेंराजा-महाराजाओं के हरम या रनिवास होते थे जिसमें हजारो-हजारो स्त्रियाँ रखी जाती थी । पुरूषवादी मानसिकता मेंस्त्री को पैर की जूती समझा जाता है इसीलिए मौके बे मौके उनकी पिटाई और बात-बात पर प्रताड़ना होती रहती है . समाज में बातचीत में स्त्री को दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती की संज्ञा दी जाती है किंतु व्यव्हार में दोयम दर्जे का व्यव्हारकिया जाता है कुछ देशों की राष्ट्रीय आय का श्रोत्र देह व्यापार ही है ।
समाज व्यवस्था में स्त्रियों को पुरुषों के ऊपर आर्थिक रूप से निर्भर रहना पड़ता है जिसके कारण घरेलू हिंसा का विरोधभी नही हो पाता है आज के समाज में बहुसंख्यक स्त्रियों की हत्या घरों में कर दी जाती है और अधिकांश मामलों मेंसक्षम कानून व पुरुषवादी मानसिकता के कारण कोई कार्यवाही नही हो पाती है । स्त्रियों को संरक्षण के लिए जितने भीकानून बने हैं वह कहीं न कहीं स्त्रियों को ही प्रताडित करते हैं , जब तक 50% आबादी वाली स्त्री जाति को आर्थिक स्तरपर सुदृण नही किया जाता है तबतक लचर कानूनों से उनका भला नही होने वाला है ।
यह पोस्ट उल्टा तीर पर चल रही बहस घरेलू हिंसा के लिए लिखी गई है और इसका शीर्षक यह इसलिए रखा गया है कीमुझे इन्टरनेट पर पत्नी पीड़ित ब्लागरों की यूनियन बनाने की बात की पोस्ट दिखाई दी थी इसलिए पत्नी पीड़ितचिट्ठाकारों से क्षमा मांग ली गई है ।
मानसिकता बदलने की जरूरत है भारतीय कानूनमें 498 ए आई पी सी में दंड की व्यवस्था की गई है किंतु सरकार ने पुरुषवादी मानसिकता के तहत एकनया कानून घरेलु हिंसा अधिनियम बनाया है जिसका सीधा-सीधा मतलब है पुरुषों द्वारा की गई घरेलू हिंसा से बचावकरना है इस कानून के प्राविधान पुरुषों को ही संरक्षण देते हैं.
समाज व्यवस्था में स्त्रियों को पुरुषों के ऊपर आर्थिक रूप से निर्भर रहना पड़ता है जिसके कारण घरेलू हिंसा का विरोधभी नही हो पाता है आज के समाज में बहुसंख्यक स्त्रियों की हत्या घरों में कर दी जाती है और अधिकांश मामलों मेंसक्षम कानून व पुरुषवादी मानसिकता के कारण कोई कार्यवाही नही हो पाती है । स्त्रियों को संरक्षण के लिए जितने भीकानून बने हैं वह कहीं न कहीं स्त्रियों को ही प्रताडित करते हैं , जब तक 50% आबादी वाली स्त्री जाति को आर्थिक स्तरपर सुदृण नही किया जाता है तबतक लचर कानूनों से उनका भला नही होने वाला है ।
किसी भी देश का तभी भला हो सकता है जब उस देश की बहुसंख्यक स्त्रियाँ भी आर्थिक रूप से सुदृण होहमारे देश को बहुत सारे प्रान्तों में स्त्रियाँ 18-18 घंटे तक कार्य करती हैं और पुरूष कच्ची या पक्की दारूपिए हुए पड़े रहते हैं उसके बाद भी वो कामचोर पुरूष पुरुषवादी मानसिकता के तहत उन मेहनतकशस्त्रियों की पिटाई करता रहता है । घरेलु हिंसा से तभी निपटा जा सकता है जब सामाजिक रूप से स्त्रियाँमजबूत हों । ।
यह पोस्ट उल्टा तीर पर चल रही बहस घरेलू हिंसा के लिए लिखी गई है और इसका शीर्षक यह इसलिए रखा गया है कीमुझे इन्टरनेट पर पत्नी पीड़ित ब्लागरों की यूनियन बनाने की बात की पोस्ट दिखाई दी थी इसलिए पत्नी पीड़ितचिट्ठाकारों से क्षमा मांग ली गई है ।
उल्टा तीर के लिए
[सुमन]
[सुमन]