[अमित के सागर]
रविवार, 1 नवंबर 2009
घरेलू हिंसा के खिलाफ़ उल्टा तीर की एक मुहिम
-घरेलू हिंसा-
माना कि ज़माना अब बदल गया है. औरतें जो दुनिया की आधी आबादी कहलाती हैं. पुरुषों के साथ बराबरी से विभिन्न क्षेत्रों में कंधे से कंधा मिलाकर बराबरी की हिस्सेदारी निभा रही हैं. कहीं-कहीं महिलायें पुरुषों से आगे भी जा रही हैं. लेकिन बावजूद इसके यह बात भी इतनी ही सच है कि घर की चार दीवारी के बाहर जो महिलायें कामयाबी का परचम लहरा रही हैं वही महिलायें घर की चार दीवारी के भीतर, पति, पिता, बेटे, भाई के रूप में हिंसक हो रहे पुरुषों के द्वारा घरेलू हिंसा का शिकार भी हो रही हैं. घरेलु हिंसा की प्रवृति केवल अशक्षित, ग्रामीण या कम पढ़े-लिखे समाज में ही नहीं बल्कि महानगरों, छोटे शहरों में रहने वाले पढ़े-लिखे तथाकथित सभ्य व सुसक्षित समाज में भी हो रही है. ऐसा नहीं है कि घरेलु हिंसा सिर्फ पुरुष वर्ग द्वारा ही की जाती हो, बहुत से ऐसे भी घर हैं जहां महिला ही महिला पर हिंसा कर रही हैं. बहुत मामलों में यह हिंसा मासूम बच्चियों पर भी की जा रही है. पुरुष व महिला वर्ग दोनों ही बच्चियों पर हिंसक होते पाए जाते रहे हैं. यह निंदनीय भी है और पाप स्तर तक भी.
हाल ही में ब्रिटेन की एक स्वंय सेवी संस्था द्वारा कराये गए सर्वेक्षण में एक आर्श्चयजनक तथ्य सामने उभर कर आया, वह तथ्य यह है कि विकाशशील देशों में, खासतौर से भारत में कामकाज के सिलसिले में घर से वाहर निकले वाली महिलाओं को घर के भीतर घरेलू हिंसा का सबसे अधिक शिकार होना पढता है. इसमें लोगों के घर में बर्तन मांजने वाली गंगू बाई से लेकर कॉर्पोरेट सेक्टर में उच्च पदों पर आसीन दिव्या जैसी महिलाओं को भी घरेलू हिंसा का शिकार होना पढता है. महिला आयोग की इक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष १९९९ से लेके सन २००९ तक यानी पिछले १ दशक में महिलाओं पर तेजी से घरेलू हिंसा बढ़ती जा रही है. सवाल ये है कि एक ओर दुनिया की आधी आबादी यानी महिला इसके समग्र विकास और समाज में इसकी भागीदारी बढाने के लिए महिला आरक्षण, महिला कल्याण के कार्यक्रमों, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, बालिका वर्ष जैसे विभिन्न खोखले अभियान चलाये जाते हैं. लेकिन वहीं दुनिया की यही आधी आबादी घरों के अन्दर घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है. यह कहाँ तक उचित है.
उल्टा तीर के इस मंच पर यह सवाल समाज को मिलकर सोचना होगा! क्या यह वक़्त नहीं आ गया जब कि अब हम अपने आस-पास, अपने घरों के भीतर होने वाली इस घरेलु हिंसा को रोकें? जो महिलायें घरेलू हिंसा की शिकार हैं, वो खुलकर सामने आयें, और समाज विरोधी वर्ग का खुलासा करें. उल्टा तीर पर इस पूरे महीने समाज की इस कुरीति व समाज की इस जटिल समस्या के के प्रति हम इक आन्दोलन चलाएंगे और आपसी विमर्श के माध्यम से इसका समाधान खोजने का प्रयास करेंगे. उल्टा तीर एक जिम्मेदार सामजिक मंच है. इसका उद्धेश्य समाज की हर बुराई को जड़ से मिटाना है. उल्टा तीर के वृहद अभियान में आपकी सहभागिता ही हमारी वास्तविक शक्ति है. हमारे इस अभियान से घरेलु हिंसा की वृद्धि की दर में अगर कुछ कमी आती है तो हम अपने इस प्रयास को सफल मानेंगे. साथ ही हम उन लोगों से भी जो समाज में अपने घरों के भीतर स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा करते हैं, हम उनसे अपील करते हैं कि उल्टा तीर का मकसद बर्तन मांजने निकली गंगू बाई से लेकर कॉर्पोरेट वर्ल्ड में काम करने वाली दिव्या को घर के भीतर और बाहर सुरक्षा प्रदान करना है. ताकि दुनिया की यह आधी आबाधी अपनी भागीदारी पूरी तरह स्वतन्त्रता से निभा सके. क्या यह वक़्त नहीं आ गया कि अब घरेलु हिंसा को हिंसक बना वर्ग अब इसे ख़तम करे? क्या केवल कानून बनाकर ही महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा को रोका जा सकता है.?
आओ हम सब मिलकर घरेलू हिंसा का समाधान खोजें. अपनी राय बेबाक दीजिए, खुलकर बोलिए. जब तक हम बुराई के खिलाफ पूरे मनोयोग से नहीं खड़े हो जाते...हम यूं ही बुराइयों और अत्याचारों को हमेशा सहते रहेंगे. घरेलू हिंसा कोई आज जन्मा हुआ मुद्दा नहीं है मग़र कभी न कभी तो हमें कुछ तरह जागना होगा, लड़ना होगा कि हम यह कुरुती समाज से हमेशा के लिए ख़तम कर सकें. आपका बोलना इस मुहिम की जीत में इक़ आवाज़ है. अपने विचार जरूर दें.
उल्टा तीर के लिए
[अमित के सागर]
[अमित के सागर]
Posted by
Amit K Sagar
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6:36:00 pm
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8 टिप्पणियां:
आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
--
बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
--
आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
--
आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]
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महिलाओं को एकजुट होकर इसका सामना करना होगा,और समाज की मनोव्रति बदलने की आवशयक्ता है,एसा नहीं है कि पुरुष मानसिक वेदनाओं के शिकार नहीं हैं,परन्तु महीलाओं का प्रतिशत अधिक है ।
जवाब देंहटाएंखबर अच्छी है पर कहीं कहीं तो उल्टा भी हो रहा है
जवाब देंहटाएंआपने नारी मुद्दे पहले भी उठाये है और अब फिर नारी पीडा के एक नए आयाम, एक नए मुद्दे पर बहस का आपका प्रयाश सराहनीय है आपकी लिखी भूमिका भी लोगो को इस मुद्दे पर बोलने के लिये प्रेरित करे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
...पर कहीं कहीं तो उल्टा भी हो रहा है!
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार जी, इस कथन में कहीं-कहीं उल्टा भी हो रहा है, इसे अगर आप थोडा सा भी विस्तारित करेंगे तो हम सबको विषय के खंडन और समस्या के अधिक करीब तक पहुचने में सहायक होगा!
आज की ज्वलंत समस्या है इसके निदान केलिए पूर जोर कोशिशि हो हम सब की मैने गत माह इसी हिसा मे फूल सी भतीजी को खोया है!
जवाब देंहटाएंकौशिक जी,
जवाब देंहटाएंहम सबको विषय के और अन्दर जाने और समझने में मदद मिलेगी अगर आप अपनी भतीजी के साथ हुए हिंसक प्रकरण के बारे में और बताएं.
*मेरा निवेदन है की जादा से से जादा महिलायें व् पुरुष वर्ग इस विषय से जुड़कर इस अभियान को सफल बनाएं.
जयपुर में पली ओर पढी डोली की डोली उसकी मर्जी के अनुसार दिखने मे अच्छे प्रतिष्ठित परिवार के लिये नौ माह पुर्व उठी , उसकी ननद एवं पति ने हरबात पर प्रताडित किया जबरदस्ती अबोर्शन भी करवाया,मार पीट करते रहे पीहर से धन लाने की माँग करते रहे पर अपनी पसन्द की शादी करवाने या हमे दुखी न करने के मानस से कुछ् भी बताये बिना उसने नोट लिख कर पीहर मे रस्सी पर अपनी साँसे टाँग दी नोट पढने पर हमें सारी जानकारी मिली तब तक देर होगई थी
जवाब देंहटाएंवास्तव में जो कौशिक भाई न वर्णन दिया है वही असली घरेलू हिंसा है , बाकी पति-पत्नी के झगडे तो आपस में ताल-मेल न बैठने की कहानियाँ है जिनमे दौनों की ही गलती होती है,समझ की कमी |
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