शनिवार, 7 नवंबर 2009
शिखर पुरुष को श्रद्धांजली
पत्रिकारिता जगत के जाने-माने सशक्त हस्ताक्षर "प्रभाष जोशी" अब हमारे बीच नहीं रहे. बहुत से नए शब्द देने वाले जोशी जी अब शब्दों के रूप में हम सबके पास यादें बनकर ही रहेंगे. मग़र शिखर पुरुष प्रभाष जोशी का चले जाना हिन्दी पत्रिकारिता के लिए बहुत बड़ी क्षत्ति है. एक ऐसा शून्य जिसे कोई नहीं भर सकेगा. हिन्दी पत्रिकारिता के आधारभूत स्तम्भ का एक सशक्त खम्बा टूट गया. जिसकी जगह अब कोई नहीं ले सकेगा.
बीते गुरुवार देर रात मैच देखते-देखते व सचिन तेंदुलकर के आउट होने के बाद उनकी तबियत बिगड़ी व दिल का दौरा पड़ने से अपने पसंदीदा खिलाडी और खेल की रोमांचक खबर लिखने से महरूम जोशी जी हम सबको हमेशा के लिए अलविदा कह गए.
गांधीवादी विचारधारा में रचे-बसे, १५ जुलाई १९३६ को इंदौर के निकट स्तिथ बडवाहा में जन्मे जोशी जी ने हिन्दी दैनिक अखबार "नई दुनिया" से अपनी पत्रिकारिता का आरम्भ किया. खेल से श्री जोशी को जैसे मुहब्बत रही. खेल में सचिन शिखर खिलाडी रहे हैं तो श्री जोशी खेल पत्रिकारिता के शिखर स्तंभकार. हर विषय पर अपनी सशक्त और जागरूक टिपण्णी देने वाले जोशी जी ने "जनसत्ता" अखबार को सम्पादक के पद पर रहते हुए इक नई ऊंचाई दी. 1995 में संपादक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे मुख्य संपादकीय सलाहकार के तौर पर ‘जनसत्ता’ से जुड़े रहे। आम जन की भाषा में निर्भीक और धारधार लेखन के जरिये की गई उनकी समाजसेवा अमूल्य है. जिसे सदियाँ याद रखेंगीं.
-कुछ मैं कहूं-
अखबार मुझे जादा अच्छे कभी नहीं लगे. पर देश-विदेश में घटने वाली घटनाओं और नई-नई सूचनाओं, जानकारियों से रू-ब-रू होने के लिए मन में एक ख़याल आया कि क्यों न १-१ सप्ताह तक हर अखबार पढा जाए. और फिर यही किया. देश के प्रतिष्ठित अखबारों से लेकर स्थानीय अखबारों तक की ख़ाक छानने के बाद मुझे मिला "जनसत्ता" जिसमें खासतौर से रविवार को होता था श्री जोशी जी का "कागद कारे". बस यही अखबार लगा कि मैं शायद इसे ही तलाशता रहा था. चूँकि यह अखबार गिनती में कम ही होता है और कम ही लोगों को पढ़ते देखा है. इसलिए कभी-कभी इस अखबार को पढने के पीछे ५-५ फोन करने भी पड़ते (जब भी हॉकर 'जनसत्ता' नहीं लाकर देता) या कई-कई स्टॉलों पर घूमना पड़ता. जनसता के प्रति जैसे इक दीवानगी सी है.
श्री जोशी की सप्रथम जब टीवी पर खबर देखी तो यकीन ही नहीं हुआ कि मैं रविवार को जनसत्ता में उनका "कागद कारे" नहीं पढ़ सकूंगा. दिमाग जैसे स्तब्ध हो गया. मन अन्दर से भर गया. दिल में लग रहा है जैसे आंसू बनने तैयार हो गए हैं. और मैं रो पडूंगा. मैंने टीवी बंद की, पर मन नहीं माना, फिर चालू की! बड़ी अजीब सी स्तिथि में मन आ पहुंचा था. जनसत्ता पढ़ते-पढ़ते जैसे श्री जोशी से कोई भावनात्मक रिश्ता सा हो गया था. और अब जोशी जी नहीं रहे! मैंने कभी ऐसी कल्पना नहीं की थी. पर इस सच का सामना करना दुर्लभ सा हुआ.
कल रविवार को जब मैं जनसत्ता देखूंगा तो मैं निश्चित ही आपको बहुत करूंगा, शायद उस कागज़ पर आपके लेखन वाली जगह पर किसी और का कुछ लिखा होगा, मगर मैं आपको ढूंढूंगा, आपके शब्दों और 'अपुन' वाली बेबाकी पढ़ना चाहूँगा...मगर यह सब नहीं होगा...फिर भी आप यादों में मुक़म्मल रहोगे, अपने होने से जादा!
उल्टा तीर परिवार की और से 'श्री प्रभाष जोशी को' हार्दिक श्रंद्धांजलि.
[अमित के सागर]
Posted by
Amit K Sagar
at
9:41:00 pm
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श्री प्रभाष जोशी


4 टिप्पणियां:
आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
--
बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
--
आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
--
आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]
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meri or se shradhdhanjali aur unko naman.........
जवाब देंहटाएंयह सुनकर पढ़कर काफी धक्का लगा है। यदि कहूं कि अख़बार की दुनिया से पूर्णरूपेण जुड़े वे एकमात्र साहित्यकार थे, तो अतिशियोक्ति नहीं होगी। आनंद जोशी के बाद हिन्दी अखबारों में स्तरीय, विवेचना पूर्ण और विचारोत्तेजक आलेख मुझे उनका ही लगता रहा। बहुत पहले, वर्षों पहले, जब अस्ट्रेलिया में भारत खेल रहा था, तब सचिन के ऊपर आवश्यकता से अधिक भार पड़ने को लेकर उनका एक आलेख जनसत्ता के मुख्यपृष्ठ पर छपा था, "इस किशोर के कंधों पर"। उस आलेख से पता चलता था कि उनकी क्रिकेट की समझ कितनी गहरी थी ओर वे कितने भावनात्मक रूप से सचिन की क्रिकेट से जुड़े थे। उनका इस तरह चले जाना और वह भी सचिन की पारी के अंत होते ही, अंदर तक व्यथित कर गया है। आपके आलेख के बारे में फिर कभी लिखूंगा, आज तो जोशी जी के चरणों में श्रद्धा के सुमन अर्पित करने दीजिए।
जवाब देंहटाएंअमीत जी, वेशक कलम के महान नायक प्रभाष जोशी जी का न रहना हम लोगो जैसे लोगो के लिये एक बहुत बडा धक्का है. उनकी लेखनी के हर एक शब्द से हम जैसो को एक नई प्रेरणा मिल रही थी. जोशी जी का निधन हिन्दी पत्रकारिता के एक युग का निधन है. उन्हे शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएंप्रभाष जोशी जी के बिना जनसत्ता की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता ये चुनोती भी है जनसत्ता के लिए
जवाब देंहटाएंपूरे जनसत्ता और जोशी परिवार को इश्वर इस दुःख की बेला मे सहारा दे
धन्यवाद