औरत है तू, तूझे तो दु:ख देखने ही हैं, हमारे समाज में यह धारणा कितनी गलत है कि एक महिला को बस परेशानियां ही मिलती हैं. विवाह उपरान्त दहेज के लोभी उसे जला डालते है तो वह यदि वह अपना करियर बनाना चाहें तो वहां भी उसे उत्पीडन का शिकार होना पडता है, सबसे बडा उदाहरण रूचिका का मामला है जिसे सभी जानते है।
पढी-लिखी महिला तो इसका मतलब यह नही कि बस उसकी तकलीफे कम हो गयी, वह घर से बाहर काम भी करे घर में भी करे और दोनो मे सन्तुलन बनाने के चक्कर मे चक्करघिन्नी बन गयी है । दहेज के लालची उसे कही जला डालते है तो कही मासूम लडकियां हवस का शिकार बन जाती हैं। आखिर क्यों कब तक अपनी तकलीफों से आजिज़ आ कर एक पढी लिखी महिला ने कहा अच्छा करते हैं लोग अपनी बेटियों का कोख मे ही मरवा देते हैं. ऎसी मानसिकता वह भी उच्चशिक्षित महिलाओ में फिर अनपढ तो कही ज्यादा जागरूक होती है, अपने अधिकारों के प्रति।
दहेज के लोभी अपनी वधुओ को इसलिए जला देते हैं ताकि उन्हे उससे छुटकारा मिल जाये और वह दुबारा विवाह कर किसी और से दहेज रूपी धन की उगाही कर सके, ऎसा होता है अपने रोब व धन बल पर यह लोग सजा से भी बच जाते हैं और फिर अन्यत्र विवाह कर दहेज प्राप्त कर लेते हैं. कुछ लोग तो धन दौलत देख कर विवाह करते है ताकि आजीवन उन्हे लडकी के मायके से भी लाभ मिलता रहे. कितने तो ऎसे होते है जो दहेज रूप मे मिली सुख सुविधा के दम पर जीवन यापन करते हैं, उनके विवाह का मकसद आसानी से प्राप्त होने वाली सुख सुविधा व धन प्रप्ति ही तो था जो लडकी वाले अपने लडकी को धन से सुखी नही कर पाते उनकी लडकियों को ससुराल में ताने व दुख ही मिलते हैं यदि ससुराल वालो ने पैसों के मकसद से विवाह किया ओर जब उनकी मांगे पूरी नही हो पाती तो उस महिला का जीना मुशकिल हो जाता है दहेज के लालची तरह-तरह के बहानो से ज्यादा से ज्यादा लडकी के मायके वालो से लाभ उठाना चाहते है क्यों शादी करके उन्होने अहसान जो किया है.
कभी रस्मो का बहाना बनाया जाता है कभी त्यौहारों का कभी किसी अवसर का बहाना तो कभी अन्य मकसद एक ही किसी भी तरह वधु के मायके से कुछ न कुछ मिल जाये आखिर बिना किसी मेहनत के जब इतना कुछ मिलता हो तो कोन न लेना चाहेगे। जब किसी की उम्मीदे पूरी नही हो पाती तो वह वधु उनके किस काम की जो धन उगाही का साधन न बन पायी वह उनके खीज उतारने का तानों का पर्याय तो बन ही सकती है उसे जला कर इन बातो से छुटकारा दे दिया जाता है तकि किसी और से वह धन का अपना मकसद तो पूरा कर सके कभी परेशान हो काई ब्हाता खुद की इहलीला समाप्त कर इस अत्याचार से मुक्ति पा लेती है।
समाज की इन्ही विसंगतियों से परेशान बेटी को कोख में मरवा देता है हमारा यह सभ्य समाज एक लडकी के माता-पिता बन तकलीफें सहन करने से अच्छा समझता है कोख में ही मार दो उसे जन्म ले का भी अधिकार नही जो ऎसा करते कभी उनके दिल में झांक कर देखो वह ऎसा कयों करते है?
लडकी के माता-पिता चाहते हे उनकी लडकी विवाह उपरान्त सुखी रहे इसके लिए वह पर्याप्त कोशिशे भी करते है पर क्या वह ससुराल में दहेज लोभियों से बच पाती है मै यह नही कहती सभी ऎसे होते हैं. यह सिर्फ उन लोगो के लिए हे जो विवाह को लेन देन का जरियां मानते है वह दहेज की चाहत रखते है।
इन्ही कारणों कितनी की लडकियां ऎसी भी हे जो विवाह की इच्छुक नही होती यदि किसी महिला पर अत्याचार होता है तो चाहे वह किसी भी बात को लेकर हो तब समाज का क्या रोल होता है वह केवल मूकदर्शक ही होता है यदि काई किसी का प्रताडित करता भी है तो उसे तमाशा बन न देखे रोकने की कोशिश करे युवावर्ग मे बहुत शक्ति होती हे यदि वह थोडा सा भी इस ओर ध्यान दे तो बहुत हद तक रोक लग सकती है पर ऎसा होता बहुत कम है आज के युवा का अपने स्टाइल,फैशन,इन्टरटेनमेन्ट,गर्लफेंन्डस ,बायफ्रेंडस व डेटिगों से फुर्सत ही कहां जो वह इस ओर ध्यान दे वह काई समाज सुधारक थोडे ही है फिर किसी के मामले में पडकर उनका नुकसान ही होगा किसी के मैटर में हम क्यों पडें यही भावनायें है जो युवा शक्ति को किसी बहन, बेटी, बहु,बुजुर्ग पर होते अत्याचार को देखते ही रहने पर मजबूर कर देता है काश सब यह सोचे कि यह सब किसी के साथ भी हो सकता उनके अपने अजीजों के साथ भी। कुछ जो महिलाये दूसरी महिला के साथ ईष्या वश पुरूष को दुसरी महिला को प्रताडित करने का भाव रखती है उसे भी यह सोचना चाहिए ऎसा उसके अपने के साथ भी हो सकता है।व्यवहार व माहौल भी इन बातो को हवा देता है। इसी तरह महिलायें शोषण का दहेज का घरेलू हिसां का यौन शोषण का शिकार होती है ,होती रही है, होती रहेगी जब तक हम देखते रहेगे केवल तमाशाबीन बनकर।
सुनीता शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार