घटना - एक - टेस्ट ट्यूब बेबी को गर्भ में मारने की कोशिश, डाक्टर पिता गिरफ्तार
कानपुर,( मेआसु ). लाला लाजपत राय अस्पताल में कार्यरत डाक्टर नीना मोहन रायजादा ने छह दिसम्बर को महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि पति डाक्टर मनीष मोहन, सास, ससुर मदन मोहन सक्सेना और ननद डाक्टर ज्योत्सना मोहन व रश्मि सक्सेना ( दोनों बहनें शादी शुदा हैं और बच्चों के साथ मायके में ही रह रही हैं ) ने उसे बुरी तरह से पीटकर भ्रूण को नष्ट करने का प्रयास किया. भादंवि की धारा ४९८ ए, ३२३ और ३१६/५११ के तहत रिपोर्ट लिखी गई. इस रिपोर्ट में पीड़िता ने कहा कि उनके गर्भ में करीब सात हफ़्ते का भ्रूण है जो टेस्ट ट्यूब बेबी है. इस बेबी के लिए उन्होंने छह लाख रुपए खर्च किए हैं जिसमें पति ने एक रुपए नहीं दिए. दहेज़ की मांग पूरी नहीं होने पर सास ससुर, पति व ननदों ने बीते नौ नवम्बर और फिर पंद्रह नवम्बर को उसे बुरी तरह पीटा जिससे रक्तस्राव होने लगा और भ्रूण नष्ट होते-होते बचा. इससे पहले भी ससुरालवालों ने उन्हें पीटकर तीन माह के गर्भस्थ शिशु की जान ले ली थी. दो साल पहले उन्होंने तलाक का मुकदमा भी दाखिल किया था जो अदालत ने खारिज कर दिया था. उनकी शादी चार साल पहले हुई थी. उसी के बाद ससुरालवालों के जुल्म और बढ़ गए थे. महिला थानाध्यक्ष की आगुवाई वाली टीम ने सोमवार(११-०१-१०) को डा. मनीष मोहन को घर से गिरफ़्तार कर लिया. ताजा घटनाक्रम के बाद आरोपी ससुरालीजन भूमिगत भूमिगत हो गए. पुलिस ने मुख्य आरोपी को कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें चौदह दिन की न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया गया.
घटना-दो- दहेज़ लोभियों ने वधू को जलाया, हालत गंभीर
कानपुर, ( मेआसु ). बच्चा न होने तथा दहेज़ की मांग पूरी न होने पर चकेरी क्षेत्र में एक महिला को उसके ससुरालवालों ने जला दिया और फरार हो गए. मकर संक्रांति पर खिचड़ी देने पहुंचे भाई को मामले की जानकारी हुई. महिला को शहर के उर्सला अस्पताल में भारती कराया गया है. हालात गंभीर बनी हुई.
छोटी गुटैया स्वरुप नगर निवासी चंदू प्रसाद यादव ने अपनी पुत्री उमा ( ३२ वर्ष ) की शादी चार साल पहले श्याम नगर नटियन चकेरी निवासी कार चालक राजेन्द्र यादव के साथ की थी.सोमवार ( ११-०१-१० ) सुबह उमा का छोटा भाई सुनील मकर संक्रांति पर खिचड़ी देने बहन की ससुराल पहुंचा. सुनील ने जब मुख्य द्वार खटखटाया तो वह अपनेआप खुल गया. अन्दर पहुंचने पर सुनील को जब कोई दिखाई नहीं दिया तो वह छत पर बने कमरे में गया. कमरे में कदम रखते ही सुनील की चीख निकल पड़ी. बहन उमा जली अवस्था में अचेत पड़ी थी. सुनील ने शोर मचाकर पड़ोसियों को एकत्र किया और उनकी मदद से बहन उमा को उर्सला अस्पताल में भारती कराया. उमा के परिजनों ने ससुरालवालों के खिलाफ़ चकेरी थाने में तहरीर दी है. सुनील ने आरोप लगाया कि शादी के बाद से ही उमा के ससुरालवाले दहेज़ में तीस हज़ार रुपए और मांग कर रहे थे. मांग पूरी न होने पर उमा का उत्पीड़न करने लगे. शादी के दो साल बीत जाने पर ससुरालवाले उसे बच्चा न होने का ताना भी देने लगे और मारपीट करने लगे. पति राजेन्द्र दूसरी शादी की धमकी भी देने लगा. सुनील का आरोप है कि दहेज़ और बच्चे के लिए उसकी बहन उमा को ससुरालवालों ने मिट्टी का तेल डालकर जाला दिया.
(स्रोत: राष्ट्रीय सहारा,१२-०१-१० )
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आज राष्ट्रीय युवा दिवस है. स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिन है. भारत सरकार ने आज के दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने कि घोषणा की है. उपरोक्त दोनों घटनाओं के मुख आरोपी युवा जगत से ताल्लुक रखते हैं. बढ़ते भौतिकवाद, बाजारवाद और वैश्वीकरण के सबसे ज्यादा शिकार युवा जगत ही है. जिस मुल्क की सत्तर प्रतिशत से ज्यादा आबादी युवा है, उस मुल्क की बहन, बेटियां सुरक्षित नहीं है. यह एक विचारणीय मुद्दा है. सिर्फ सांस्कृतिक आयोजनों से राष्ट्रीय युवा दिवस की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी.
कहीं किसी की बेटी जला दी जाती है, कहीं किसी की बहन के साथ बलात्कार होता है. राह चलते लड़कियों पर अभद्र शब्द-बाण चलाए जाते है. इन सब बुरी हरकतों में भारत के उसी सत्तर फीसदी युवा पीढ़ी के नुमाइंदे लिप्त होते हैं. फिर कैसे मनाएं हम राष्ट्रीय युवा दिवस ? काहे का राष्ट्रीय युवा दिवस ? यह तो सरासर स्वामी विवेकानंद के उसूलों के साथ बलात्कार होगा. उनकी छवि धुल धूसरित होगी.
उपरोक्त दोनों घटनाओं को प्रस्तुत करने का मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि ऐसी घटित होने वाली घटनाओं में प्रमुख भूमिका युवाओं की ही होती है. युवाओं को अपनी भूमिका का नए सिरे से मूल्यांकन करना होगा. ये आग वो आग है जो मुद्दतों से हमारे परिवार और समाज को जलाती आ रही है. ये आग कब बुझेगी....?? इस सवाल का जवाब हम राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर ढूंढ सके तो उचित होगा. सही मायनों में तभी विवेकानंद जयंती अपने राष्ट्रीय युवा दिवस की सार्थकता को सिद्ध कर पाएगी. हम सत्तर फीसदी से अधिक भारतीय युवा आज मिलकर ये शपथ लें कि भविष्य में किसी की बहन, बेटी और माँ दहेज़ और बच्चे के लिए आग में न जलने पाए.
अंत में भारत के नौजवानों का आह्वान करती मेरी ये ग़ज़ल>
नौजवां हो तो ज़ख्मे-वतन की दवा बनो
ढलती शबे-चश्म के लिए सहर बनो.
बेज़ा उठती वहशी तमन्नाओं और
वहशी आवाज़ों के लिए कहर बनो.
गरम है तुम्हारी रगों का खून जो
लंगड़ों की लाठी, अंधों के लिए नज़र बनो.
गरजते बादल, बरसते बादल से बचने को
नादान परिंदों के लिए शज़र बनो.
अधूरे रिश्ते के राहों को मंजिल मिले
उस रास्ते के रिश्तों के लिए हमसफ़र बनो.
जिस नज़र से चाहते हो दुनिया देखे
उस दुनिया की " प्रताप " पहले नज़र बनो.
जय हिंद...!
प्रबल प्रताप सिंह
ज्वलंत समस्यायों पर बहुत सशक्त आलेख और प्रेरक ग़ज़ल आभार ...
जवाब देंहटाएंजिस नज़र से चाहते हो दुनिया देखे
उस दुनिया की " प्रताप " पहले नज़र बनो.
बहुत ही विचारोत्तजक लेख है पर कथनी व करनी में फर्क बहुत होता है
जवाब देंहटाएंManoj ji or Sunita ji comment ke liey dhanyvaad...!!
जवाब देंहटाएंअमित जी, जिस देश के लोगों में नैतिकता नाम की चीज ही न हो वहां तो यह सब होगा ही. बात यह है कि जब खुद पर बीतती है तो आदमी जुल्म कह कर चिल्लाता है और खुद करता है तो उसे जस्टीफाई कर देता है.
जवाब देंहटाएंविचारों की इस श्रीन्खला में कोई कड़ी नहीं जोड़ना चाहूँगा ....हमारा शायद यही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है के चर्चाएँ बहुत खास हो गयी है, और चर्चा का विषय आम ।
जवाब देंहटाएंमुझे जीवन का इतना अनुभव भी नहीं है , के ये कह सकूँ की क्या सही है और क्या गलत , किन्तु जब भी किसी चर्चा का विषय देखता हूँ तो अनायास ही एक चिर परिचित
शब्दों की श्रंखला दिखाई पड़ती है , नारी शोषण , युवा प्रेम सम्बन्ध , पाश्चात्य बनाम हम ,
... इत्यादि !
कुछ न हुआ तो किसी राजनीती (जो किसी भी देश काल से सम्बंधित हो सकती है ) के महत्तम भ्रष्ट मंत्री के निजी जीवन के सार्वजनिक
क्रिया कलापों का लेखा झोखा तय हो रहा होता है !
सभी बुद्धि जीवियों से क्षमा याचना करते हुए , एक बात पूछना चाहूँगा की क्या हम यू
ही चर्चाओं और उनके बाद असफलताओं के मंथन को ही ये सोचकर मथते रहेंगे के कभी तो अमृत निकलेगा ??
और अगर निकल भी गया तो आज की इस उथल पुथल में जीने वाले मनुष्य को क्या दो घूँट पीने का वक़्त है ??
ये बेहद जटिल मुद्दा है अब लोग जिसमे नारी और नर दोनों ही इस समस्या से पीड़ित है आज हम सब की जिन्दगी मे पैसा सबसे महत्वपूरण हो गया है जिसके लिए सभी कुछ भी हथकंडे अपनाने को तैयार हो जाते जो की समस्या को केवल बढ़ाते है आज हमे अपने अलावा दोस्रो के बारे मे सोचने की जर्रोरत नहीं बल्कि केवल हम अपनी आत्मा की भी सुन ले तो ये सभी समस्याए ख़त्म हो सकती
जवाब देंहटाएंराम राम