व्यस्त हूँ दोस्तो.
जल्द लौटूंगा आप सबके बीच :-)
[हिन्दी का प्रथम "बहस" वाला ब्लॉग]
मशहूर लेखिका शोभा डे का मानना है कि वर्तमान विवाहों में विवाह वाली बात रही ही नहीं है। अधिकांश लोग 'बस निभाना है...इसलिए शादी का बंधन निभाते हैं। शोभा का मानना है, विवाह ऐसे लोगों के लिए बना ही नहीं है।
मेरी बात कोई नहीं समझेगा क्योंकि मैं एक ऐसे समाज में रहता हूँ जहां एक अविवाहित आदमी को लोग अच्छी नजर से नहीं देखते. उसके चरित्र पर शक करते हैं, उसकी क्षमता पर शक करते हैं. मेरे समाज में बिना पत्नी के एक आदमी को अधूरा माना जाता है. मैं इस मई में २८ का हो जाउंगा. घर में सबको एक बहू की जरूरत है, कोई सुनना नहीं चाहता कि मुझे पत्नी की जरूरत है या नहीं. रोज तकरार हो रही है. पर जब भी मैं अपना मन बनाने की कोशिश करता हूं ये सारे सवाल मेरे सामने खड़े हो जाते हैं.
समाज शास्त्र कहता है कि विवाह एक संस्था है. लेकिन हम इसमें थोडा सा बदलाव करेंगे. शादी एक आन्दोलन भी है. शादी एक आन्दोलन भी हो सकता है. उल्टा तीर पर छिंदवाडा मध्य प्रदेश में ३० अप्रैल २०११ को होने वाली एक बेहद आम लेकिन कई मायनों में बहुत खास भारती और रामकृष्ण डोंगरे की शादी के बहाने पूरे महीने हम और आप शादी, इससे जुड़े सवालों, मुद्दों, दिलचस्प वाक्यों से मुखातिब होंगे.आगामी ३० अप्रैल को रामकृष्ण डोंगरे (प्रिंट जर्नलिस्ट, अमर उजाला, दिल्ली) व (फैशन डिजाइनर, भारती) की शादी में हम इस बहस के मंच से आप सभी को शादी में शिरकत करने का भी न्यौता देते हैं.
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. ये तो आपने सुना ही होगा. लेकिन शादी में कोई ब्लॉग दीवाना ऐसा पहली बार हो रहा है. इसीलिए आपसे गुजारिश है- उल्टा तीर पर इस पूरी महीने शादी बहस का ही नहीं समझ का भी विषय है.
क्या हमारा भारतीय समाज शादी को लेकर अपनी सोच को बदल पाया है? ऐसे तमाम और सवालों की पड़ताल इस मंच के जरिये शादी जैसे नाज़ुक मसले पर.तो शादी वही, सोच नई!