हर रोज़ बदलते भारत में शादी को लेके हमारे भारतीय समाज की सोच बदली हो या न बदली हो, यह एक अनउत्तरित सवाल है पर बहुतियात में देखने को मिलता है कि 'शादी के- दूल्हे-दुल्हनों' के मन में आज जरूर कई नए सवाल पैदा हो गए हैं! क्या है आखरी इन सवालों के पीछे? क्यों हैं ये सवाल! और क्या हैं इनके जवाब! ये सब पड़ताल ही करने को 'उल्टा तीर' ने 'शादी पर बहस' शुरी की है. इसी कड़ी में आज पेश है एक अनाम (पुरुष) शख्स की सच्ची पाती!
मैं शादी क्यों करूं...?
एक अनाम शख्स की पाती : एक सवाल मासूम-सा
- मैं शादी नहीं करना चाहता क्योंकि...-
- मैं किसी को अपना राजदार नहीं बनाना चाहता
- मैं किसी को अपने निजी फैसलों में दखलअंदाजी की इजाजत नहीं दे सकता
- मैं एक अजनबी को अपने कमरे में अधिकार-पूर्वक बैठा नहीं देख सकता
- मैं डरता हूँ कि वह अजनबी पता नहीं कैसे स्वाभाव का होगा, उससे मेरी बन पाएगी या नहीं
- मैं नहीं जानता मैं किस हद तक समझौते कर पाऊँगा. अगर नहीं बन पाई तो जिंदगी में उथल-पुथल रहेगी. मैं अपनी जिंदगी के वास्तविक मकसद से भटक जाऊँगा. कुछ भी हो सकता है. हो सकता है वह अच्छी हो पर मेरे मकसद में सहयोगी नहीं रही तो.
- मैं क्यों अपनी जिंदगी का नियंत्रण किसी दूसरे के हाथ में सौंप दूं.
- मैं अनचाही जिम्मेदारियाँ निभाने से डरता हूं. पहले एक पत्नी, फिर बच्चे. सब अनचाही जिम्मेदारियां लगती हैं मुझे. और फिर यह मेरा निजी मामला है. कोई जरूरी नहीं कि मैं सारी जिंदगी इनके बोझ तले दबा रहूं. अगर स्वेच्छा से होता तो कोई बात होती.
- मैं अभी अपने करियर में किसी मुकाम पर नहीं पहुँचा हूं. शादी के साथ ही कई तरह की अपेक्षाएँ शुरू हो जाएंगी और उन्हें पूरा कर पाने के लिए मेरे पास पैसे पूरे नहीं पड़ेंगे.
- मैं अपने कमाए हुए पैसे सिर्फ अपने लिए खर्च नहीं करना चाहता. मैं थोड़ा कमाउँ या ज्यादा, उसे पूरे समाज के लिए खर्च करना चाहता हूं.
मैं जरूरी नहीं समझता कि हर कोई शादी करे ही. इतने सारे लोग शादी-शुदा हैं, कुछ लोग कुवांरे रह जाएंगे तो समाज में डाइवर्सिटी ही बढ़ेगी. शादी करके ही लोग कौन सा तीर मार लेते हैं. मैंने कई कपल देखे हैं जो बेमेल हैं, जो सिर्फ एक दूसरे को सहते हैं, पर मजबूरी में निभाए चले जाते हैं.
मेरी बात कोई नहीं समझेगा क्योंकि मैं एक ऐसे समाज में रहता हूँ जहां एक अविवाहित आदमी को लोग अच्छी नजर से नहीं देखते. उसके चरित्र पर शक करते हैं, उसकी क्षमता पर शक करते हैं. मेरे समाज में बिना पत्नी के एक आदमी को अधूरा माना जाता है. मैं इस मई में २८ का हो जाउंगा. घर में सबको एक बहू की जरूरत है, कोई सुनना नहीं चाहता कि मुझे पत्नी की जरूरत है या नहीं. रोज तकरार हो रही है. पर जब भी मैं अपना मन बनाने की कोशिश करता हूं ये सारे सवाल मेरे सामने खड़े हो जाते हैं.
क्या आप कोई मेरे इन शंका, इन सवालों का निवारण कर सकते हैं. मैं आभारी रहूंगा.
(एक अनाम शख्स की सच्ची पाती)
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(शादी से पहले सभी लोग कुछ इसी तरह की स्थिति से गुजरते हैं शायद। यह शख्स कौन है, हम नहीं जानते। हमने आप सबके सामने इन सवालों को लाकर जवाब जानने की पहल ही की है।)
'उल्टा तीर'
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