बहुत लम्बे अरसे के बाद उल्टा तीर के जागरूक पाठक "साहब सिंह" जी ने "फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स" मुद्दे पर अपनी राय मुझे मेल के जरिये भेजी है जिसे ज्यों का त्यों यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:
संभतः उल्टा तीर पर "फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स" मुद्दे पर चली यही इक़ लम्बी बहस साबित है! और उम्मीद है कि हम इक़ बार फिर से इस संवेदनशील देश के महाशक्ति युवा वाले मुद्दे पर जरूर चर्चा करेंगे:
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मुझे आपका निमंत्रण कोई २ वर्ष पश्चात् मिला लेखन मेरा उद्श्य नहीं वरन एक मार्ग है जिसपर चलकर हम एक वास्तविक आजाद विशाल और समृद्ध भारत का निर्माण करेंगे!
विषय friends with benefits पर मेरे विचार भेजता हूँ कृपया गौर करें.
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एक कहावत है की मित्र वही जो मुसीबत में काम आये!
काम वासना व् इसकी पूर्ति मनुष्य के लिए उतनी ही जरूरी है जितनी की हवा पानी व् भोजन! हर राष्ट्र में व् हर सभ्यता में इसके लिए प्रबंध हैं! भारत में इसके लिए जो प्रबंध थे वो पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकार समाप्त कर दिए गए! वे प्रबंध थे बाळ विवाह, देवदासी प्रथा व् योग शिक्षा उस काल में या उसके बाद भी, आजादी के बाद तक गावों में प्रत्येक लड़की को बहन के तौर पर आदर मिलता था!
योग शिक्षा से मनुष्य काम वासना को अपने वश में कर सकते थे! अन्यथा जब भी काम इच्छा प्रबल होने लगती थी तो तुरंत शादी का इंतजाम था! या तो देवदासिया इसके लिए तत्पर थी! तब लाभ हानि मनुष्य के चरित्र मर्यादा से बड़ी न थी! आज लाभ ही सब तय करता है चरित्र मर्यादा से हमारा सरोकार केवल किताबी हो गया है!
दुसरे आज देश में युवा की स्थिति बेहद दयनीय है! पहले २० वर्षो तक पढाई करने के बाद अपने पुरे करियर की चिंता उसे होती है! करीर का मतलब है जॉब? ...नहीं, वरन ऐसी जॉब की वो सोसाइटी के हिसाब से अपना व अपने बच्चों का भरण पोषण कर सके? और यह लक्ष्य उतना ही मुश्किल है जितना की मेंडक तोलना, एक को तराजू में रखेंगे दो कूद जाएँगे दो को रखेंगे तो एक ...जब जॉब मिलेगी तो महंगाई बढ़ जाएगी सेलरी बढ़ेगी तो अमेरिका में रेससन आ जाएगा तो शादी कैंसल फिर सस्ते मीडिया इन्टरनेट और सिनेमा के नाम पर खुली सेक्स की दुकाने युवा वर्ग के लिए एक मुसीबत खड़ी कर देती हैं! आवश्यकता अविष्कार की जननी है! देश लीडरशिप के अदूरदर्शिता के परिणाम सवरूप देश में व्याप्त अन्य अनेक समस्याओं के साथ इस समस्या के लिए भी आज के युवा वर्ग ने जाने अनजाने ये रास्ता निकाल लिया है!
जो बलात्कार, दैहिक शोषण,काम कुंठा व् अप्राकृतिक समाधानों से निश्चित रूप से अच्छा व् समान जनक है! अंततः यह पाश्चत्य संस्कृति का अनुकरण भी है!
परन्तु जमाखोरी, रिश्वतखोरी व् नशाखोरी ही की तरह ये भी भारतीय समाज के लिए एक समस्या है जिसका समाधान शायद मोजुदा शिक्षा व्यवस्था, सरकार, और लीडरशिप के पास नहीं है! इसके लिए तो एक जनक्रांति की आवश्यकता है जो इसी युवा वर्ग के इस संघर्ष से पैदा होगी!
वन्दे मातरम
[साहब सिंह]इसी विषय "फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स" पर अब तक हुई चर्चाओं के लिंक: