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गुरुवार, 5 नवंबर 2009

आखिर कब तक सहूँगी- Domestic Violence Debate-3-

उसका मन चीत्कार कर उठा. कब तक आखिर कब तक वह यह सब सहती रहेगी? किसी को उस पर दया न आती न पडोसियों को ससुराल वालो को न पीहर वालों को. रोज पिटना, गाली सुनना उसकी नियति थी. फिर उसने बहुत ही कठोर कदम उठाया, एक दिन अपने बच्चों समेत खुदकुशी कर ली उसने...ऎसी  ही बातें हमें रोजमर्रा में सुनने को मिल जाती है. स्त्रियों का घर में मार खाना वो भी ऎसी महिलाओ को कथित समाज में कही न कही किसी न किसी मुकाम पर है फिर अनपढ व कमजोर तबके की महिलाएं कोई अतिशयोक्ति नही?
    

तुलसी दास ने भी शायद क्या सोच कर यह लिखा होगा,  ढोर, गंवार, शुद्र, पशु, नारी यह सब ताडन के अधिकारी ।। वह इसलिए कि उनकी पत्नी ने उन्हे दुत्कार दिया था. इसे पुरूषों ने अपने ब्रहृमास्त्र बना लिया। उन्होने तो गोया यह मान लिया कि जब तक स्त्रियों को प्रताडित न किया जाये उन पर बाहुबल न दिखाया जाये वह उन्हें आदमी समझेगी ही नही। मै एक उदाहरण देती हूँ - जब हम कालेज में पढते थे. हिंदी की एक प्राध्यापिका जो बहुत सख्त थी. छात्र-छात्राओ के साथ अपने पति द्वारा प्रताडित थी. उस वजह से उसका तनाव उनके काम पर स्पष्ट था. उन्ही के घर में एक छोटी लडकी नौकरानी का काम करती थी, वह अध्यापिका उसको मारती थी. मेरे कहने का मतलब एक आदमी के अपनी पत्नी पर हिंसा करने का खामियाजा और कितने लोग भुगते हैं ? यदि कोई स्त्री या पुरूष कही घर में किसी के साथ भी हिंसक हो, बच्चों के साथ भाई-बहनों के साथ पत्नी या पति के साथ जानवरों के साथ तो कही न कही वह मानसिक रूप से अस्वस्थ है ।
  
कई बार हिंसक होना उनकी परवरिश व माहौल पर भी निर्भर करता है.  इसके साथ ही कई बार कुछ लोगो में कमियां रह जाती है या उसका कुंठाग्रसित होना जो अपनी झुनझुलाहट हिंसक तरीके से रिश्तों में निकालते है। और जन्म होता है घरेलू हिंसा का. जो एक बार शुरू यदि हो गयी तो इसकी परिनति बहुत ही दुखद व भयावह होती है. जो घरेलू हिंसा को सहता है वह भी उतना ही दोषी है जितना एक हिंसा करने वाला.


घरेलू हिसां के एक से एक भयानक उदाहरण है. जिनका हम वर्णन भी नही कर सकते. सबसे अधिक मामले होते है बच्चों के साथ महिलाओं के साथ व बुजुर्ग भी अपवाद नही रहे. सबसे अधिक इसकी शिकार महिलाए है, वह भी विवाह उपरान्त उनके पति द्वारा ससुराल के अन्य सदस्य जैसे ननद, जेठानी, देवरानी, देवर, जेठ एंव सास-ससुर। 


प्रेम विवाह करने वाली महिलाओ इस तरह की दिक्कतों का सामना करना होता है क्योकि प्रेमविवाह करने वाले जब घर गृहस्थी के चक्रव्यूह मे पडते है उनका प्रेम रफूचक्कर हो जाता है. किसी का सहयोग न मिल पाने के कारण पुरूष  को कही न कही यह बोध होने लगता है कि यह स्त्री ही इसका कारण है व कुछ भी सहन न कर पाने की स्थिति में वह अपनी साथी पर ही गुस्सा तथा अपनी हर गलती के लिए अपनी पत्नी पर ही हाथ उठाना शुरू कर देता है. कई बार हीनभावना से ग्रसित हो अपने साथी के प्रति हिसंक हो उठता है। 

अब हमें चाहिए कि अगर घरेलू हिंसा के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई लड़ी जाए तो लड़ी ही जाए...ताकि समाज की यह कुरुती जड़ से मिट सके! बेशक इसमें वक़्त लग सकता है मगर आज घरेलू हिंसा पर बात करके कल से खामोश होना घरेलू हिंसा को बल के सिवा कुछ नहीं देगा और यूं ही इंसानों की बेज़ारियाँ होती रहेंगी. औरतों को इंसान समझने की मानवीयता अपने अन्दर पुरुष वर्ग को जगानी ही होगी वहीं औरतों को भी (कई मामलों में) हिंसक होने से बचने का संतुलन बनाना होगा. आइये हम सिर्फ बात न करें इक पूरी मुहिम चलायें, इक पूरी लड़ाई लड़ाएं और घरेलू हिंसा को जड़ से मिटायें.
जारी है...
उल्टा तीर के लिए
[सुनीता शर्मा]

9 टिप्‍पणियां:

  1. घरेलू हिंसा अभिशाप है. यह आम तौर पर कानून की गिरफ्त से बाहर भी है. क्योंकि इसके शिकार असुरक्षा की भावना के कारण आगे नहीं आते. यह सामाजिक ढाचे का विकृत स्वरूप है. आगे आना होगा

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  2. राज्य कानून बना कर उत्तर्दायित्वा की इतिश्री कर लेता है ,किंतु कानून के सही प्रवर्तन के लिए जागरूकता की आवश्यकता होती है श्रीमती के नाम ghazal

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  3. आपकी बातें जायज़ हैं, परिवर्तन एक धीमी प्रक्रिया है, जिसे सम्पन्न होने में समय लगता है। पर एक बार यह प्रक्रिया शुरू हो जाए, तो फिर समाप्त हुए बिना नहीं रूकती। खुशी की बात यह है कि प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सम्पन्न कब होगी, यह कोई नहीं बता सकता।
    ------------------
    परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
    ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।

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  4. मेरा तो यह मानना है कि घरेलू हिंसा के पींछे पुरूष का महिला पर हावी होने की मानसिकता है सबसे पहले इन कथित पुरूषों की घटिया मानसि कता को बदलना निहायत जरूरी है हर बेटे की मां का भी यह फर्ज है वह उसे महिलाओं का सम्मान करना करना बचपन से ही सिखाये......
    http://sunitakhatri.blogspot.com
    http://swastikachunmun.blogspot.com

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  5. बहुत अच्छा और सच के करीव, शव्दों की शानदार कोशिश वुराई का नकाव उतारने की, बहस जो भी हो दायरों में वटी मानसिकता हर हाल में इंसान को जोड़ने की जगह तोड़ने का काम कुछ जल्दी ही कर जाती है, स्त्री - पुरुष, आम-खास , बच्चे - बड़े के बटवारे से बेहतर है सोच का बटवारा हो, अहसासों और संवेदनशील स्पंदन के आधार पे बटवारा हो, हर वर्ग में वेहतर लोग मिल जातें हैं, हर वर्ग में इंसान और हेवान नज़र आतें हैं, इंसान की मानसिकता उसे वहसी जैसा चरित्र देजाती है, ये जरूरी नहीं कि वर्ग विशेष से चरित्र का प्रमाण मिल जाएगा, वह्सीपन करने वाला ही वहसी कहलायेगा, कागज़ कोरा हो तो लिखाई आसान अन्यथा शव्दों की भीड़ में अक्षर वेअर्थ, बिना अहसास के, ध्वनी वनकर रह जायेंगें....

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  6. घरेलू हिंसा के बारे मे जो विचार यहां मेरे इस आलेख पर रखे उसके लिए मै अभारी हूं मै अमित जी की अभारी हूं जो उन्होने अपनी बात लोगो तक पहुचाने के लिए सार्थक प्लेटफार्म उल्टा तीर को बनाया। हमारे समाज मे बहुत विसंगतिया है जिनकी वजह से दूसरी बहुत सी समस्या पैदा हो जाती है इससे बचने के उपाय व कारणों का जिक्र बहस की अन्य आने वाली पोस्टों में.....

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  7. आज भारत भर मे विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रो मे हर दिन नर और नारी दोनों ही सह रहे है गरीबी ,अशिक्षा ,और भुखमरी जिसके कारन यदि उन्हें अपने अधिकार पता भी तब भी दो वक़्त की रोटी के लिए चुपचाप वो ये सब सह रहे है
    जय श्री राम

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  8. U r right we all are facing man and womwan too but on which cost?

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  9. बहुत अच्छा और सच के करीव, शव्दों की शानदार कोशिश वुराई का नकाव उतारने की, बहस जो भी हो दायरों में वटी मानसिकता हर हाल में इंसान को जोड़ने की जगह तोड़ने का काम कुछ जल्दी ही कर जाती है, स्त्री - पुरुष, आम-खास , बच्चे - बड़े के बटवारे से बेहतर है सोच का बटवारा हो, अहसासों और संवेदनशील स्पंदन के आधार पे बटवारा हो, हर वर्ग में वेहतर लोग मिल जातें हैं, हर वर्ग में इंसान और हेवान नज़र आतें हैं,

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)