"एक चिट्ठी देश के नाम" की श्रंखला में यह अगली चिट्ठी मुंबई से मराठी, हिंदी, अंगरेजी पर सामान अधिकार रखने वाली व कई पुस्तकों की लेखिका, वर्तमान समय में ब्लोगिंग व अन्य कई सामाजिक अभियानों में जुझारू रूप से जुड़ीं "शमा" जी ने उल्टा तीर को भेजी है. यह कम शब्दों वाली चिट्ठी में देश के प्रति लिखे गए वाक्यांश आपको हिला कर रख सकते हैं, क्योंकि यह चिट्ठी आपको अपने अन्दर झांकने को कहती है? क्या हम खुद से सचमुच इतने विमुख हो गए हैं कि हम ही एक प्रश्नचिन्ह हैं अपने आप पर? अगर आप सचमुच गंभीर हैं अपने माता रूपी देश के लिए तो यकीनन आपका हिल जाना और फिर इक नई ताकत और जोश के साथ खड़े हो जाना ही एक मात्र उद्धेश्य होना चाहिए! सीधे तौर पर बात करती हुई यह चिट्ठी प्रस्तुत है-
गर देश को हम माता मानते हैं तो ज़्यादातर देशवासी दर्शक, केवल दर्शक क्यों बने हुए है? हरेक व्यक्ति का अपनी ओर से निच्श्चय होना चाहिए इस माँ को बेहतर और बेहतर बनाने का. इस माँ की अस्मत बचाए रखने का. हाथ पे हाथ धरे न रहें. केवल राज नेताओं को दोष न दें. क्योंकि, वो लोग भी हमारे ही समाज की उपज हैं. हमारे ही माँ बहनों की कोख से पैदा हुए हैं. कहीँ अलग से निर्यात नही किए गए. तो आज हमें अपने ही गिरेबाँ में झाँकना है, देखना है कि पारिवारिक तथा सामाजिक संस्कारों में हम कहाँ चूक गए?
कहाँ हमारी घिसी पिटी न्याय व्यवथा चूक रही है. और है, तो हम कुछ क्यों नही करते...?? १९८१ से उच्चतम न्यायलय की अवमानता हो रही है...जब तक वो आदेश जो उस वक्त उच्चतम न्यायलय ने दिए थे, लागू नही होते, हम चाहे अफीम हो, गांजा हो चाहे हथियार हों...तस्करी से निजात नही पा सकते...
"आइये हाथ उठायें हम भी,
हम जिन्हें रस्मो दुआ याद नही,
रस्मे मुहब्बत के सिवा
कोई बुत कोई खुदा याद नही॥!"
याद करें इन अल्फाजों को...!
'मेरी ओरसे एक अदना-सी रचना: [रुत बदल दे !]
पार कर दे हर सरहद जो दिलों में ला रही दूरियाँ,
इन्सान से इंसान तक़सीम हो, खुदाने कब चाहा?
लौट के आयेंगी बहारें, जायेगी ये खिज़ा,
रुत बदल के देख, गर, चाहती है फूलना!
मुश्किल है बड़ा, नही काम ये आसाँ,
दूर सही, जानिबे मंजिल, क़दम तो बढ़ा!
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कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।
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बकौल लेखिका- I,
Shama a staunch Indian,have gone through many upheavals in life.There have been agonising moments,separation from my loved ones,but have also risen like the proverbial phoenix from my own ashes,time & again.How long I will be able do it is not known.But am here to share my agony & experience both.I am not atall a skilled write, yet,my devastating agony compelled me to write,without any technical knowledge of meterage etc.(Chhandme nahi likh sakti).There is prose too in english in the same blog.I hope I can communicate with my readers.Only then I will feel I have achieved something.For me communication is very important.
राईटर'स ब्लॉग:
http://shamasansmaran.blogspot.com/ http://lalitlekh.blogspot.com
एक भारतीय की चिट्ठी पसंद आई। पता नहीं कब जागेंगे हम लोग...
जवाब देंहटाएंकब शहीदों को बनावटी फूलों की श्रद्धांजलि देना बंद करेंगे।