"उल्टा तीर" पर "एक चिट्ठी देश के नाम" की कड़ी में प्रस्तुत है अगली चिट्ठी " सद्भावना दर्पण" के सम्पादक और 'साहित्य अकादमी नई दिल्ली" के सदस्य " गिरीश पंकज" जी की। कई महत्वपूर्ण बातों को उकेरती और एक ज़ज्बे को पैदा करती यह चिट्ठी कविता के रूप में विशेष तौर से गिरीश पंकज जी ने देश के नाम लिखी है, उम्मीद है हम देशवासी कविता रूपी इस चिट्ठी के भावों और ज़ज्बे को अमल में लाएंगे और अपने सपनों का एक नया भारत बनायेंगे !
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
देश हुआ आजाद मगर अब
अपना सच्चा तंत्र कहाँ है?
गाँधी जी ने हमें दिया था
वो इक देशी मन्त्र कहाँ है?
लोकतंत्र को देख दुखी है ,
अपने अल्ला, अपने राम....
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
अपनी भाषा नही बन सकी
हिन्दी, यह हैरानी है ।
महरी जैसी रहती देखो
अंगरेजी महारानी है।
देश नही भाता दिल्ली को,
लन्दन अब तक इनका धाम.
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
नेता सब राजा-महराजा,
अफसर अत्याचारी हैं,
दोनों का गठजोड़ अनोखा,
जनता बस दरबारी है।
लोक बड़ा असहाय खड़ा है ,
जीना उसका हुआ हराम।
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
उठो-उठो अब क्रांतिवीर सब
भारत नया बनाना है,
वीर शहीदों के सपनों को,
पूरा कर दिखलाना है।
जनता राजा बने उसी दिन ,
होगा लोकतंत्र सुखधाम ।
चिट्ठी लिखता देश के नाम...
आंसू बहते सुबहोशाम।
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अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया जरूर दें।
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चिट्ठियों के प्रकाशन का क्रम १५ सितम्बर तक चलेगा. इसमें आप भी अपनी चिट्टी को शामिल कर सकते हैं तो भेज दीजिये "एक चिट्ठी देश के नाम" लिखकर १२ सितम्बर ०९ तक. [उल्टा तीर]
Bohot khoob ! Ye huee na baat!
जवाब देंहटाएंAnek shubh kamnayen!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
गिरीश पंकज जी की इस कविता को मेरा शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में देश की दशा और मानसिकता की इतनी अच्छी प्रस्तुति कम ही देखने को मिलती है......
शब्द-शब्द सत्य हैं ....
ह्रदय से आभारी हूँ इस चेतना पूर्ण रचना के लिए..
धन्यवाद..
सत्य हैं ....
जवाब देंहटाएंरचना के लिए आभारी हूँ...
...वह सुबह कभी तो आएगी
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