नई दिल्ली से; समाज सेवा से जुड़े व ग्लोबल रामराज्य मल्टीवर्सिटी व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक ["करमबीर पंवार"] की यह चिट्ठी देश और आज़ादी के महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ में दशा और दिशा की ओर इंगित है. बहुत कम शब्दों में यह चिट्ठी वास्तविक आजादी की तो बात करती ही है, शिद्दत से आजादी के मिलने का संघर्ष और फिर से एक अलग सी गुलामी को भी महसूस करती है. "करमबीर पंवार" का यह मजमून आपके दिल की धडकनों को यकीनन बड़ा देगा और हममें सो सी गई देशभक्ति एवं मानवता को फिर से जगा देगा...इस चिट्ठी का अहसास हम सब देशवासियों के अन्दर देश के लिए एक नई अलख, एक नई ऊर्जा का संचार करना तो है ही...!!!जिस तरह कभी हिन्दुस्तान का अहसास सिर्फ और सिर्फ आज़ादी पाना ही था. बहरहाल, पढिये इस चिट्ठी को और दीजिये अपनी भी राय, क्योंकि यह है "एक चिट्ठी देश के नाम"-
मुझे दोनों ही बातो मै सत्यता का बोध होता है. आप कहेंगे कि मै स्वयम उलझन मै हूँ तो ये भी उसी तरह सत्य है जिस प्रकार कि स्वतंत्रता हमे मिली हुई है. आज हर ताकतवर इंसान अपने से कमज़ोर के मुंह का निवाला छीन रहा है और कानून भी उसका पूरा साथ देते है. जैसे बहुराष्ट्रीय संस्थानो को भारत भर मै विदेशी मुद्रा के लालच में अथवा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण किसी भी हद तक नियमो मै छूट दी जा रही है. विशेषकर परमाणु और सेज की आड़ लेकर
किसान से, आदिवाशियो से, मजदूर और तो और स्लम में रहने वाली आबादी से भी यदाकदा जमीं खोश ली जाती है उन्ही के कल्याण के नाम पर.
हमे और हमारे जनप्रतिनिधि को उनके सभी कानून अपने देश में भी मानने पड़ते हैं. (पूर्व राष्टपति ए.पी जे .अब्दुल कलाम) के संदर्भ में देखा जा चूका है. जबकि हम उनको अपने देश के प्रधानमंत्री के सामान या उससे भी अधिक सम्मान देते है क्या हम उनके गुलाम है ? मेरा देश उस दिन ही आजाद होगा जब कोई भी भूखा नहीं सोयेगा. हर नर हो या मादा उसको सम्मान और दो हाथ के लिए काम होगा, पढने -खेलने के लिए बच्चो के विद्यालय और खेल के मैदान होंगे.
हां यकीनन इसमें हम भी दोषी है क्यों नहीं हम आज तक वो संस्कार अपने बच्चो को दे पाए और खुद क्यों ऐशे दोगले इंसानों को अपना और अपने देश के कर्णधार बनाते है. आइये साथ हो एक नयी ताकत का निर्माण करे जो केवल सच्ची आज़ादी से पूर्व समझोता न करे क्योंकि समझोता नीति ने ही देश को दो हिस्सों मै बाटा था जिसका दर्द आज भी हमे पाकिस्तान या फिर बांग्लादेश के रूप में होता रहता है.
जय जवान जय किसान.
मेरा देश उस दिन ही आजाद होगा जब कोई भी भूखा नहीं सोयेगा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विचार अभिव्यक्ति .
Page इतनी बार पढ़ा गया ...इतनी बढ़िया चिट्ठी है , लेकिन कमेन्ट नही ? एक के अलावा...? क्या हमारी संवेदन शीलता ख़त्म हो गयी है ? हम हाथ पे हाथ धरे बैठे रहना चाहते हैं ? क्यों हर कोई खामोश है ?माँ की लुट रही अस्मत को औलाद दर्शक बने देख रही है ?
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