"एक चिट्ठी देश के नाम" प्रकाशित न करके उल्टा तीर पर आज मात्र भाषा हिंदी दिवस के मौके पर जाने-माने पत्रकार व लेखक [गिरीश पंकज ]जी की एक व्यंग कविता प्रस्तुत है. हिंदी की यथार्थवादी दशा और दिशा पर लिखी यह कविता की भूमिका लिखना मुझे कविता को सीमित करने जैसा लग रहा है, बस आप पढिये और अपनी राय भी दीजिए-
वह एक बूढी औरत*-*-*
एक बूढी औरत....
राजघाट पर बैठे-बैठे रो रही थी
न जाने किसका पाप था जो
अपने आंसुओं से धो रही थी।
मैंने पूछा- माँ , तुम कौन?
मेरी बात सुन कर
वह बहुत देर तक रही मौन
लेकिन जैसे ही उसने अपना मुह खोला
लगा दिल्ली का सिंहासन डोला
वह बोली-अरे, तुम जैसी नालायको के कारण शर्मिंदा हूँ,
न जाने अब तक क्यो जिंदा हूँ।
अपने लोगो की उपेक्षा के कारण
तार-तार हूँ, चिंदी हूँ,
मुझे गौर से देख...
मै राष्ट्रभाषा हिन्दी हूँ ।
जिसे होना था महारानी
आज नौकरानी है
हिन्दी के आँचल में है सद्भाव
मगर आँखों में पानी है।
गोरी मेंम को दिल्ली की गद्दी और मुझे बनवास।
कदम-कदम पर होता रहता है मेरा उपहास
सारी दुनिया भारत को देख कारण चमत्कृत है
एक भाषा-माँ अपने ही घर में बहिष्कृत है
बेटा, मै तुम लोगों के पापो को ही
बासठ वर्षो से बोझ की तरह ढो रही हूँ
कुछ और नही क्रर सकती इसलिए रो रही हूँ।
अगर तुम्हे मेरे आंसू पोंछने है तो आगे आओ
सोते हुए देश को जगाओ
और इस गोरी मेम को हटा कर
मुझे गद्दी पर बिठाओ
अरे, मै हिन्दी हूँ
मुझसे मत डरो
हर भाषा को लेकर चलती हूँ
और सबके साथ
दीपावली के दीपक-सा जलती
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लेखक के बारे में- लेखक सद्भावना दर्पण के सम्पादक व साहित्य अकादमी नई दिल्ली के सदस्य एवं जाने-माने पत्रकार व लेखक हैं। लेखक के नए उपन्यास मिठलबरा के बारे में कुछ - संपादको के चेहरे बेनकाब करने वाले उपन्यास मिठलबरा का दूसरा संस्करण तेलुगु में भी प्रकाशित:
पत्रकारिता की आड़ में मालिको की दलाली करने वाले संपादको की असलियत जाननी हो तो रायपुर में पिछले तीस सालो से सक्रीय पत्रकार गिरीश पंकज के उपन्यास मिठलबरा की आत्मकथा ज़रूर पढ़नी चाहिए। इस उपन्यास का नया संसकरण मिठलबरा शीर्षक से दिल्ली से प्रकाशित हो गया है. ये उपन्यास अब तेलुगु में भी अनूदित हो गया है. इस उपन्यास की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि इस कृति का उड़िया भाषा में भी पहले अनुवाद हो चुक है. मिठलबरा पर पं. रविशकर शुक्ल विस्वविद्यालय, रायपुर का एक छात्र शोध कार्य भी कर चुका है. इस उपन्यास के लिए गिरीश पंकज को मानसिक यातनाए भी झेलनी पड़ी. लेकिन इस उपन्यास के लिए उन्हें भोपाल में करवट सम्मान भी मिल गया. पत्रकारिता- माफिया ने आरोप लगाया था कि यह उपन्यास किसी पत्रकार विशेष पर लिखा गया है, जबकि गिरीश पंकज का साफ़ कहना है कि उपन्यास पत्रकारिता के भीतर चल रहे उस खेल को बेनकाब करता है, जो पत्रकारिता के मूल्यों के खिलाफ है. और जो दिल्ली से लेकर रायपुर या किसी भी शहर में खूब खेला जा रहा है. संपादक और कुछ पत्रकार मालिको की दलाली को ही पत्रकारिता समझ कर ईमानदार पत्रकारों को नौकरी से हटाने का, खेल करते रहते है. कुछ संपादक कोशिश करते है के उनके मालिक को पद्मश्री मिल जाये. बाते बड़ी-बड़ी करते है औए कंडोम का आधे-आधे पेज के विज्ञापन तथा शादी से पहले क्या सम्भोग उचित है, इस विषय पर पूरा पेज काला करते रहते है. मिठलबरा छत्तीसगढही भाषा का शब्द है, जीसका अर्थ होता है, ऐसा आदमी जो मक्कारी का खेल तो खेलता है मगर मुस्कराहट के साथ. मिठलबरा में ऐसे संपादको की खबर ली गयी है. पता चला है कि अब तो मिठलबरा का पार्ट-टू भी आ रहा है, लेकिन इसे गिरीश पंकज नहीं, दिल्ली के पत्रकार एवं फिल्म लेखक पंकज शुक्ल लिखेंगे. और यह उपन्यास होगा इलेक्ट्रानिक मीडिया में राज कर रहे मिठलबराऔ पर. मीडिया के जुझारू लोगो को इंतजार रहेगा मिठलबरा के पार्ट-टू भी.
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हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है, न हिंदी सिर्फ हिन्दुस्तान की एक संस्कृति है। हिंदी हिन्दुस्तान की भाषा और संस्कृति से कहीं बढ़कर है। हिन्दुस्तान के ९० % से भी जादा बच्चे माँ के पेट से जनम लेने के बाद पहला शब्द जो बोलते हैं वह है हिंदी। जिस ज़ुबां का अनुसरण करते हैं वह अहसास और वह मातृत्व एक ऐसे अस्तित्व का पिरोया है जिससे हम किन्हीं भी कारणों से दूर नहीं जा सकते! इस जगत में प्रवेश का रूप माँ से जुडी हिंदी को शायद इसीलिए मात्र भाषा कहा गया है। तो गुप्त होती मात्र भाषा हिंदी को बचाया रखना हम सभी का नैतिक धर्म है। आइये हम अपनी माँ की तरह अपनी मात्र भाषा को अनपे आचरण में रखें। पूरे देश को हिन्दी दिवस की हार्दिक वधाइयां।
"एक चिट्ठी देश के नाम" का सिलसिला कल से जारी रहेगा!
[उल्टा तीर]
बडी ही मार्मिक रचना है .. अपनी भाषा को मजबूत करने के लिए हमें आगे आना ही चाहिए .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंमुझे गौर से देख...
जवाब देंहटाएंमै राष्ट्रभाषा हिन्दी हूँ ।
जिसे होना था महारानी
आज नौकरानी है.
आपने बहूत अच्छा लिखा।
आप को हिदी दिवस पर हार्दीक शुभकामनाऍ।
पहेली - 7 का हल, श्री रतन सिंहजी शेखावतजी का परिचय
हॉ मै हिदी हू भारत माता की बिन्दी हू
हिंदी दिवस है मै दकियानूसी वाली बात नहीं करुगा-मुंबई टाइगर
MAARMIK RACHANA.......SATYA WACHANA
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी रचना!!
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
जय हिन्दी!
काफी बढ़िया रचना है। खास तौर पर गौरी मेम का अलंकारं। मज़ा आ गया। हिन्दी दिवस पर मैंने भी कुछ लिखा है, कृपया पढियेगा।
जवाब देंहटाएंदेश को जगाओ गोरी में को हटा कर मुझे गद्दी पर बिठाओ, मैं हिंदी हूँ.
जवाब देंहटाएंबने सुग्घर रचना हवे गिरीश भैया,नाम ला सुने रहेंव पर दरशन घलो पा डारेंव गा,बने लागिस,अतका हावय मया ला जहाँ भुलाबे संगी औ बने सुग्घर गोठ कहत रहिबे,
लेखक ने सभी हिंदी प्रेमियों को झकझोर कर रखा दिया है इस रचना के द्वारा जो कहते है की हिंदी देश की राजभाषा है क्या राजभाषा को सविधान भी वो सम्मान दिला पाया जो राजभाषा का होना चाहिए था
जवाब देंहटाएंक्या ऐसे सविधान को ही नहीं जला कर राख कर देना चाहिए ऐसे अनेक काले कानून है जो आज भी भारत देश की स्व्तान्र्ता की खिल्ली उडा रहे है
लेखक को सप्रेम धन्यवाद