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रविवार, 14 मार्च 2010

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी...!!!


बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक काफी जद्दोज़हद के बाद आखिर संसद का राज्यसभा में पेश हो गया. कुछ सहयोगी विपक्षी पार्टियों के हो हल्ला और वाकआउट के बावजूद यूपीए की सरकार चौदह साल बाद संसद उच्च सदन में बिल के पक्ष में १८६ मत और विरोध में १ मत हासिल कर महिला आरक्षण विधेयक का पहला बैरियर पार कर लिया. लेकिन सहयोगी विपक्षी पार्टियों के नेताओं की जाति आधारित महिलाओं ला आरक्षण की मांग पर किए जा रहे हंगामे से पता चलता है कि यूपीए की सरकार इस बिल को लोकसभा में अभी लाने के मूड में नहीं है. महिला आरक्षण विधेयक को अपनी मंजिल तक पहुंचने में अभी काफी लम्बा सफ़र और बैरियर्स का सामना करना पड़ेगा. सरकार के ढुलमुल रवैए से साफ हो जाता है कि " न नौ मन ताल होगा न राधा नाचेगी." न महिला आरक्षण विधेयक पर राजनीतिक आम सहमती बनेगी और न यह बिल अपनी परिणति को प्राप्त होगा.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ( ८ मार्च ) को पूरे विश्व ने अपने तरीके से मनाया. भारत ने भी कुछ अनूठे अंदाज़ में इसे मनाया. देश की आधी आबादी ( ४९.६५ करोड़ ) के अरसे से लंबित लोकसभा व राज्यसभा में ३३ प्रतिशत आरक्षण की मांग के बिल को राज्यसभा में पेश कर मनाया. ये और बात है कि सरकार को इस बिल को अमली जामा पहनाने में पूरी कामयाबी हासिल नहीं हुई है. आम जनता महंगाई की आग में जल ही रहि थी कि उस आग को नज़रअंदाज़ कर सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक का शिगूफ़ा छोड़ दिया. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि देश में जब भी कोई घोटाला, आम जनता से जुड़ी कोई घटना या दुर्घटना होती है तो सरकार लोगों को भरमाने के लिए एक जांच समिति गठित कर देती है. जांच शुरू हो जाति है. उस जांच में एक पीढ़ी जवान हो जाति है और एक पीढ़ी का अवसान हो जाता है. फिर भी जांच चलती रहती है. कोई कमी रह जाने पर दूसरी जांच समिति गठित कर दी जाती है. जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई को जांच समिति की सुविधा सेवा में खर्च कर दिया जाता है. वैसे भी हम भावुक भारतीय लोग प्रवृत्ति से काफी भरमशील और भूलनशील होते हैं. इसलिए, कौन सी समिति कब बनी ? उसने क्या किया ? उस पर कितना धन खर्च हुआ ? आम लोगों को उससे कितना फायदा पहुंचा ? समय बीतने पर सब भूल जाते हैं. सरकार जांच समिति का खेल खेलती रहती है. 

आम जनता अभी इसी सवाल के जवाब ढूढ़ने में उलझी थी कि एनडीए शासनकाल में हर तीसरे दिन गैस सिलिंडर वाला कहाँ से गैस लेकर आ धमकता था. और वर्तमान सरकार समय में ऐसा क्या हो गया कि महीनों बुकिंग के बाद भी गैस नहीं मिलती. आम आदमी की जरूरत की चीज़ें उसकी पहुँच से दूर होती जा रहि है. कमरतोड़ महंगाई ने आम आदमी के चाय की चुस्कियों के स्वाद " शुगर फ्री "  कर दिया है. ऐसे समय में महंगाई की धूप से ध्यान हटाने के लिए सरकार ने ३३ प्रतिशत के जिन्न को जनता के बीच छोड़ दिया. 

३३ प्रतिशत आरक्षण को पेश करने के लिए राज्यसभा को ६ बार स्थगित करना पड़ा. आरक्षण बिल की प्रतियों को विरोधियों ने द्रौपदी के चीरहरण की मानिंद फाड़कर चिंदी-चिंदी कर दिया. बिल की पार्टियों को फाड़ने वाले पुरुषों ने अपने कृत्य से आधी आबादी को संकेत दे दिया कि- " अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आंखों में पानी."  वे कभी आधी आबादी को पूरी आबादी में तब्दील होने देना नहीं चाहते. हालाँकि इस अमर्यादित कृत्य के लिए उन सात सांसदों को निलंबित कर दिया गया. लेकिन क्या निलंबन से आधी आबादी के आँचल पर उछाले गए कीचड़ के दाग साफ हो पायेगा ? शायद, हो भी जाए, क्योंकि भारत की आधी आबादी में भावुकता ३३ प्रतिशत से ज्यादा पायी जाति है. तभी तो कबीर ने कहा है कि- " नारी की झाईं परत, अंधा हॉट भुजंग, कबिरा तिन की कौन गति, नित नारी को संग." 

जिन्हें अपना आधार खिसक जाने का डर सता रहा है वे महिला आरक्षण विधेयक को हरसंभव पारित नहीं होने देंगे. उन्हें यह भय सताता है कि जिस दी आधी आबादी उनके समक्ष अपने बहुमत के साथ बैठेगी तो अपने बातों के बेलन से छुद्र राजनेताओं की बोलती बंद कर देगी. इसलिए, बिल के विरोधी नेताओं ने जाति आधारित आरक्षण का पासा फेंककर ३३ फीसदी के बिल को बिलबिलाने पर मजबूर कर रहे है.

जिस मुल्क में दुनिया की सर्वाधिक योग्य पेशेवर महिलाएं हैं. जहां अतिविकसित अमेरिका से ज्यादा महिलाएं डाक्टर, सर्जन्स, वैज्ञानिक और प्रोफेसर्स हैं. दुनिया की सबसे ज्यादा कामकाजी महिलाएं जिस मुल्क में हैं, वह भारत देश अपने पड़ोसी मुल्कों से बहुत पीछे है. ११५ करोड़ आबादी वाले हम भारतियों के लिए यह निहायत शर्म की बात है. हम भारत को इक्कीसवीं सदी का भारत बनने का सपना देखते हैं. जब हम ३३ प्रतिशत स्थान तक महिलाओं को नहीं दे पा रहे तो इक्कीसवीं सदी के भारत का सपना कैसे पूरा होगा ? 

इस व़क्त मुझे मुनव्वर  राना साहब द्वारा रचित कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं. आपकी पेशे-नज़र करता चलूँ...

'धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारे घर के
मैं समझती थी कि काम आएगा बेटा अपना.'
'मुकद्दर में  लिखाकर आए हैं हम दरबदर फिरना
परिंदे, कोई मौसम हो परेशानी में राहते हैं.'
'बोझ उठाना शौक कहाँ है, मजबूरी का सौदा है
राहते-राहते लोग स्टेशन पर कुली हो जाते हैं.'
[प्रबल प्रताप सिंह]

12 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा आलेख...जाति आधारित आरक्षण तो बस सियासी चाल है इन लोगों की.

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  2. विचारणीय मुद्दा है । राना साहब के शेर अच्छे लगे ।

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  3. -उल्टा तीर के जागरूक पाठक "नवनीत शर्मा" द्वारा मेल से भेजी गई प्रतिक्रिया-

    एक सौ बीस करोड़ की आबादी में महिलाओं की संख्या आधी है यानि ६० करोड़. हमारी संसद और कुल विधान सभाओं की सदस्य
    संख्या साढ़े चार हज़ार के करीब, जिनमे से एक तिहाई महिलाओं के लिए अर्थात कुल डेढ़ हज़ार महिलाओं के लिए है आरक्षण, यह है महिलाओं का सशक्तिकरण . साठ हज़ार महिलाओं के अधिकारों की उपेक्षा और पांच छः हज़ार महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उन्माद की स्थिति, इससे बड़ा मानव अधिकारों का मजाक क्या होगा?

    क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि महिला आरक्षण के बहाने नेतागण संसद में आह्वान कर रहे हैं कि.." हे महिलाओं संसदीय व्यवस्था में आओ और हमारे भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बनो. तभी आपका समुचित सशक्तिकरण होगा".

    आरक्षण और गुणवत्ता साथ-साथ नहीं रह सकते. हमारी संस्थाओं का, हमारे तंत्र का ह्रास (भ्रष्ट)होने का प्रमुख कारण आरक्षण है. गरीब और पिछड़ों को शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मुफ्त उपलब्ध कराइये. उनका गुणात्मक सुधार कीजिये, लेकिन गुणवत्ता के साथ कोई समझौता मत करिए.

    नवनीत शर्मा

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  4. bilkul yatharth saty kaha aapane na nau man tel hoga na radha nachegi.
    poonam

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  5. jaan vardhak lekh sochne ko ko badhy karta hai ....achchi kosish hai

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  6. जो भी हो रहा है आधे अधूरे मन से हो रहा है.राजनैतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है.

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  7. mujhe to ye samajh me nahi aata ki ek achha neta banne ke liye aarakshan ki kya aawashyakta hai...
    agar aap saksham hain to jeet kar jayein....

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  8. meri nayi rachna jaroor dekhein, aapki pratikriya ka intzaar rahega...

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  9. यह विचार का मुद्दा है,पर कहा जा सकता है कि चौदह वर्ष का वनवास समाप्त हो गया क्योंकि राजनेता इसे राज्यसभा में तमाम मुश्किलों के बावजुद पारित करा सके।

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)