बुधवार, 10 मार्च 2010
धर्म या जाति
आज समाज धर्म या जाति के भंवर में ऐसा फंसा हुआ है कि उचित-अनुचित की सुध-बुध ही खो सी गयी है! धर्मान्तरण पर तो चर्चा खूब जोर-शोर से होती है लेकिन इस पर गौर नहीं किया जाता के ये हो ही क्यों रहा है!
यदि हम देखे तो जो हिन्दू बहुत गरीब या अनपढ़ है वो ही धर्म परिवर्तन जैसी गलतिया कर रहे है! उनमे भी अधिकतर वो हिन्दू है जिनको कुछ "विशेष हिन्दू" बड़ी घृणा की दृष्टी से देखते है! जो जैसा भी है उसको वैसा ही सम्मान तो मिलना ही चाहिए! ये तो ठीक है पर दण्ड तो अपराधी को ही देना चाहिए!
तो उस गरीब, अनपढ़ हिन्दू का यही अपराध है के वो एक हिन्दू है! वो बेचारा क्या करेगा? जिन आँखों में उसे अपने लिए सम्मान दिखाई देगा वो तो उन्हें ही अपना हमदर्द समझेगा, यही होना भी चाहिए! उन भोलो-भालो को नहीं पता के ये सम्मान नकली है, या ये कोई षड़यंत्र है!
मेरे एक मित्र की भावनाए जो मैंने महसूस की, उनको अपने शब्द देने की कोशिश की है! यदि शब्द भी उसी के प्रस्तुत कर दू तो "विशेष हिन्दुओ" को शर्म में डूब मरने के सिवाए कुछ रास्ता भी दिखाई ना दे!
'तुम' कह रहे हो
टपका दो ये आंसूं,
जो आँखों में
अटक गया है!
टपक जाएगा,
पहला तो नहीं टपकेगा!
तुम कह रहे हो
मत पछताओ,
जो हो गया
सो हो गया,
पहली बार तो नहीं हुआ है!
अरे जब
है 'मै' और 'तुम'
तो
'हमारे' और 'तुम्हारे'
तो होंगे ही!
तुमने तो कह दिया!
मै कैसे कहूं...?
कैसे कहूं कि
कल तक 'हमारो' में हमारा था मै!
आज
"हमारो" में "तुम"
हो के आया हूँ,
'अपनों' में 'तुम' हो कर
अब
रोऊँ मै किसके आगे?
उनके आगे
जो हमारे कभी बताये ही नहीं गए,
या फिर
उन अपनों के आगे
जो अपने ही दिखाई नहीं दिए!
"अपनापन" कहीं गिर ना जाए"
'तुम्हारो' की नज़र में
इसीलिए
नहीं टपकता
ये आँखों में अटका आंसू!
हमें जागना होगा, छोड़ना होगा ये झूठा दंभ! हर किसी में परमात्मा बताता है अपना धर्म, उनमे भी जिनको हम अपने घर में घुसने नहीं देते, अपने आसनों पर बैठने नहीं देते और तो और जो सबसे हास्यास्पद है, अपने भगवान् को भी पूजने नहीं देते! इस से पहले की कोई और क्षुब्ध, आक्रामक, असंतुष्ट धर्म जन्म ले हमे सब में परमात्मा देखना ही होगा!
क्या इस बार ये तीर उल्टा कर यहाँ चल सकता है? इस पर चर्चा होनी चाहिए कि क्या कोई जाति धर्म से श्रेष्ठ हो सकती है! कोई कैसा क्यूँ है इसके कोई भी कितने भी कारण दे सकते है! लेकिन हम किसी के साथ कैसा भी व्यहार करते उसके कारण केवल हम दे सकते है जो कि हमारे चरित्र को, हमारे वयक्तित्व को दर्शाने वाले होते है!
[कुंवर जी]
मैं उम्मीद करता हूँ कि इस विषय पर उल्टा तीर पर आगामी समय में विस्तृत रूप से चर्चा-बहस होगी! बहरहाल, [...ताकि रिश्तों को टूटने से बचा पायें- शादी से पहले क्या...] पर हम सभी मिलकर एक सार्थक बहस, चर्चा करें और किसी निष्कर्ष पर पहुचें इसकी मैं लेखकों एवं सभी पाठकों से अपनी-अपनी राय रखने की अपील करता हूँ!
[अमित के सागर]
6 टिप्पणियां:
आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
--
बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
--
आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
--
आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
"एक चिट्ठी देश के नाम"
(हास्य-वयंग्य)
***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे
**विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका
१५ अगस्त
8th march
अखबार
आओ आतंकवाद से लड़ें
आओ समाधान खोजें
आतंकवाद
आतंकवाद को मिटायें..
आपका मत
आम चुनाव. मुद्दे
इक़ चिट्ठी देश के नाम
इन्साफ
इस बार बहस नही
उल्टा तीर
उल्टा तीर की वापसी
एक चिट्ठी देश के नाम
एक विचार....
कविता
कानून
घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा के कारण
चुनाव
चुनावी रणनीती
ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के
जनसत्ता
जागरूरकता
जिन्दगी या मौत?
तकनीकी
तबाही
दशहरा
धर्म संगठनों का ज़हर
नेता
पत्नी पीड़ित
पत्रिकारिता
पुरुष
प्रासंगिकता
प्रियंका की चिट्ठी
फ्रेंडस विद बेनेफिट्स
बहस
बुजुर्गों की दिशा व दशा
ब्लोगर्स
मसले और कानून
मानसिकता
मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला
युवा
राम
रावण
रिश्ता
व्यापार
शादी
शादी से पहले
श्रंद्धांजलि
श्री प्रभाष जोशी
संस्कृति
समलैंगिक
साक्षरता
सुमन लोकसंघर्ष
सोनी हसोणी की चिट्ठी
amit k sagar
arrange marriage
baby tube
before marriage
bharti
Binny
Binny Sharma
boy
chhindwada
dance artist
dating
debate
debate on marriage
DGP
dharm ya jaati
Domestic Violence Debate-2-
dongre ke 7 fere
festival
Friends With Benefits
friendship
FWB
ghazal
girls
http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems
indian marriage
law
life or death
love marriage
mahila aarakshan
man
marriage
marriage in india
my birth day
new blog
poetry of amit k sagar
police
reality
reality of dance shows
reasons of domestic violence
returning of ULTATEER
rocky's fashion studio
ruchika girhotra case
rules
sex
SHADI PAR BAHAS
shadi par sawal
shobha dey
society
spouce
stories
sunita sharma
tenis
thoughts
tips
truth behind the screen
ulta teer
ultateer
village
why should I marry? main shadi kyon karun
women
[बहस जारी है...]
१. नारीवाद
२. समलैंगिकता
३. क़ानून (LAW)
४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM)
५. हिन्दी भाषा (HINDI)
६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद
७. बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ "
८. आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS)
९. एक चिट्ठी देश के नाम
१०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS)
११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE)
१२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले?
१३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)
बहुत बढ़िया. समाज में समरसता बनाने की आवश्यकता है, न कि विद्वेष फैलाने की.
जवाब देंहटाएंकुवर जी
जवाब देंहटाएंसागर जी को ऐसे मुद्दों का सुझाव देने के लिए धन्यवाद यदि आप इस पर कोई अन्य लेख लिखना चाहते है तो सागर जी को जरूर बताये
-उल्टा तीर के जागरूक पाठक "डॉ.वेद शर्मा" द्वारा मेल से भेजी गई प्रतिक्रिया-
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत कुछ सच लिखा है पर एक तरफ तो अंत हीन आरक्षण जो एक हथियार के रूप में प्रयोग हो रहा है क्या आज के समाज में वर्तमान आरक्षण का उपयोग उचित हो रहा है? इस पर भी तो विचार करें
डॉ.वेद व्यथित
समाज में समरसता बनाने की आवश्यकता है....
जवाब देंहटाएंब्रह्मण परिवार में जन्म के साथ ही , कुछ न कहे गए संस्कार भी आप पा लेते हो , ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी था , हालाँकि न तो मुझे कोई दंभ था न ही कोई द्वेष , "जिक्र " बस इसलिए की आपका आलेख किसी पुरानी घटना को जीवंत करता चला गया ॥
जवाब देंहटाएंलगभग २ दशक पहले , आंगन में भूक से कर्हती आवाज़ सुनी , कोई ६० बरसातों का भीगा हुआ ढांचा , दो मुट्ठी चांवल की गुहार किये जा रहा था । माँ घर पर न थी और रसोई का मेरा ज्ञान बस पेट भर भोजन तक ही था ,सो "चांवल" के अस्तित्व का आभास न था , फिर भी माँ ने कुछ रोटियां रखी थी सो ले आया , थाली में , कटोरी और गिलास भी थे , बिलकुल जैसा मुझे परोसा जाता था वैसा ही , जून की गर्मी से पथराई ऑंखें यकाय आश्चर्य और भय से तिलमिला उठी , "ये क्या करते हो , बाबु दो मुठी चांवल दे दो काफी होगा " , उस ब्ल्यावस्था में मुझे समझ नहीं आया की अगर ये भूखा है तो खा क्यूँ नहीं लेता ? पुछा ,तो जैसे मैंने उसके मरे हुए वजूद को लात मरी हो ....
वो उठा बिना कुछ लिए ... शायद आशीर्वाद देना चाहता था , क्यूंकि मुद्रा वाही थी ... यकायक रुका ... कुछ सोचा... बोला "मै अछूत हूँ बाबु "।
२० वर्ष हो गए , और आज भी , ये शब्द शायद सुनाई न दें ,पर कही न कही मेहसूस हो ही जाते हैं ... खेद है , किन्तु आश्चर्य ज्यादा है .... की फिर भी हम विकासशील देशो की दौड़ में सबसे आगे हैं .......
mahoday!
जवाब देंहटाएंbahut prabhavkari hai aap ka lekh.
Dr.Danda Lakhavi