"क्या नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है?" पर पिछले कई दिनों से चुप्पी छाई हुई है। लोग आते-जाते हैं, देखते हैं "हाले-वार्ता" अब क्या है? और चले जाते हैं...यूँ तो उन्हें गालियाँ देने तक की जरुरत नहीं लगती...तो इसका मर्म वो क्या खाक समझेंगे?।
इस बहस के संबंध में २-४ जगह और भी लिखा गया है, जो दर्शाता है कि इसे अपना ही मुद्दा समझ; उचित -अनुचित के भले के लिए संवेदनाएं तो निकल रही हैं...लेकिन थोडी दूर चलते ही न भाव का पता चलता है न निष्कर्ष की ओर कोई कदम बढता है। ये वो कदम है जो राजनीती व कानूनों के नक्शे-कदम पर ही चलना सीख पायेंगे, इन्हें जबरन बेल की तरह हांका जायेगा तब ये न चाहकर भी इस राह पे चलते जायेंगे। यूँ तो इस बहस का इसका कतरा-कतरा हममें ही डूबा है...मगर हम खुदको इससे बचाकर कोई सीधा तीर चलाने में कामयाब हो रहे हैं...जो शायद भलाई के रास्ते प्रदान करता हो, मगर ये बचकाना ही है., ये महज़ दुबकने की प्रक्रिया है, जो बिना धमाकों के आंसू तक नहीं लाती। मानवीय भलाई के लिए बहस आज समाज की इक़ बड़ी ज़रूरत है।
कुछ लोगों को तो वास्तव में "बहस" है क्या और क्यों इस बात का भी इल्म नहीं लगता! मगर वो लिख रहे हैं कि कुछ लोग (स्त्री-पुरूष) नारी को लेके न जाने कौन सी राजनीति पढ़-पढा रहे हैं...नारियों के खिलाफ जा रहे हैं...(इकदम नकारने वाली बेहूदगी;-बुरा बेशक लगे...और अगर यूँ भी हो तो मैं जानता हूँ की ब्लड प्रेसर का स्तर बढेगा...पर उम्मीद मत करना कि मैं वन टू वन करूंगा...और आप अपना गुबार मुझ पर उतार कर हल्का महसूस करोगे...चूँकि अगर ये ध्येय इस बहस का होता तो अब तक न जाने क्या होता, हाँ, मैं शुक्रगुजार रहूंगा...आप सबका...आप गालियाँ दोगे तब भी...और अपनी जिम्मेदारी की बाबत कुछ कहोगे तब भी!!
कुछ लोग शर्मशार हैं...बस चुपचाप देख रहे हैं...देखो आगे-आगे होता है क्या? हाँ, शायद अब तक बहस का ध्येय ही समझ नहीं आया हो लोगों को? या फिर जानबूझ के अनजान बन रहे हों? तो बहुतियात की ये भी होशियारी है कि मैं कल मोस्ट टॉप ब्लोग्गर न बन जाऊं?
अंततः मुझे अपने मित्र "करमबीर पंवार" की इक़ बात याद आती है जोकि जब हम इसी बहस को लेके चर्चा कर रहे थे तब उन्होने कहा था " सागर, संवेदनहीन समाज में संवेदना आती ही नहीं है! तो क्या ये अब मान लिया जाए? इस ताने-बाने को यूँ ही छोड़ दिया जाए? "
अपनी राय प्रतिक्रियाएँ भेजते रहिये क्योंकि बहस अभी जारी है मेरे दोस्त...
जो भी लगे बस लिख दीजिये !!
MAI AAPSE POORI TARAH SE SAHMAT HOON KI NAARIWAAD MAKKAR PURUSHON KI DAIN HAI. NAARI KA KAAM HOTA HAI PARIWAR KO SAMBHALNA. JAB HUMSE NAARI NAARIWAAD KI BAAT KARTI HAI TO HUM USE YE HE JAWAB DETE HAIN KI JAB NAARI HAR FIELD ME 50% RESERVATION MAANG RAHI HAI TO PHIR BAS ME JAB KHADE HONE KI BAARI AATI HAI TO WAHAN PER NAARI PURUSHON SE SEAT K LIYE KYON FARIYAAD KARTI HAIN KI KOI SEAT DE DO. AGAR 50% RESERVATION CHAHIYE TO BUS ME BHI 50% LADIES KHADI HOKAR DIKHAO".
जवाब देंहटाएंAND ACCORDING TO QURAN ALLAH SAYS "HUMNE MARD KO AURAT PER HAKIM BANAKAR PAIDA KIYA HAI"
जो नर नक्कारा,बदचलन और कामचोर होते है वह नारी को बहला फुसला कर उसके परिवार और समाज से उसका नाता ख़त्म करते फ्हिर बाद मैं उसका शोषण करते उसके बाद अक्सर नारी के पास कोई अन्य उपाए नहीं होता वह वही करती जो नर चाहता है वह रात दिन मेहनत करती है लेकिन और वह नर उसकी मेहनत की कमाई से मौज लूटता है आराम से लेटे लेटे नारी के जिस्म को नोचता है पशु के समान उसे कार्य लेता है और नारी जब आराम करना चाहती है तो नर उसे पिछड़ जाने का डर दिखा कर काम करते रहने के लिए विवश करता है केवल यह कहा जाये की घर के अन्दर रहने वाली नारी कुछ अर्जन नहीं करती तो केवल यह झूट है बल्कि नारी के योगदान की गम्भीर उपेक्षा है नारी घर मैं रह कर ने केवल अपने पति को जीविका उपार्जन के लिए मोका देती है बल्कि सवयम घर पर रह कर बच्चो का चरित्र निर्माण जैसी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह करती है साथ ही अन्नपूर्णा के रूप मैं घर आये अतिथि तथा परिवार के अन्य रिश्तेदारों की भी समय और भोजन देकर सम्मान करती जिसे परिवार मैं अन्य लोगो की मदद का जज्बा भी बढाती है परिवार को एक रखना उसमे देशप्रेम की भावना का निर्माण,मनाविये गुणों का विकास करती है ये एक नारी के लिए बहुत बड़ी चुनोती होती है ओरत परिवार की जिम्मेदारी जिस उतम तरीके से निभाती है वह सरहानिये है समाज के निर्माण मैं क्या उन्होने ही अपनी सन्तान को सही शिक्षा देकर आज नर को चाँद तक नहीं पहुचया है उसी नारी ने राम जेसी सन्तान को भगवान के बराबर बनाया क्या नारी आज से पहले गुलाम थी जो उसे स्वतन्त्र कराया जाये आपने अपनी माँ-पिता, दादा-दी,नाना-नी किसी को भी नर-नारी के आधार पर जुल्म करते देखा है माता -पिता को तो हमेशा अपने बच्चो की चिंता रहती है जिस कारण अक्सर वह कुछ जरुरी सलाह देते है या आपकी किसी नारी साथी ने यह कहा है की उसको उसका भाई ,पिता,प्रेमी, पति जिस के साथ वो जीवन की खुशिया देखना चाहती है वह उसको दबा कर रखना चाहता है कहा है नहीं जहा भी रिश्ते मधुर होते है वह कोई भी किसी दुश्रे पक्ष को दबा कर नहीं रखना चाहेगा लेकिन यदि वही भाई पति या पिता जो संरक्षण के लिए उतर्दायी है उसका भरनपोषण न करके स्वयम का भरनपोषण नारी से करवाता होगा तो क्या वह उसे घर पर आराम करने देगा नहीं ........बल्कि वह उसे अपने हितपूर्ति के लिए काम करने की प्रेरणा देगा अक्सर आपने अपने आसपास देखा भी होगा ओरत को सभी जगह चाहे वह राजनीति हो अथवा अर्थनीति नारी को केवल मुखोटा बना कर इस्तेमाल किया जाता है और वह सभी फायदा उठाने का प्रयाश किया जाता है जिससे नक्कारा,बदचलन और कामचोर पुरुष नेतृत्व को लाभ हो ?
जवाब देंहटाएंकुछ स्वार्थी तत्व हमेशा इसी तरह हर जगह नारी को बरगलाकर उनसे फायदा उठाते है लकिन इसका नुकशान आप आज समाज मैं गिरते हुए नारी सम्मान के रूप मैं देख सकते हो
उल्टा तीर ब्लोग पर जारी बहस को पड़ने पर मुझे लगा की इस पर बहस जरी रहे और यदि कोई हल मिले तो इसे नर और नारी जो एक दुसरे के पूरक है को जरूर बताया जाये
धन्यवाद
लेखक मोह्दये
"क्या नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है?"
जवाब देंहटाएंबहस वाले उल्टे तीर पर ...
आप मेरा स्वागत तो क्या कीजिएगा ...
फ़िर भी अपनी बात मैं रख देता हूँ ...
"क्या नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है?" - इस ब्लॉग की बहस का मुद्दा कोई नया नहीं है ...
पर मेरे भाइयों नारीवाद का विचार सिर्फ़ पुरुषों की देन है ... यह आपसे किसने कह दिया ...
आप फ्रांस मशहूर लेखिका सिमोन डि बेवर को शायद जानते होगें ... नारीवाद का विचार उन्हीं की देन है ...
उनकी किताब द सेकंड सेक्स पढ़ें. आपको काफी पसंद आएगी .
प्रभा खेतान ने इस पुस्तक के आरंभिक पन्नों पर कहा है कि वे चाहती हैं कि अधिकाधिक संख्या में लोग इसे पढ़ें.
सिमोन द बोउआ का यह कथन दुनिया भर में उद्धृत किया जाता है कि स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। अर्थात आज हम जिस स्त्री को जानते हैं, वह जैविक से अधिक सांस्कृतिक इकाई है।
स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। ...
इस बात को याद किया जाना चाहिए ...
अपनी मैं जारी रखूँगा ....
शुक्रिया
जो कुछ हो रहा है; सिर्फ एक पोलिटिकल स्टंट है!....इससे आम लोगों को- न स्त्रिओं को और न ही पुरुषों को- कोई फयदा पहुंचने वाला है!....बहुत बढिया सब्जेक्ट चुना है....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तृति! जो कुछ हो रहा है; सिर्फ एक पोलिटिकल स्टंट है!....इससे आम लोगों को- न स्त्रिओं को और न ही पुरुषों को- कोई फयदा पहुंचने वाला है!....बहुत बढिया सब्जेक्ट चुना है....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तृति! जो कुछ हो रहा है; सिर्फ एक पोलिटिकल स्टंट है!....इससे आम लोगों को- न स्त्रिओं को और न ही पुरुषों को- कोई फयदा पहुंचने वाला है!....बहुत बढिया सब्जेक्ट चुना है....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजो कुछ हो रहा है; सिर्फ एक पोलिटिकल स्टंट है!....इससे आम लोगों को- न स्त्रिओं को और न ही पुरुषों को- कोई फयदा पहुंचने वाला है!....बहुत बढिया सब्जेक्ट चुना है....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"क्या नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है?"
जवाब देंहटाएंकिसी भी मुद्दे पर विचार-विमर्श से पहले मुद्दा क्या है इस पर सहमति हो जानी चाहिए. पहले तो इस पर सहमत हों कि नारीवाद क्या है. फ़िर इस पर विचार करें कि नारीवाद का विचार किस की देन है, पुरुषों की या नारियों की? क्या बहसकार यह बताएँगे कि नारीवाद क्या है?
ulte teer ji namaskar is subject par kya kahoon abhi research jaari hai
जवाब देंहटाएंaacha likha aur ye bahas ka koi bahut bada mudda nahi naari se apna dhyan hata kar aap philhal padai mein lagain to behtar hoga
जवाब देंहटाएंनारीवाद की विचारधारा वास्तव में कुछ मक्कार /भ्रष्ट सद-आचरण से छुटकारा पाने की चाह रखने वाली पाश्चात्य नारियों ने की और एसी ही नारियां-पुरुष इसको आगे बढने मे रुचि रखते हैं...
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