...और पुलिस ने आरुषी हेमराज हत्या का परदा फाश कर दिया । आरोपी और कोई नही बल्कि आरुषी के पिता ने ही उसकी हत्या की । आरुषी की मौत बीते पूरे हफ्ते मीडिया की सबसे अहम् खबर रही । टेलिविज़न की ख़बरों मे पिछले हफ्ते केवल आरुषी मर्डर ही मुख्य हेडलाइन रहा । और तो और इस ख़बर के कारण जयपुर ब्लास्ट जैसी अहम् ख़बर भी नेपथ्य में चली गयी । इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने अपनी पूरी ऊर्जा और ताक़त संसाधन बस नॉएडा के इस डबल मर्डर पर ही झोंक दी । हर घर मे हर गली में जेम्स बोंड /गोपीचंद जासूस पैदा हो गए ? ये मर्डर लोगो की पे चढ़ गया, कुछ मुद्दे दब गए, कयासों का बाज़ार गर्म हो गया। लोग इस पहेली को अपने अपने ढंग से सुलझाने लगे । हमारे सवाल इस मर्डर की गुत्थी से भी बड़े हैं "क्या बड़े शहरों मे मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ने लगी है ? " परिवार टूटने और बिखरने लगे हैं ? रिश्तो के मायने बदलने लगे हैं? नारीवाद पर हमारी बहस अब अभी भी जारी है...इस मर्डर केस ने एक तरह से हमारे उस दावे को मजबूती दे दी है। जिसमे हमारे एक पाठक ने ये कहा था कि वक्त आ गया है कि अब टूटते बिखरते परिवारों को सँभालने के लिए महिलाये घर के भीतर आ कर परिवारों को सहारा दे । कुदरती तौर से महिलाएं प्रेम शक्ती की अद्भुत कृति हैं। महिलाएं परिवार के दायित्व को समझे तभी जाकर भविष्य में इस तरह की वारदात नही घटेंगी । आज बड़े शहरों मे माँ और बाप काम पे चले जाते हैं । बच्चे घर मे दोनों के प्यार के लिए तरसते रह जातें हैं । नई पीढ़ी माँ बाप के प्रेम से वंचित है। आरुषी का केस इसलिए (खास तौर से समूची नारी जाति के लिए एक आई ओपनर है। यही घड़ी है नारी समाज अब समाज राष्ट्र भावी पीढ़ी के हित में घरो की ओर अपना रुख कर ले। कहीं ऐसा न हो कोई आरुषी फिर शिकार बन जाए ..ज़रा सोचिये !!
ये तो हुआ बहस का एक पहलू जो हमे एक पाठक ने भेजा है। इस राय पर अपने विचार दीजिये क्योंकि बहस अभी बाकी है मेरे दोस्त !! "उल्टा तीर" पढ़ते रहिये.
**उल्टा तीर मे प्रकाशित किसी भी विचार के लिए ब्लॉग मोडरेटर की कोई जिम्मेवारी नही है। पाठक के अनुरोध पर उनका नाम गोपनीय रखा गया है।
अमित जी आपके सवाल का जवाब मैंने यहाँ दिया है ..आपके विचार वहाँ आमंत्रित हैं ..क्यूंकि वाकई अभी बहस जारी है :)
जवाब देंहटाएंhttp://ranjanabhatia.blogspot.com/2008/05/blog-post_24.html
अमितजी ,आपकी बहस ने वाकई में कई सवाल खडे कर दिए हैं .लेकिन मैं आपके ब्लोग पर इस बहस के सूत्रधार (आपके पाठक ) से कुछ मामलों मे नारी होते हुए भी सहमत हूँ .यकीनन ये बात सौलह आने सच है कि समाज में संस्कारों अच्छे विचारों और मानवीय मूल्यों की जननी सिर्फ और सिर्फ नारी ही है . बहस के सूत्रधार से मैं इस बात पर भी सहमत हूँ कि प्रकृति ने नारी जाति को भावनाओं से भरकर समाज को एक नया अर्थ प्रदान किया है . अब सवाल उठता है कि क्या केवल नारी की ही ये जिम्मेदारी है .दरअसल , पुरुष और नारी ये रथ के वो पहिये है जो साथ साथ चलकर ही समाज को परिवार को नयी दिशा दे सकते हैं .परिवार को बचाने के लिए नारी इस त्याग के लिए भी तैयार हो भी जाये और घर मे बैठ जाये तब भी क्या पुरुष उसे वो सम्मान और हक देगा मेरा यही सवाल है . ये बहस वाकई में गंभीर है ..इसकी गंभीरता बनी रहे ..मेरी यही राय है.
जवाब देंहटाएंarthik rup se sudhid chahe nari ya purush ghar samalne valo ko apne se chota manta hai
हटाएंmere vichar se upbhoktawadi sanskriti iske liye kafi jimmedaar hai.aaj na to sanukt pariwar hai aur na hi kisi ke paas samay ki woh apne pariwar ko dhang se de sake.
जवाब देंहटाएंshyad ye aapke poorak prashno ke uttar ke kuchh ansh ho sakte hain.