आइये शामिल हो जाइये अब तक की सबसे बड़ी बहस "नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है? " में ! नारीवाद के रहनुमाओं को खुली चुनौती... नारीवाद पर अब तक सबसे उत्तेजक बहस "उल्टा तीर" पर !!
सम्प्रति महिला समाज संसद के भीतर और बाहर महिला आरक्षण के मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया जा रहा है। कुछ पुरुष तो बाकायदा नारीवादी हो गए हैं. समाज में येसे पुरुषों की कमी नहीं जो मर्द होकर भी धीरे-धीरे स्त्री होते जा रहे हैं. दरअसल, अब ये वक़्त आ गया है कि माता तुल्य इन देवियों से करबद्ध प्रार्थना कि जाए कि हे! देवियों अब आप घर में बेठो, घर की चार दीवारियों को आपकी जरुरत है. महिलाओं के घर से बाहर निकलने की वजह से परिवार टूट रहे हैं? अपराध बढ़ रहे हैं? नई नसलें माँ के प्यार को तरस रही हैं! समाज इक़ बड़े विघटन की कगार पर खडा है. चौका-चुल्हा, घर को सँवारने का काम तो लगता है नारी भूल ही गई है. और तो और महिलायों के आगे आजाने से देश में बेरोजगारी भी बड़ रही है. पुरुष घर पर निठल्ले होते जा रहे हीं. उनकी उर्जा विध्वंस का कारण बन रही है.
परिवार जैसी सस्थाओं से नयी उम्र की महिलाओं का भरोसा उठने लगा है। समाज में एक अलग तरह की परिपाटी बनती जा रही है। कामकाजी महिलाएं बाह्य परिवेश को तो सवांर रही हैं लेकिन घर मानो उनकी वजह से टूटने लगे हैं। पश्चिम का ये अंधानुकरण न जाने हमारे समाज और राष्ट्र को किस ओर ले जाएगा। गंभीरता से सोचने वाली बात है !!
समाज के चन्द निठल्ले पुरूष जो वाकई में कुछ भी काम-काज नही करना चाहतें हैं वो ज़ोर-शोर से नारीवाद के आन्दोलन को हवा दे रहे हैं? साथ ही मेरी उन कथित महिलाओं से भी विनती है जिन्होंने पचास की उम्र पार कर ली है, समूची दुनिया को देख लिया है, वे नारीवाद के बहाने कम से कम नयी उम्र की महिलाओं को बहलाना छोड़ दें। उनका वैवाहिक जीवन बसने दें, उनको घर-संसार को सजाने का अवसर दें। अगर घर मज़बूत होंगे तो यकीनन इसका श्रेय समाज केवल और केवल नारियों को ही देगा। हमारे मुल्क में नारियों को भगवान् का दर्जा दिया गया है। ताने-बाने को ऐसा ही रहने दें?
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ये तो हुआ बहस का एक पहलू जो हमे एक पाठक ने भेजा है। इस राय पर अपने विचार दीजिये क्योंकि बहस अभी बाकी है मेरे दोस्त !! "उल्टा तीर" पढ़ते रहिये.
Purush agar khud ke dum pe kuch hasil nahi kar paa raha hai to isme dosh purush ka hai nari ka nahi !!samaj 21vi sadi me hai lekin aapke ye anam pathak .nari ko ghar baithalna chahte hain .kya aisa sambhnv hai ? aaj zamana naya hai ....aur ye waqat kii darkar hai ki nari ko barabari ka haq mile ....umeed karta hoon is behas me mera mat bhii aap shamil karenge ...aapke ye aanam pathak waqat ko peeche le jane kii baat keh rahe hain.aapka koi dosh nahi ..aakhir behas me to ye sab hoga hii ....mahlaon ko aage aane diziye !!
जवाब देंहटाएंagar aaj ye sthiti paida huyi to kyu huyi jab purush naari ko kamjor samjhne laga use pairo ki dhool samjhne laga tab naari ne bhi aage badkar ye dikha diya ki jo purush kar sakta hai wo naari bhi kar sakti hai aaj naari is mukaam par pahunch gayi hai ki purush ke har sawal ka jawab de to kuchh nithlle purush jo apni nithalla ko chhipane ke liye naari par jor aajmate the,unke aham ko chot lagi wo tadap uthe aur naari naariwad ko bura bhala kahne lage aaj bhi mai aise kai naariyo ko janta hu jo kaam bhi karti hai aur ghar bhi achhe se samhalti hai
जवाब देंहटाएंjara rahi berojgaari badne ki bat to sitara kabhi kisi roshni ka mohtaaj nahi hota jiske ander talent hai uske liye kaam ki koi kami nahi par jo nithalle hai wo dosh naari aur aisi hi aur dushro par lagate hai
नारी को हमेशा विवादों रखना
जवाब देंहटाएंशायद पुरुष समाज कि जाने क्या मजबुरी है.
कोन नहीं शुकुन से जीना चाहता चाहे वो नारी ही क्यों न हो .
जब नारी घर से बाहर रोजी रोटी के लिए जाती है तब उस कि जिंदगी दोहरी और ताकन से भरि होती है क्यों कि घर आकर तो उसे ही घर कि सभी जिम्मेदारिया निभानी पड़ती है .
खुद उस का जीवन इनसब में खो जाता है सारी जद्दो जाहत घर कि लिए होती है और बदले में उसे क्या मिलाता है उपेक्षा त्रिस्कर ,व्यग समाज का पर ममता कि मरी फिर भी खटतीहै और एक दिन खर्च होजाती है चली जाती है खामोशी से
mayank ने कहा…
जवाब देंहटाएंnahi nariwad ka wichar koi purushon ki den nnahi hai ye to nariyon ke dwara hi paida kiya hua hai nariya khud hi apne aap ko purushon se aage dekhna chahti hai or ye sab uska hi karan hai par shyad nariya apna astitav bhoolti ja rahi hai ki wo kabhi sita ke roop mein bhi is dharti par aain thi or unko aaj pura samaj devi ki tarak poojta hai agar nnri chahti hai ki wo bhi unki hi tarah poojyaniya bane to usko purushon se hod band ka sita ki tarah rahna seekhna hoga.
May 20, 2008 2:15 AM
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यह प्रतिक्रिया "नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है?" पर हमें पाठक "मयंक जी" ने भेजी है. उनके द्वारा प्रतिक्रिया को पोस्ट करने में कुछ-जल्दबाजी के कारण अन्यत्र लेख पर प्रकाशित हुई. हम उनके विचारों को सादर यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं.
आपकी बात से कुछ हद तक सहमत हुआ जा सकता है यह सच है की ओरत को जीवन मैं दोहरी जिम्मेदारी इसे नर के कारण ही उठानी पड़ती है नही तो ओरत परिवार की जिम्मेदारी जिस उतम तरीके से निभाती है उसे देखते हुए ही उसे अन्य जिम्मेदारी नौकरी या राजनीती के श्चेत्र मैं दी है जिसे उसने पूरी सिद्त से साबित भी किया है लकिन कहीं न कहीं इस कारण परिवार और समाज मैं नारी का समान खो गया है क्योकि नारी नर से आगे निकलने के चक्कर मैं इन्ही लोगो के हाथ की कटपुतली बन गयी है जिसे आप आरक्षण की राजनीती और इसे ही रिज़र्व स्थानों पर देख सकते हो अगर आप देखना चाहते हो कोई भी स्त्री अपने पिता, भाई और पति को घर मैं नक्कारा बैठा नहीं देखना चाहेगी इसलिए नर को अपनी जिम्मेदारी और ओरतो को उनके लिए काम का मौका देना होगा
जवाब देंहटाएंअंत मैं मैं आपसे इस तरह के उन्मुक्त और जिम्मेदारी वाले विचारो के प्रसार को हर तरह से आगे बढाने का अनुरोध करुगी और इसे केवा बहस का रूप ही मत दीजिये बल्कि एक जन आन्दोलन का रूप देने का अथक प्रयास करे
aapne sahi likha hai. nari ghar-pariwar ki sundarta hai.naari ko barabari ka darja milna chahiye, lekin essa nahi jaisa rajnitik dal dena chahte hai. nari ko sampatti main 50 percent mile. shikhha main aage badhe.lakin rajinitik dalon aur filmo main nahi jana chahiye.
जवाब देंहटाएंsagar ji, jaisa mujhe samajh mein aa raha hai, aurat ke liye ghar ke bahar kaam karna koi nai baat nahi hai,bade gharon mein bahut pracheen kaal se hi naukar rakhe jate the aur jayadatar wo mahilayen hi hoti thin.ye alag baat hai ki naye yug mein aurat ne apne tarike se har vayavsay mein apni kabiliyat dikha kar ye sidh kar diya hai ki wo bhi purush se kam nahi hai.
जवाब देंहटाएंjin gharon mein aurat purush ke sath samnjasya bana ke har paristhiti ka samna karti hai..wahan use bahut tyag bhi karna padta hai..kyunki wahan use dohri bhoomika to nibhani hi padti hai sath hi use kai tarah ke swalon ka bhi samna karna padta hai.par isha nuksan bhi poori tarah se aurat ko hi mila hai.agar wo kaam kare to alag paristhti aur na kare to doose halat..ghar kharch chalane mein sath de to bhi buri aur na de to bhi kharab halat.
is mehangai ke daur mein aalam ye hai ki jinte sadasya hon sab kamayen aur sab khayen..purane zamane ki baat aur thi.
aur jaisa maine dekha hai gahr se bahar kaam karne jana har aurat ke liye utan aasan nahi hota jitna ki purush ko lagta ya dikhta hai..ghar se bahar bhi to purushon dwara mahilaon ka shoshan hota hai.
mai aisa nahi kehtei ki purushon ke sath atyachar nahi hota..kai gharon mein purushon ke sath bhi bahut atyachar hota hai.
aur jaisa mujhe lagta hai santan dono ki hoti hai to sansak dene mein bhi dodno de barabar ki bhoomika nibhani chahiye.
aapne bahas ka ek aisa mudda uthaya hai jiska koi ant nahi hai
lage rahiye
mast thinking
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