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सोमवार, 2 जून 2008

मिल ही गये ख़त !! बहस वही (४)

चूंकि नारीवाद पर "उल्टा तीर" पर जारी ये बहस उत्तेजक है, और शायद हमारा समाज अभी इस तरह की उत्तेजक बहसों के लिए पूरी तरह तैयार नही है. इसलिए मैंने बीते कुछ दिनों से ये आस छोड़ दी थी कि कोई इस बहस में भाग लेगा भी तो क्यों? हाँ, मगर इस तरह की बहस आज के दौर की सबसे बड़ी ज़रूरत है बावजूद इसके समाज की असहभागिता हैरत की बात है. मैंने इस बहस को उल्टा तीर के खुले मंच पर रखा...ताकि लोग खुलकर अपने विचार रखें. लेकिन हुआ क्या? उल्टा तीर की बहस का ये मुद्दा दूसरे ब्लॉग पर परचम की मानिंद लहराने लगा। दूसरे ब्लॉग पर चर्चा आम हो गई (लेकिन साथ ही एक तरफा भी) उल्टा तीर नेपथ्य में चला गया। किंतु अब इस बहस के बाबाद आपकी ओर से लेख-ख़त-प्रतिकिरियाँ मिलने लगीं। एक साथ चार-चार कमेंट भी. मैं ग़लत था, समाज इन मुद्दों पर वाकई चर्चा करना चाहता है. पेशे-खिदमत है, उल्टा तीर को मिले खतों का नज़राना'
जिनके माध्यम से इस बहस को समझने-समझाने में और भी आसानी होगी. बहस को भी नई दिशा मिलेगी.
इस आभार के साथ आपका; *अमित के. सागर
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(१)

मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ कि "नारीवाद मक्कार पुरुषों की देन है".

और कुरान अल्लाह के अनुसार; हमने मर्द को औरत पर हाकिम बनाकर पैदा किया है।
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"अय्युर मालिक" (कतर, दोहा सिटी) के द्वारा -June 1, 2008 2:22 AM
-मेल- gayyurmalik74@gmail.com (No Blog)

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(२)
जो कुछ हो रहा है; सिर्फ एक पोलिटिकल स्टंट है!....इससे आम लोगों को- न स्त्रिओं को और न ही पुरुषों को- कोई फयदा पहुंचने वाला है!...बढिया सब्जेक्ट है।
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"जायका" (दिल्ली) के द्वारा -June 2, 2008 11:53 पम
http://jayaka-rosegarden.blogspot.com
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(३)
जो नर नक्कारा, बदचलन और कामचोर होते है वह नारी को बहला फुसला कर उसके परिवार और समाज से उसका नाता ख़त्म करते फिरते -बाद मैं उसका शोषण करते हैं। उसके बाद अक्सर नारी के पास कोई अन्य उपाए नहीं होता वह वही करती जो नर चाहता है वह रात दिन मेहनत करती है लेकिन और वह नर उसकी मेहनत की कमाई से मौज लूटता है आराम से लेटे लेटे नारी के जिस्म को नोचता है पशु के समान उसे कार्य लेता है और नारी जब आराम करना चाहती है तो नर उसे पिछड़ जाने का डर दिखा कर काम करते रहने के लिए विवश करता है।

ये एक नारी के लिए बहुत बड़ी चुनोती होती है. ओरत परिवार की जिम्मेदारी जिस उतम तरीके से निभाती है. वह सराहनीय है।... बल्कि वह उसे अपने हितपूर्ति के लिए काम करने की प्रेरणा देगा अक्सर आपने अपने आसपास देखा भी होगा ओरत को सभी जगह चाहे वह राजनीति हो अथवा अर्थनीति नारी को केवल मुखोटा बना कर इस्तेमाल किया जाता है और वह सभी फायदा उठाने का प्रयाश किया जाता है जिससे नक्कारा, बदचलन और कामचोर पुरुष नेतृत्व को लाभ हो ? कुछ स्वार्थी तत्व हमेशा इसी तरह हर जगह नारी को बरगलाकर उनसे फायदा उठाते है लकिन इसका नुकशान आप आज समाज मैं गिरते हुए नारी सम्मान के रूप मैं देख सकते हो।

"उल्टा तीर" ब्लोग पर जारी बहस को पढ़ने पर मुझे लगा की इस पर बहस जा रहें और यदि कोई हल मिले तो इसे नर और नारी, जो एक दुसरे के पूरक हैं, को जरूर बताया जाये। इस बहस के लिए धन्यवाद लेखक महोदय।
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"करमबीर पंवार" (नई दिल्ली) के द्वारा -June 1, 2008 5:57 PM
karmkarnkamal@gmail.com(NoBlog)
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(४)
नारीवाद का विचार सिर्फ़ पुरुषों की देन है यह आपसे किसने कह दिया
. आप फ्रांस मशहूर लेखिका सिमोन डि बेवर को शायद जानते होगें. नारीवाद का विचार उन्हीं की देन है. उनकी किताब द सेकंड सेक्स पढ़ें.सिमोन द बोउआ का यह कथन दुनिया भर में उद्धृत किया जाता है कि स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। अर्थात आज हम जिस स्त्री को जानते हैं, वह जैविक से अधिक सांस्कृतिक इकाई है। स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। इस बात को याद किया जाना चाहिए
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"राम कृष्ण डोंगरे" (नॉएडा) के द्वारा-June 2, 2008 1:36 PM
http://dongretrishna.blogspot.com
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(५)
इस बहस से कुछ मामलों मे नारी होते हुए भी सहमत हूँ.यकीनन ये बात सौलह आने सच है कि समाज में संस्कारों अच्छे विचारों और मानवीय मूल्यों की जननी सिर्फ और सिर्फ नारी ही है.बहस के सूत्रधार से मैं इस बात पर भी सहमत हूँ कि प्रकृति ने नारी जाति को भावनाओं से भरकर समाज को एक नया अर्थ प्रदान किया है.अब सवाल उठता है कि क्या केवल नारी की ही ये जिम्मेदारी है.दरअसल, पुरुष और नारी ये रथ के वो पहिये है जो साथ साथ चलकर ही समाज को परिवार को नयी दिशा दे सकते हैं. परिवार को बचाने के लिए नारी इस त्याग के लिए भी तैयार हो भी जाये और घर मे बैठ जाये तब भी क्या पुरुष उसे वो सम्मान और हक देगा मेरा यही सवाल है. ये बहस वाकई में गंभीर है. इसकी गंभीरता बनी रहे मेरी यही राय है।
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"सुप्रिया" (मुम्बई) के द्वारा-May 24, 2008 4:36 AM
http://supriya08.blogspot.com
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(६)

आज न तो संयुक्त परिवार हैं और न किसी के पास समय जोकि वो अपने परवर को ढंग से देख सके। मेरे विचार से तो इसके लिए उपभोक्तावादी संस्कृति जादा जिम्मेदार है।
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"शिवम शुक्ला" (भोपाल) के द्वारा-May 25, 2008 8:34 AM
http://grooghantaal.blogspot.com/
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(७)
पुरुष अगर खुद के दम पर कुछ हासिल नहीं कर पा रहा है तो इसमें दोष पुरुष का ही है नारी का नहीं। २१वीं सदी में नारी घर बैठ जाए, क्या ये संभव है? ये वक़्त के दरकार है कि नारी को बराबरी का हक मिले. ये मुद्दा समाज को बहुत पीछे लेजाने की बात कहता है.
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"अमिताभ फौजदार" (दिल्ली) के द्वारा-May 19, 2008 8:30 AM
http://dilseamit.blogspot.com
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(८)
नारी को कमजोर समझना,स्तिथी के पीछे पुरुष का बड़ा हाथ है। तब शायद नारी ने पुरुष के हर काम को कर दिखाने की ठानी. अब भी कुछ निठल्ले पुरुष अपनी निठाल्लता को छुपाने केलिए आज भी स्त्री पर जोर आजमाते हैं. जिसके चलते वो नारीवाद को भला-बुरा कहने लगे. जहाँतक नारियों के चलते बेरोजगारी की बात है तो सितारे रौशनी के मौह्ताज़ नहीं.
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"बंटी" के द्वारा-May 19, 2008 9:02 PM
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(९)
नारियाँ दोहरी जिंदगी जीती हैं बेशुकून। बदले में क्या मिलता है समाज से; उपेक्षा, तिरस्कार, व्यंग. जबकी वो घर-वार से लेके सामाजिक तक सभी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह करती है.
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"सुरभी" के द्वारा-May 20, 2008 1:04 AM
http://kamhaiaapse.blogspot.com/
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(१०)
नारीवाद का विचार पुरुषों की दें नहीं है। ये तो नारियों ने खुद ही पैदा किया है. नारियाँ खुद ही पुरुषों से खुद को आगे देखना चाहती हैं. और शायद नारी अपना अस्तित्व भूलती जा रही है, कि वो कभी सीता के रूप में भी इस धरती पे आई थी, और उनको आज समझ देवी की तरह पूजता है. इसलिए अगर आज की नारी भी चाहती है कि वो भी पूज्यनीय बने तो उसे पुरुषों स होड़ कर सीता की तरह रहना सीखना होगा.
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"मयंक" के द्वारा-May 20, 2008 2:15 AM
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(११)
बात से कुछ हद तक सहमत हुआ जा सकता है यह सच है की ओरत को जीवन मैं दोहरी जिम्मेदारी इसे नर के कारण ही उठानी पड़ती है नही तो ओरत परिवार की जिम्मेदारी जिस उतम तरीके से निभाती है उसे देखते हुए ही उसे अन्य जिम्मेदारी नौकरी या राजनीती के श्चेत्र मैं दी है जिसे उसने पूरी सिद्त से साबित भी किया है लकिन कहीं न कहीं इस कारण परिवार और समाज मैं नारी का समान खो गया है क्योकि नारी नर से आगे निकलने के चक्कर मैं इन्ही लोगो के हाथ की कटपुतली बन गयी है जिसे आप आरक्षण की राजनीती और इसे ही रिज़र्व स्थानों पर देख सकते हो अगर आप देखना चाहते हो कोई भी स्त्री अपने पिता, भाई और पति को घर मैं नक्कारा बैठा नहीं देखना चाहेगी इसलिए नर को अपनी जिम्मेदारी और ओरतो को उनके लिए काम का मौका देना होगा
अंत मैं मैं आपसे इस तरह के उन्मुक्त और जिम्मेदारी वाले विचारो के प्रसार को हर तरह से आगे बढाने का अनुरोध करुगी और इसे केवा बहस का रूप ही मत दीजिये बल्कि एक जन आन्दोलन का रूप देने का अथक प्रयास करे.
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"बबीता" के द्वारा-May 22, 2008 2:36 AM
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(१२)
इक्दम सही लिखा है। नारी घर-परिवार की सुन्दरता है. नारी को बराबरी का दर्जा मिलाना चाहिए. लेकिन येसा नहीं जैसा राजनितिक दल देना चाहते हैं. शिक्षा में आगे व सम्म्पत्ति में ५० प्रतिशत का हक मिलना चाहिए और राजनीति व फिल्मों नहीं नारियों को नहीं जाना चाहिए.
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"गिरिराज अग्रवाल" (जयपुर) के द्वारा-May 22, 2008 10:11 AM
http://naaradvani.blogspot.com/
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(१३)

ख़त और भी हैं..जारी...
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अगली
पोस्ट में पढ़ें ...
"दूसरे ब्लॉग पर भी
"उल्टा तीर" के तीर "

2 टिप्‍पणियां:

  1. अमित जी सबसे पहले आपको सलाम नारीवाद के विचार पर आपके सार्थक पर्यास के लिए और बहस को जारी रखने के लिए अन्यथा मैं सोच रहा था की ये बहस अधूरी ही बंद न हो जाए मैं उन लोगो को बता देना चाहता हु जो नारीवाद के विचार को विदेशी मानते है की यह विचार विदेसी बना दिया गया है नही तो इतिहास के जानने वाले सभी लोग इस बात से इतफाक रखेंगे की सर्वपर्थम नारी सवतंत्रता का जन आन्दोलन भारत भूमि पर ही हुआ यदि आपने नारी को भारत माता के रूप मे सुना है तो यकीनन यह वही माता है जो अपने बच्चो को कभी भी ग़लत रस्ते पर नही जाने देती क्योकि बच्चो के लिए सारी जिम्मेदारी माता होने के नाते आरम्भ से ही उसने उठाई है स्वयंवर की प्रथा जहाँ नारी सेकडो पुरषों मैं अपने पति का चुनाव करती थी कुंती का उदहारण भी है जो न केवल विवाह पूर्व माता बनी बल्कि अपने पुत्रो के जीवन का महत्वपूरण निर्णय सवयम लेती है जब वह सभी भाईओ को द्रोपदी के साथ रहने की आज्ञा देती है मुग़ल सल्तनत मे नूरजहाँ और रजिया सुलतान जीजाबाई और आजाद भारत मैं सरोजिनी नायडू और इंदिरा गांधी का नाम उल्लेखनीय है जिससे पता चलता है की नारीवाद की जड़े भारत देश से ज्यादा कही भी मजबूत नही है मुख्य बात की इन सभी नारियो के लिए उनके परिवार के पुरषों का योगदान कही भी कम नही था लकिन उसके बाद नारी के नाम पर बटने वाली रेवडी के कारण आधुनिक नारीवाद की हवा फेलाई गई जो केवल ओरतो के साथ एक धोखा है जिस का लाभ पहले से ही लाभन्वित लोग उठाना चाहते है
    अंत मे जिसे नारीवाद कहा जाता है वास्तव मैं वह नारी अधिकारवाद है इसकी कमी यही है की वह पुरे समाज और परिवार की पुनरचना का बीडा उठाना नहीं चाहते बल्कि बदलनी तो पूरी फिजा होगी और फिजा नफरत से नहीं बदलती

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  2. जीवन वरदान है ... प्यार उससे भी अधिक ... पर स्वतंत्रता के लिए मैं दोनों को फेंक सकता हूँ --बर्तोल्त ब्रेष्ट
    पुरुष को अपनी स्वतंत्रता प्रिय है तो उसे नारी की स्वतंत्रता का सम्मान करना भी सीखना चाहिए ..
    प्रश्न ये है क्या कोई स्वतंत्रता का अर्थ जानता है ? इस वैज्ञानिक युग में भी हम बाबा आदम के ज़माने के गुलामी पसंद संस्कारों में जकडे हुए हैं

    जवाब देंहटाएं

आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)