चूँकि भारत में समलैंगिकता कानूनन अपराध है,
मगर समलैंगिक लोगों की वो जमात कहाँ जाके इन्साफ मागे...जिसके आगे-पीछे कई सवाल जो समाज के लिए मुंह उठाये खड़े हैं वहीं क़ानून के लिए भी!
यधपि भारत के बाहर यानी विलायत में ये मसले जहाँ आम होते देखे-सुने-पढ़े जा रहे हैं. हैं,
वहीं कानून में इन्हें जगह देते हुए अपनी मर्जी के मुताबिक जीने का अधिकार भी दिया जाने लगा है. भारत के महानगरों में आए दिन समलैंगिक जमात इकत्रित होके अपने हक की लड़ाई में मोर्चा निकालती है. जैसा की मुद्दे पर पैनी नज़र डाली जाए तो ये सिर्फ़ महानगरों की ही बात नहीं है...इक्का-दुक्का ही सही पर छोटे-छोटे गाँव से भी इस तरह की खबरें मिल रही हैं. साथ ही अगर पुरातत्व की भांती गौर-अध्ययन किया जाए तो समलैंगिकता आज की बात नहीं।
आज ये मसला इसलिए भी ख़ास बन पढा है चूँकि अब समलैंगिक लोग इक बड़े समाज से हटके, उन्हीं के पड़ोसी बनके इक नई रूप-रेखा में रहने का हक भी माँगने लगे हैं. इक नए समाज का निर्माण होने को है?
समलैंगिकता को कहीं बहस का मुद्दा बनाके हम लोगों को समलैंगिकता की तरफ़ आकर्षित तो नहीं कर रहे? यह भी एक सवाल है. समलैंगिकता की ख़ास वजह कहीं नर और नारी का इक- दूसरे के प्रति अविश्वाश तो नहीं? क्या वाकई परवारिक संस्था को समलैंगिकता से ख़तरा है? यदि पुरूष-स्त्री अनुपात में असंतुलन आता है तब क्या समाज ऐसे रिश्तों को मान्यता नहीं देगा? जैसे सवाल कई और भी हैं।
बहस की शुरुआत से अब तक मिले प्रतिसादों को ध्यान में रखें तो समाज की नज़र में समलैंगिकता अभी विचाराधीन है? मगर कब तक?
अपनी राय प्रतिक्रियाएँ भेजते रहिये क्योंकि बहस अभी जारी है मेरे दोस्त...
ध्यान देने योग्य है....
जवाब देंहटाएं१. समलैंगिकता नई नहीं है। बहुत पुराने समय से है।
२.शायद इसके कारण हमारे जीन्स या गर्भावस्था में होने वाले ही कुछ परिवर्तन या हार्मोन्स भी हैं।
३.यह केवल मनुष्यों में पाया जाने वाला बौद्धिक विकार नहीं है।
४.कई प्राणी शास्त्रियों के अनुसार १५०० के लगभग प्राणी प्रजातियों में यह देखा गया है।
५.समाज द्वारा दबाव डालकर समलैंगिकों को सामान्य विवाहित जीवन जीने का प्रयास करवाना न केवल उसके प्रति अन्याय है,अपितु उस अनजान स्त्री /पुरुष के साथ भी जिससे समलैंगिक की रुचि व स्वभाव के विरुद्ध उसका विवाह किया जा रहा है।
जब भी हम समलैंगिकता का विरोध करते हें तो इन बातों पर भी हमें गौर करना चाहिए। वैसे अभी इस विषय पर बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है।
घुघूती बासूती
मनुष्य अनेक विपरीत लिग से सबंध रखता है उसी तरह समलैगिक में कोई बुराई नजर नही आती किन्तु समलैगिक विवाह सोचने वाली बात है
हटाएंमनुष्य अनेक विपरीत लिग से सबंध रखता है उसी तरह समलैगिक में कोई बुराई नजर नही आती किन्तु समलैगिक विवाह सोचने वाली बात है
हटाएंye kya kar dala sagarji
जवाब देंहटाएंजैसा की घुघूती बासूती जी ने कहा समलैंगिकता नई चीज़ नही है. और हमें किसी को उसके तरीके से जिंदगी जीने से रोकने का कोई अधिकार नहीं है.
जवाब देंहटाएंमेरे विचार में पारिवारिक संस्था को समलैंगिकता से ख़तरा है. समलैंगिकता एक अप्राकृतिक शारीरिक सम्बन्ध है. कोई भी अप्राकृतिक कार्य समाज के लिए फायदेकर नहीं हो सकता. यह समाज में कुंठा को जन्म देगा.
जवाब देंहटाएंsamaj kuch bhi kahe per logo ke mansikata kave nahi chanege hoti hai,Samaj main har kisi ko jeene ka addikaar hai,wo kise v tarah se rahe,samaj ne he Law banaye hai...aane wale time main even ave v kuch Contries main "Samlangekata"
जवाब देंहटाएंko Maan liya gaya hai...per India main humare Dharam And Sanskar ke wajah se ye Koreeti apane yoowan per nahi hai..Dekhe aage-aage kya hota hai..