शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
शादी से पहले बातचीत...?
यह विषय आज के समय को देखते हुए बड़ा जरुरी-सा विषय बनता जा रहा है! हालांकि इसकी आवशयकता है भी या नहीं ये परिस्थितियों पर बहुत निर्भर करता है, मेरे हिसाब से तो!इसका एक कारण बताया जाता है कि लड़की ओर लड़के की आपस में जानकारी बढ़ेगी और वो एक दुसरे को और अच्छी तरह जान पायेंगे! जिस से कि उनका आने वाला समय बेहतर होगा!
किन्तु कई बार इसका उल्टा हुआ है! उनकी आपस में एक दुसरे के बारे में जानकारी तो बढ़ जाती है, लेकिन एक रिश्ता जो बनने जा रहा था वो बन नहीं पाता! यहाँ तक कि शादी होने के बाद भी! क्योंकि वो जान जाते है एक दुसरे के बारे में,पहले ही! रोमांच सारा ख़त्म!
पहले क्या होता था, या गाँव-देहात में क्या होता है, लड़का-लड़की एक दुसरे से बात करना तो दूर, जानते भी नहीं, और शादी हो गयी जी! आधुनिक जगत को ये बात बहुत अखरती है! ऐसा कैसे हो गया, कैसे हो सकता है? पता नहीं वो एक दुसरे को समझ पायेंगे या नहीं? वो नहीं समझ पायेंगे तो सुखी कैसे रहेंगे? वगराह-वगराह!
वो ज्यादातर सुखी रहते है!
असल में सुखी रहने का रहस्य दुसरे को समझने में कम और खुद को समझने में अधिक छिपा है! ऐसा नहीं है के वो एक दुसरे को नहीं समझते, समझते है! लेकिन जब तक वो एक दुसरे को समझते है तब एक बहुत बड़ा कालखण्ड जीवन का बीत चुका होता है, जानने के रोमांच में! और जो आनंद मनुष्य दुसरे की जिन्दगी ने झाँक कर लेता है उसका शायद कोई विकल्प नहीं!वो आनंद ले रहे होते है 'किसी अपने' की जिंदगी में झाँकने का! जबकि यही काम यदि शादी से पहले किया जाए तो हम केवल 'किसी' लड़के या लड़की की जिंदगी में झाँक रहे होते है जो अभी तक हमारा कुछ नहीं है! भविष्य में हो सकता है, अभी कुछ नहीं है! सो एक एह्न्कार-सा मन में आ जाता है कि हम निष्पक्ष होकर किसी की जिंदगी में देखेंगे जो की हम कभी हो ही नहीं सकते! एह्न्कार में निर्णय ठीक ही हो इसकी सुनिश्चितता नहीं होती!
दूसरी और जब हम 'किसी अपने' की जिंदगी में झांकेंगे तो हमारे पास निष्पक्ष होने या रहने की मजबूरी नहीं होती! हम स्वाभाविक ही अपने का पक्ष ले सकते है! उसमे केवल अच्छा ही देखने की कोशिश करेंगे! कुछ बुरा यदि दिखाई दे भी जाए तो सोच लेते है की पहले रहा होगा, अब हम नहीं होने देंगे ऐसा! कमियाँ अब भी देखेंगे साथ ही उन्हें ख़त्म करने के उपाय भी!
जबकि शादी से पहले केवल कमियाँ ही दिख पाती है, उपाय तक जाने की कोशिश ही नहीं की जाती! करे भी क्यों? किसके लिए? "ये नहीं तो और सही" वाली खिड़की होती है अभी हमारे पास! वो भी खुली हुई! कोई चिंता ही नहीं!
हालांकि इसका कभी-कभी लाभ भी होता है दोनों को! पर मैंने अब तक ऐसा कम ही देखा है! वैसे जो अनुभव हमारा है वो केवल हमारा ही है! जरूरी नहीं जिन परिस्थितियों में 'क' जो करेगा वही उन्ही परिस्थितियों 'ख' के लिए भी सही रहेगा!
[कुंवर जी]
Posted by
kunwarji's
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1:45:00 pm
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12 टिप्पणियां:
आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
--
बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
--
आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
--
आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]
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तलाक के सामान्यीकरण पर भी सोचना चाहिये। यानि प्रेम या विवाह के बाद समझौते जैसी परिस्थितयां हो तो कानूनी रूप से मुक्त होने के प्रावधान सरल किये जायें, नहीं ???
जवाब देंहटाएंVivah antme ek jua hai...ek saath rahne bina koyi samajh nahi sakta ki,qismat me kya likha hai..
जवाब देंहटाएंअमित जी
जवाब देंहटाएंपोस्ट में चित्र जोड कर व संपादित कर आपने इसमें जान डाल दी है।
धन्यवाद
सुनीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आपका!
चूँकि मैं ब्लॉग को अधिक समय तो नहीं दे पा रहा हूँ मग़र कोशिश करता हूँ कि आपके सबके योगदान की प्रस्तुति और भी बेहतर हो सके.
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आप सभी का आभारी हूँ. साथ बने रहिए!
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कुछ न कुछ करते हुए कुछ तो कर ही जाएंगे
आलमे-मसले ओ-माद्दे कुछ तो संवर ही जाएंगे
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अमित के सागर
आभार.
शादी की सफलता और असफलता फ्लेक्सिबिलिटी पर निर्भर है. फ्लेक्सिबिलिटी अर्थात एक दूसरे के लिये स्पेस और समझने की क्षमता.
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार , अच्छा और intellectual लेख....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसागर जी मेरी बात को कुवर जी ने बेहद सुन्दर तरीके से आपको कहा है इसलिए आप मेरी राय अपने मित्र को कहे की यदि आपके मित्र के लायक लड़की नहीं मिल रही है तो इसमें यक़ीनन आपके मित्र मै दोषहै
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार और अच्छा लेख....
जवाब देंहटाएंआजकल के जमाने में खासकर बड़े शहरों में लड़की से बात करने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए....एक तरफ नारी सशक्तितकरण की बात होती है एक तरफ किसी उसे भावनात्मक तौर पर कमजोर करने वाली घटना को ही महिमामंडित करना अनुचित है.लड़कियां ही अब रिजेक्ट कर देती है...तो क्या लड़के का स्वाभिमान आहत नहीं होता....लड़की अपने से कम पढे लिखे ल़ड़के से शादी नहीं करती...करती है तो समाज कहता है कि लड़का मिला नहीं होगा....लडका कम पढी लिखी लडकी से शादी करता है तो उसका इगो हर्ट नहीं करता....अगर ज्यादा पढी लिखी लड़की ढूढता है तो ताना मिलता है कि खुद कितना पढ़ा लिखा है....समाज हमेसा दोहरा चरित्र अपनाता है....लड़कियां भी वहीं कर रही हैं जो पहले लड़के करते थे. यानि बदला लेने का..समाज को बराबर करना है, तो मानसिकता को बदलिए....शादी से पहले एक दो बार बातचीत करने से रोमांच भी नहीं समाप्त होता....एक दो बातचीत में फैसला नहीं हो पाए तो समझिए रिश्ता बनने के आसार कम ही हैं.....
जवाब देंहटाएंराम राम जी,
जवाब देंहटाएंभई साहब आप बोले तो बिंदास है पर अपनी बात थोडा शान्ति से,आराम से कहते तो शायद और अधिक अच्छी तरह से कह पाते,स्पष्ट कर पाते!बहरहाल आपका शुक्रिया,अपने अमूल्य विचारो से अवगत कराने का!
कुंवर जी,