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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

अजीब दास्ताँ है ये! (हास्य-व्यंग्य)

सर्वप्रथम तो आप सब का मुझे झेलते रहने का आभार प्रकट करना चाहुंगा! जिन्होंने मुझे "टिप्पणी ब्रांड" उत्साहवर्धक टोनिक की दो बूँद दी है, उन्हें मै बताना चाहूँगा के उनका ये प्रयोग सौ फीसदी सफल रहा! हर एक बूँद मेरे लहू में मिल जो रासायनिक क्रिया कर रही है उस से आप ज्यादा दिन अनभिज्ञ नहीं रह पायेंगे!

मुझ तुच्छ पर दृष्टि डालने के लिए एक बार फिर मै आभार व्यक्त करता हूँ,साथ में आशा करता हूँ कि ये स्नेहाशीष सदा मुझे मिलता रहेगा! 

पिछली बार जब हमारी बात रुकी थी तो कुंवर जी घर जा रहे थे और घर पहुँचने से घबरा भी रहे थे, क्यों? ये आपने पढ़ ही लिया!

हम घबरा जरुर रहे थे लेकिन हमारा मानसिक सन्तुलन अभी भी कायम था!हम भली-भाँती जानते थे क़ि घर खाली हाथ जाना खतरे से खाली नहीं है, सो सर्दियों के मौसम के हिसाब से और अपनी जेब के मिजाज से मेल खाती चीज ले ही ली हमने! आप उत्सुक दिखाई दे रहे है सो बताये देता हूँ!हमने लिए जी "बादाम...गरीबो के"! अर्थार्त मूंगफली, वो भी पूरी आधा किलो! साथ में गच्चक भी!मानो तो सोने पे सुहागा!

घर में प्रवेश करते ही सपना स्मरण हो आया जो सच सा प्रतीत हो रहा था! एक बात और पता चली के खीर भी बनायी गयी थी विशेषरूप से हमारे लिए! मन की शंकाओं ने मष्तिष्क की सहयता से षड़यंत्र रचने आरम्भ कर दिए, सपने में दिखी सम्भावित आपदा से बचने के लिए!जाते ही सबसे पहले नतमस्तक माता-पिताश्री के श्रीचरणों में! श्रीमती जी अन्दर कक्ष में ही खड़ी-खड़ी निहार रही है जी और हम नजरे चुराने की झूठी कोशिशो में लगे है!

थोड़ी देर बाद पिताश्री भी उठ कर बहार चले जाते है, हम वही बैठे है! माताश्री, श्रीमती जी की भावनाओ को समझने के प्रयास करती दिखाई देती है, उन्हें हमारे लिए पानी लाने के लिए कह देती है! स्वयं वह से जाने के लिए बहार कोई काम याद आने की कह कर उठने लगती है! उन्होंने सोचा होगा के अब तो बात कर लेने दू दोनों को! परन्तु हम थोड़े से भयभीत थे सपने से! मिलने की जो उमंग-तरंग मनमे हर बार होती थी वो इस बार नहीं थी, आपको तो इमानदारी से बता ही सकता हूँ!

उमंग कि जगह मन में कुछ और था,आप तो समझ ही गए होंगे!माताश्री बहार चली गयी हमे अकेले ही जूझने के लिए छोड़कर! थोड़ी देर तो मेहमानों वली आव-भगत सी हुई,फिर बात मुद्दे कि और मुड़ती प्रतीत हुई हमे! हमने तुरन्त मूंगफली और गच्चक रूपी कवच-कुण्डल का प्रयोग किया, सफल भी रहा! कुछ देर के लिए ही सही, पर तब तक हमे खुद को सम्भालने का समय मिल गया था! जैसे कैसे हम खुद को वह से निकालने में सफल रहे! उसके बाद तो संजीव के यहाँ बांग्लादेश और कीनिया का क्रिकेट टेस्ट मैच देखने बैठ गए! वो भाई साहब तो बोर हो गए थोड़ी देर में ही, पर हमे तो वो भी एक बहुत अच्छा साधन दिखाई दे रहा था खुद को व्यस्त रखने का, सो हम तो देखे जा रहे थे!

हम कितना ही दिखावा कर ले खुद को अपनी परेशानियों से अलग रखने का पर ये जालिम मन, रह-रह कर वहीँ दौड़ जाता है! अपना भी कुछ ऐसा सा ही हाल था!संजीव ने तंग आ कर पूछा के "और कितने बचे है?"
हम बोले-"आठ सौ ही बचे है यार! "खैर 2-3 बार चाय देने के बाद वो भी टलता सा जान पड़ा तो हम फिर घर की और हो लिए!

शाम भी हो चली थी, घर के सिवा कोई और ठौर भी नहीं थी!सो हम एक बार फिर घर में!और मन में अब भी वो ही ख़याल के तनख्वाह 6000 मिली हुयी है इस बार तो, घर वालो कुछ ज्यादा मिलेगा पहले से! पर हाथ में केवल 800 ! इसीलिए टलते फिर रहे थे!

माता-पिताश्री थोड़े संतोषी है, जब हमने पैसो का कुछ जिक्र नहीं किया तो उन्होंने सोच लिया के पैसे बहू को भी देगा तो भी घर में ही रहेंगे! उन्होंने ज्यादा छान-बीन नहीं करनी चाही!

अब पत्नीश्री को कैसे समझाया जाए? अब एक समय तो ऐसा आ ही जाता है जब मुसीबात सीधे गले पड़ती ही है (मेरा मतलब कुछ और नहीं है)! वो समय भी आ ही गया! उन्होंने समय अधिक ना लेते हुए सीधे मुद्दे की बात छेड़ दी! कुछ था ही नहीं देने को, पर ये कह भी नहीं सकते थे! कम से कम उनकी नजरो में तो 'कुछ' छवि थी ही हमारी, हम उसे भी धूमिल जो नहीं करना चाह रहे थे! मगर नारी और चतुराई तो साथ-2 ही रहते है! और जब चतुराई अहंकार से घुल-मिल जाए तो वो कुछ भी सोच सकती है!

हमारे बार-बार टलने से जो उन्होंने सोचा वो उनकी एक दबी-सी जलन का हिस्सा भी लग रहा था! वो बोली-"एक बार फिर हो गए घरवालो के, वो तो तुम्हे ऐसे ही लूटेंगे सारी उम्र! लुटते रहो,मुझे क्या? मै कोंन-सा अपने लिए मांग रही थी? तुम्हारे ही घर में खर्च होने थे!मगर कौन सुने मेरी! कोई कुछ समझे तो सुने भी! जिन्हें समझते थे उनको तो दे दिए सारे पैसे! अब जब जाओगे फिर फैलाना उनके आगे हाथ! देखती हूँ मै भी के कब हमे भी कुछ समझा जाएगा!"

उसका बोलना जारी था पर मुझे थोड़ी राहत सी महसूस हो रही थी! कुटिल मुस्कान होंठो पर अपने-आप थिरक गयी, कसम से अपने-आप!मै जान-बुझ कर नहीं हंसा था! मैंने बस इतना ही कहा "पागल; वो भी तो तेरी तरह बस मेरी और ही देख रहे है..."

मेरे बोलने से ज्यादा मेरी हंसी ने अधिक हवा दे दी उसकी क्रोधाग्नि को! उसका बटन जैसे फिर दब गया हो, वो तो खैर पहले से ही दबा हुआ था! उसकी शिकायते-कम-आदेश निरंतर जारी थे! जब हमे लगा के बात सच में रूठने तक पहुंचने वाली है तो हमने एक बार फिर ब्रह्माश्त्र का प्रयोग किया!

और कुछ नहीं बस अगली बार सारी तनख्वाह उसके हाथ में ही रखने की बात कह दी,साथ में अंगूठी तो अगली बार ही, फर्श वो भी चिप्स वाला आने वाले दो-चार महीनो में, बिजली की फीटिंग गर्मियों से पहले, एक बड़ा लोहे का गेट भी बोल दिया के लगवा लेंगे, और जो पिछले तीन से साल से होता आ रहा था वही हुआ! बेचारी मेरी आँखों से सपने देख जरुर रही थी पर दिमाग अपना भी लगा रही थी!

फिर तो फर्श में डिजाइन कैसा होगा, गेट का डिजाइन क्या होना चाहिए... उसके सुझाव आ रहे थे जी शिकायतों की जगह! हमे लगा युध्ह-विराम के संकेत मिल गए है, सो शांति से सोने की तय्यारी करने लगे! सुबह चार बजे जो निकलना था दिल्ली के लिए!

हम सोच रहे थे क्या अजीब दास्ताँ है ये भी! माताश्री सोच रही है पैसे बहू को दे दिए होंगे, बहू सास से जली जा रही ये सोच कर कि पैसे उन्हें दिए गए है! जबकि सच कुछ और ही था! चलो जो भी था, वैसे भी जिंदगी भ्रमो के सहारे ही जीये जा रहे थे!एक-दो भ्रम और सही!....
[कुंवर जी]

2 टिप्‍पणियां:

आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

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