मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ कि "नारीवाद मक्कार पुरुषों की देन है".
और कुरान अल्लाह के अनुसार; हमने मर्द को औरत पर हाकिम बनाकर पैदा किया है।
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"अय्युर मालिक" (कतर,
दोहा सिटी) के द्वारा -June 1, 2008 2:22 AM
ई-मेल- gayyurmalik74@gmail.com (No Blog)
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(२)जो कुछ हो रहा है; सिर्फ एक पोलिटिकल स्टंट है!....इससे आम लोगों को- न स्त्रिओं को और न ही पुरुषों को- कोई फयदा पहुंचने वाला है!...बढिया सब्जेक्ट है।
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"जायका" (दिल्ली) के द्वारा -June 2, 2008 11:53 पम
http://jayaka-rosegarden.blogspot.com--------------------------------------------------------------------------------------------(३)जो नर नक्कारा, बदचलन और कामचोर होते है वह नारी को बहला फुसला कर उसके परिवार और समाज से उसका नाता ख़त्म करते फिरते -बाद मैं उसका शोषण करते हैं। उसके बाद अक्सर नारी के पास कोई अन्य उपाए नहीं होता वह वही करती जो नर चाहता है वह रात दिन मेहनत करती है लेकिन और वह नर उसकी मेहनत की कमाई से मौज लूटता है आराम से लेटे लेटे नारी के जिस्म को नोचता है पशु के समान उसे कार्य लेता है और नारी जब आराम करना चाहती है तो नर उसे पिछड़ जाने का डर दिखा कर काम करते रहने के लिए विवश करता
है। ये एक नारी के लिए बहुत बड़ी चुनोती होती है. ओरत परिवार की जिम्मेदारी जिस उतम तरीके से निभाती है. वह सराहनीय है।... बल्कि वह उसे अपने हितपूर्ति के लिए काम करने की प्रेरणा देगा अक्सर आपने अपने आसपास देखा भी होगा ओरत को सभी जगह चाहे वह राजनीति हो अथवा अर्थनीति नारी को केवल मुखोटा बना कर इस्तेमाल किया जाता है और वह सभी फायदा उठाने का प्रयाश किया जाता है जिससे नक्कारा, बदचलन और कामचोर पुरुष नेतृत्व को लाभ हो ? कुछ स्वार्थी तत्व हमेशा इसी तरह हर जगह नारी को बरगलाकर उनसे फायदा उठाते है लकिन इसका नुकशान आप आज समाज मैं गिरते हुए नारी सम्मान के रूप मैं देख सकते हो।
"उल्टा तीर" ब्लोग पर जारी बहस को पढ़ने पर मुझे लगा की इस पर बहस जा रहें और यदि कोई हल मिले तो इसे नर और नारी, जो एक दुसरे के पूरक हैं, को जरूर बताया जाये।
इस बहस के लिए धन्यवाद लेखक महोदय।---
"करमबीर पंवार" (नई दिल्ली) के द्वारा -June 1, 2008 5:57 PM
karmkarnkamal@gmail.com(NoBlog)
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नारीवाद का विचार सिर्फ़ पुरुषों की देन है यह आपसे किसने कह दिया. आप फ्रांस मशहूर लेखिका सिमोन डि बेवर को शायद जानते होगें. नारीवाद का विचार उन्हीं की देन है. उनकी किताब द सेकंड सेक्स पढ़ें.सिमोन द बोउआ का यह कथन दुनिया भर में उद्धृत किया जाता है कि स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। अर्थात आज हम जिस स्त्री को जानते हैं, वह जैविक से अधिक सांस्कृतिक इकाई है। स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। इस बात को याद किया जाना चाहिए।
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"राम कृष्ण डोंगरे" (नॉएडा) के द्वारा-June 2, 2008 1:36 PM
http://dongretrishna.blogspot.com
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(५)
इस बहस से कुछ मामलों मे नारी होते हुए भी सहमत हूँ.यकीनन ये बात सौलह आने सच है कि समाज में संस्कारों अच्छे विचारों और मानवीय मूल्यों की जननी सिर्फ और सिर्फ नारी ही है.बहस के सूत्रधार से मैं इस बात पर भी सहमत हूँ कि प्रकृति ने नारी जाति को भावनाओं से भरकर समाज को एक नया अर्थ प्रदान किया है.अब सवाल उठता है कि क्या केवल नारी की ही ये जिम्मेदारी है.दरअसल, पुरुष और नारी ये रथ के वो पहिये है जो साथ साथ चलकर ही समाज को परिवार को नयी दिशा दे सकते हैं. परिवार को बचाने के लिए नारी इस त्याग के लिए भी तैयार हो भी जाये और घर मे बैठ जाये तब भी क्या पुरुष उसे वो सम्मान और हक देगा मेरा यही सवाल है. ये बहस वाकई में गंभीर है. इसकी गंभीरता बनी रहे मेरी यही राय है।
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"सुप्रिया" (मुम्बई) के द्वारा-May 24, 2008 4:36 AM
http://supriya08.blogspot.com
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(६)
आज न तो संयुक्त परिवार हैं और न किसी के पास समय जोकि वो अपने परवर को ढंग से देख सके। मेरे विचार से तो इसके लिए उपभोक्तावादी संस्कृति जादा जिम्मेदार है।
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"शिवम शुक्ला" (भोपाल)
के द्वारा-May 25, 2008 8:34 AM
http://grooghantaal.blogspot.com/--------------------------------------------------------------------------------------------(७)
पुरुष अगर खुद के दम पर कुछ हासिल नहीं कर पा रहा है तो इसमें दोष पुरुष का ही है नारी का नहीं। २१वीं सदी में नारी घर बैठ जाए, क्या ये संभव है? ये वक़्त के दरकार है कि नारी को बराबरी का हक मिले. ये मुद्दा समाज को बहुत पीछे लेजाने की बात कहता है.
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अमिताभ फौजदार" (दिल्ली)
के द्वारा-May 19, 2008 8:30 AM
http://dilseamit.blogspot.com--------------------------------------------------------------------------------------------(८)
नारी को कमजोर समझना,स्तिथी के पीछे पुरुष का बड़ा हाथ है। तब शायद नारी ने पुरुष के हर काम को कर दिखाने की ठानी. अब भी कुछ निठल्ले पुरुष अपनी निठाल्लता को छुपाने केलिए आज भी स्त्री पर जोर आजमाते हैं. जिसके चलते वो नारीवाद को भला-बुरा कहने लगे. जहाँतक नारियों के चलते बेरोजगारी की बात है तो सितारे रौशनी के मौह्ताज़ नहीं.
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"बंटी"
के द्वारा-May 19, 2008 9:02 PM
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(९)
नारियाँ दोहरी जिंदगी जीती हैं बेशुकून। बदले में क्या मिलता है समाज से; उपेक्षा, तिरस्कार, व्यंग. जबकी वो घर-वार से लेके सामाजिक तक सभी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह करती है.
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"सुरभी" के
द्वारा-May 20, 2008 1:04 AM
http://kamhaiaapse.blogspot.com/बात से कुछ हद तक सहमत हुआ जा सकता है यह सच है की ओरत को जीवन मैं दोहरी जिम्मेदारी इसे नर के कारण ही उठानी पड़ती है नही तो ओरत परिवार की जिम्मेदारी जिस उतम तरीके से निभाती है उसे देखते हुए ही उसे अन्य जिम्मेदारी नौकरी या राजनीती के श्चेत्र मैं दी है जिसे उसने पूरी सिद्त से साबित भी किया है लकिन कहीं न कहीं इस कारण परिवार और समाज मैं नारी का समान खो गया है क्योकि नारी नर से आगे निकलने के चक्कर मैं इन्ही लोगो के हाथ की कटपुतली बन गयी है जिसे आप आरक्षण की राजनीती और इसे ही रिज़र्व स्थानों पर देख सकते हो अगर आप देखना चाहते हो कोई भी स्त्री अपने पिता, भाई और पति को घर मैं नक्कारा बैठा नहीं देखना चाहेगी इसलिए नर को अपनी जिम्मेदारी और ओरतो को उनके लिए काम का मौका देना होगा
अंत मैं मैं आपसे इस तरह के उन्मुक्त और जिम्मेदारी वाले विचारो के प्रसार को हर तरह से आगे बढाने का अनुरोध करुगी और इसे केवा बहस का रूप ही मत दीजिये बल्कि एक जन आन्दोलन का रूप देने का अथक प्रयास करे.