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सोमवार, 9 नवंबर 2009

घरेलू हिंसा के कारण- कब तक और क्यों ? Violence Debate- 5



महिलाओं पे घरेलु हिंसा का इतिहास पूरी दुनिया मे पुराना है। भारत में शायद अन्य मुल्कों से कुछ अधिक (पाकिस्तान में उससे भी अधिक हो सकता है)

कई कारण रहे हैं इसके। जैसे-

Ø      सबसे मुख्य कारण: पितृप्रधान व्यवस्था लडकी ब्याह के बाद ससुराल आती है। ( केरल तथा गुजरात में कुछ टपके हैं, जहाँ लड़का ससुराल आता है, माता पिता की देखभाल करनेकी ज़िम्मेदारी लडकी पे होती है.)

ससुराल आते ही उसपे उस घर के रीती रिवाज तुंरत अपनाने के लिए थोपे जाते हैं.। उसका अलग अस्तित्व किसी को मंज़ूर नही होता।

Ø      औरत का आर्थिक दृष्टी से आत्म निर्भर ना होना एक और कारण बन जाता है। उसे शारीरिक मानसिक हिंसा को भयंकर से रूप बर्दाश्त करना पड़ता है।

अक्सर मानसिक हिंसा को हिंसा माना ही नही जाता। लडकी को समर्पण भाव का उपदेश दिया जाता है। बचपन से यही बात सिखाई जाती है कि वो 'पराया धन' है। जहाँ वो पली बढ़ी वही घर उसके लिए पराया बन जाता है। ऐसे हालातों में पति और उसके परिवार को यकीन होता है कि उसे कहीं पनाह नही मिलनेवाली। माता पिता की आर्थिक हालत तथा सामजिक प्रतिष्ठा पे आँच आने की संभावना से ही उसके मायके वाले डर जाते हैं। अन्य भाई बहन के ब्याह में मुश्किल होगी ये डर रहता है। पढ़े-लिखे और आर्थिक रूपसे मज़बूत परिवारों मेभी यही विकृत मानसिकता दिखाई देती है। (एक सवाल तुम करो' इस ब्लॉग पर पढें " अर्थी तो उठी' इस शीर्षक तहत लिखा हुआ आलेख. गर अमित जी इजाज़त दें तो उसे उल्टा तीर पे पोस्ट कर दूँगी)

Ø      सवाल ये उठता है कि औरत की सुरक्षाके लिए क़ानून बने हैं, फिर भी हिंसा पे कोई रोक नही। जवाब यह है कि हिंसा का बयाँ गर पुलिस ठाणे में दर्ज कराया जाता है (लडकी द्वारा), तो उसके लिए ससुराल के दरवाज़े तो तुंरत बंद हो जाते हैं. मायकेवाले भी समझौता करवाने में अधिक विश्वास रखते हैं। साठी औरत गर कमाती ना हो, तो बच्चों के लालन पालन की ज़िम्मेदारी कौन निभाएगा, ये बड़ा सवाल होता है। ज़ाहिरन, ससुराल वाले इस बात का दुरूपयोग करते हैं। लडकी को घर छोड़ना है तो छोडे, बच्चे नही मिलेंगे, ये धमकी दी जाती है। ये इमोशनल blackmail ही तो है! बच्चों की खातिर एक माँ बहुत कुछ बर्दाश्त कर जाती है।

            थाने में जब तक रिपोर्ट नही लिखवाई जाती, आगे की कोई कार्यवाही मुमकिन नही। इसी कारण, पुलिस थानों में कौटुम्बिक सलाह मशविरा भी दिया जाता है।

Ø      दहेज़ की खिलाफत करता हुआ कठोर क़ानून है, लेकिन फिर वही बात! तेरी भी चुप मेरी भी चुप ! गर ब्याह के बाद रिपोर्ट लिखवायें तो मुश्किल, ब्याह के पहले लिखवायें तो  भविष्य में संभावित अन्य रिश्तों को लेके परेशानी..!
           
Ø      दहेज़ को लेके लडकी को कई बार जला दिया जाता है। मृत्यु पूर्व ज़बानी में उसपर दबाव डाला जाता है कि गर वो पति के ख़िलाफ़ कुछ कहेगी तो बच्चे पूरी तरह अनाथ हो जायेंगे. उनके सर से पिता का साया भी उठ जाएगा! वो जलने को अपघात की तौर पे दर्ज कराने के लिए मजबूर की जाती है।

Ø      गर उसे सत्य भी बताना हो तो, अस्पताल में महिला संगठना की कोई सदस्या हाज़िर हो तभी ये तकरार दर्ज की जा सकती है ! रातके समय गर उसे जलाया जाय और महिला संगठना की कार्यकरता/ सदस्य को भनक लग जाय तो वो या तो छुप जाती हैं, या बीमार होने का नाटक कर लेती हैं (ये असली जीवन में देखी घटनाओं का बयाँ दे रही हूँ)

ऐसी हालत में केवल पुलिस के समक्ष दी बयानी न्यायलय में ग्राह्य नही होती। ऐसे कई केस देखे गए हैं, जहाँ, पड़ोसी पोलिस और न्यायाधीश तक को पता होता है कि कसूरवार कौन है, क़ानून सुबूत मानता है। औरत की ज़बानी जो वो मृत्युपूर्व देती है, गवाही के बिना अवैध मानी जाती है !

Ø      मानसिक अत्याचार के जिस्म पे निशाँ तक नही होते ! कौन गवाही देगा...और वही सवाल, औरत जाए तो कहाँ जाय?

इन हालातों को मद्देनज़र रखते हुए, ऐसे ग्रहों/संस्थाओं की बेहद ज़रूरत है जहाँ महिलाओं, उनके बच्चों समेत, आश्रय मिल जाए। वरना गर साल बाद बच्चे को रिमांड में भेज दें तो वहाँ उसकी क्या हालत होगी ये सोचके डर लगता है!
उल्टा तीर के लिए
[शमा]
***
स्त्री प्रधान इस बुराई के विषय में जब तक महिलाओं खुलकर सामने नहीं आयेंगी, बहुत से सच सामने नहीं आयेंगे, बहुत सी बातें, कई तरह की मानसिकताएं कभी भी सामने नहीं आ सकेंगीं.  यह हिंसा सहना और हमेशा सहते रहना आपको आदत में तो डाल सकता है मग़र आप अपनी आने वाली पीढी को भी यही हिंसा परम्परागत जाने-अनजाने सौंप ही देंगे! मैं नहीं कहता कि यह इक़ दिन में कह्तम हो जाने वाली समस्या है, मैं मग़र यह जरूर कहता हूँ कि यह एक बड़ी बुराई है, हिंसा है, महिलाओं के साथ इंसानियत का रवैया नहीं है घरेलू हिंसा, यह महिलाओं की आज़ादी और संभावनाओं पर तमाचा है, जो हर रोज ही महिलाओं को अपने घर में सहना पड़ता है! बुराई करते-करते या सहते-सहते अभ्यस्त होने से अच्छाई के लिए इक़ बार अच्छा होना जादा अच्छा है.
[अमित के सागर]

10 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ न कुछ उपाय करने ही होंगे. इस तरह से कब तक चलेगा?
    कोई कुछ भी कहे अभी भी स्त्री कष्टों में है. आपका आलेख अच्छी तरह से स्थिति को दर्शाता दिखा.

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  2. Upay sujhayen, isliye to sthiti saamne rakhee hai..!

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  3. शमा जी
    आपने सही लिखा हर बात सही लिखी लेकिन उपाय किसी के पास नही जिनके पास है अमित जी ने एक उपाय बताया एेसे आदमी को छोड दो क्या भागने से समस्या का हल होता है?

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  4. शमा
    जी आपने एक कडवी हकीकत से रूबरू करवा दिया।
    एक एक बात कितनी सच है यह तो वो लोग आज जान ही गये होगे जो भुगत रहे है पर अब चुप रह कर सहने का वक्त नही रहा।

    Ganga Ke Kareeb http://sunitakhatri.blogspot.com
    Emotion's http://swastikachunmun.blogspot.com

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  5. वरना गर ५ साल बाद बच्चे को रिमांड में भेज दें तो वहाँ उसकी क्या हालत होगी ये सोचके डर लगता है! इसका अर्थ मुझे कुछ स्पष्ट नहीं हुआ अगर लेखिका मोह्दाया पर समय हो तो सपष्ट करे
    धन्यवाद्

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  6. Aadhar aashram me 5 saal se adhik umr ke ladkon ko rahne nahee diya jata...use maa se alag kar diya jata...aur rimand home pahunchaya jata hai...wahanse adhiktar ladke bhate hain..aur apradh karne lag jate hain...ek aisee wyawsthakee zaroorat hai, jahan, maa ke saath bachhon ko rahbe diya jay...yaa usee sansthake prangan me ladkoka aavaas aur paathsahala ho to sanskar sahee honge..

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  7. पुरुष और नारी एक दुसरे का जब तक सम्मान नहीं करेंगे तब तक ये समाज और देश कभी भी सर उठा कर दुनिया का मार्गदर्शक नहीं बन सकता और दुनिया ही हमे अपने गिरबान मे झाकने के लिए कहे इसे बेहतर ये है की हम आपसी समझदारी दिखाए
    उल्तातीर और इसके सभी लेखक बधाई के पात्र है

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  8. शमा
    जी आपने एक कडवी हकीकत से रूबरू करवा दिया।

    जवाब देंहटाएं
  9. कुछ न कुछ उपाय करने ही होंगे. इस तरह से कब तक चलेगा?

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)