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शनिवार, 7 नवंबर 2009

घरेलू हिंसा के मनोविज्ञान को समझना होगा - घरेलू हिंसा बहस - 4

प्राणीशास्त्रीय सम्बन्धों के आधार पर बने हुए समूहों में परिवार को सबसे छोटी इकाई के रूप में जाना जाता है। इस परिवार रूपी इकाई का निर्माण सम्भवतः सामाजिक सुरक्षा के लिए हुआ होगा। समय के साथ परिवार की अवधारणा में विकास हुआ और परिवार का ढाँचा बदला। संयुक्त परिवार से एकल परिवार, एकल परिवार के बाद नाभिक परिवार और अब नाभिक परिवार के बाद व्यक्तिवादी परिवार का निर्माण होने लगा।

परिवार के विविध स्वरूपों के निर्मित होने के बाद भी उसमें हिंसा का स्वरूप नहीं बदला। घरेलू हिंसा का स्वरूप अलग-अलग परिवारों में अलग-अलग रहा है, होता है। परिवार में होने वाली हिंसा के अध्ययन से पूर्व हमें इस बात को समझना होगा कि घरेलू हिंसा को केवल और केवल महिलाओं से सम्बन्धित हिंसा से न जोड़ा जाये।

आज घरेलू हिंसा के निराकरण में सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसे सिर्फ स्त्री से सम्बन्धित कर देने से समाज में उसके निराकरण को लेकर सोच और समझ का नजरिया बदलने लगता है।

बहस से न भटकते हुए पहले घरेलू हिंसा के स्वरूप को समझना होगा। इस हिंसा के दो स्वरूप आसानी से देखने में आते हैं। एक तो घरेलू हिंसा महिलाओं के प्रति और दूसरा घरेलू हिंसा पुरुषों के प्रति। चूँकि समाजशास्त्रीय आधार पर तथा कानूनी एवं संवैधानिक आधार पर घरेलू हिंसा को महिलाओं से सम्बन्धित करते ही देखा जाता है। इस आधार के स्वीकार्य होने के बाद घरेलू हिंसा का रूप मारपीट से ही लगाया जाता है।

देखा जाये तो कानून की परिभाषा में घरेलू हिंसा केवल मारपीट ही नहीं है। गालीगलौज, धक्कामुक्की, मानसिक प्रताड़ना, यौन उत्पीड़न आदि भी घरेलू हिंसा की परिधि में शामिल माने जाते हैं।

अब सवाल खड़ा होता है कि आज जब महिलाओं में शिक्षा का प्रसार भी हो गया है, रोजगार के क्षेत्र में भी महिलाओं ने अपनी धमक को दिखाया है तब महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा क्यों? घरेलू हिंसा को समझने के लिए उसके मनोविज्ञान को समझना आवश्यक है।

महिलाओं के साथ होती हिंसा के पीछे कौन है, क्या कारण हैं, इन बातों के आधार पर घरेलू हिंसा को आसानी से समझा जा सकता है। घरेलू हिंसा केवल पुरुषों द्वारा ही होती है, इस बात को आधार बनाने की धारणा को त्यागना होगा। बिना किसी पूर्वाग्रह के हमें इस बात को भी स्वीकारना होगा कि यदि महिलाओं के प्रति हिंसक रवैया पुरुष का है तो स्त्रियाँ भी इसमें पीछे नहीं हैं।

घरेलू हिंसा के मारपीट वाले रूप को घर के पुरुषों द्वारा किया जाना माना जा सकता है। इसके पीछे पुरुष की सम्प्रभु होने की धारणा काम करती है। हमें स्वयं अपने घर के माहौल को समझना होगा और देखना होगा कि हम अपने बच्चों में बचपन से ही लिंग भेद को पैदा करवा देने हैं। घर के कठिन काम लड़के ही करेंगे, लड़कों की बात को लड़कियों को माननी ही चाहिए, लड़कों ने जो कहा है वह सही ही होगा की धारणा को अभिभावक ही अपने बच्चों में भरते हैं। इसके पीछे यदि पिता का हाथ होता है तो माता भी कम दोषी नहीं होती है।

यही बच्चे जब बड़े होकर किसी के पति-पत्नी के रूप में परिवार से जुड़ते हैं तो पुरुष प्रवृत्ति के सभी कुछ सही होने की अवधारणा शक्ति प्रदर्शन का केन्द्र बन जाती है। कुछ भी करने की, जो किया वो सही है की यही मानसिकता पुरुष को स्त्री पर, अपनी पत्नी पर, बहिन पर, बेटी पर हाथ उठाने को उकसाती है। कुछेक उदाहरण तो समाज में ऐसे देखने को मिले हैं जहाँ कलयुगी पुत्र ने माता के ऊपर भी हाथ उठाने में संकोच नहीं किया।

इसके साथ ही परिवार में आधिपत्य की धारणा भी हमें घरेलू हिंसा के दृश्य दिखाती है। कोई इसे सहज रूप में भले ही न स्वीकार करे किन्तु घर-परिवार में एक प्रकार का शासन काम करता है, आधिपत्य करने की भावना यहाँ भी काम करती है। पिता द्वारा अपने बच्चों पर रोबदाब दिखाना, पत्नी को अपने अधिकार में रखने की भावना को इसी रूप में देखा जा सकता है।

यही आधिपत्य की भावना सास में बहू के प्रति भी होती है। अपने शुरुआती दिनों से अपने लड़के को अपनी बात मानते देखना और शादी के बाद उसे पत्नी के साये में बढ़ते देखना किसी-किसी सास को सहज स्वीकार नहीं हो पाता है। यह स्थिति भी घरेलू हिंसा का कारण बनती है। कभी-कभी यह स्थिति गालीगलौज से प्रारम्भ होकर मारपीट तक आ जाती है।

नाभिक परिवारों के निर्माण के प्रति समाज में बढ़ रही आसक्ति, घर के अन्य सदस्यों से दूर रहने की प्रवृत्ति भी परिवार में तनाव पैदा करती है और यही तनाव घरेलू हिंसा की ओर ले जाता है। सास-बहू की आपसी तकरार, बहू-ननद की नोंकझोंक से पैदा हुए तनाव को घर का पुरुष अपनी शक्ति के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास करता है। परिणामतः घरेलू हिंसा के विविध रूप सामने दिखाई देते हैं।

घरेलू हिंसा बहुत ही व्यापक विषय है और आज यदि इसका निदान चाहिए है तो हमें परिवार की अवधरणा को समझना होगा, टूटते परिवारों को रोकना होगा। बात बे बात तुलसीदास को दोष देने के स्थान पर हमें अपनी सोच को दोष देना होगा जो एक महिला को महिला नहीं मानती। ये बात स्त्री और पुरुष दोनों पर लागू होती है। ‘‘बेटी को प्यार, बहू को अधिकार’’ के सूत्रवाक्य को अपनाकर हम समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच को बढ़ा सकते हैं, घरेलू हिंसा को बढ़ने से रोक सकते हैं।
उल्टा तीर के लिए
[डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर]

3 टिप्‍पणियां:

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  2. घरेलू हिंसा को कानून मे बहुत अधिक विस्तार दे दिया गया है जिससे इसके दुरपयोग की संभावना बढ़ गई है जिसके कारण पारिवारिक रिश्ते खतरे मे पढ़ गए है
    महिला और पुरुष दोनों ही जब तक इस मुद्दे पर सहमत नहीं होंगे तब तक घरेलू हिंशा नहीं थम सकती
    जय श्री राम

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  3. thanks for appreciate me....
    महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर]...kaffi accha hai..

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

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