आंतकवाद से लडाई में हम सब साथ हैं। यही वो समय है जब हम सबको एकजुटता के साथ मजबूती से इस समस्या से मिलकर लड़ना होगा । कहते हैं "युद्ध के समय शान्ति की बात बेमानी हो जाती है " आतंकवादियों का कोई मजहब कोई दीन ईमान नही है। इनकी फितरत केवल हिंसा दहशत गर्दी और मौत का तांडव करना है । इस बार "उल्टा तीर" सम्पादकीय बोर्ड ने तय किया है कि आंतकवाद के मुद्दे पर अब हम कोई भी बहस नही करेंगे। क्योंकि उल्टा तीर की नज़र में आंतकवाद जेरे बहस का मुद्दा नही। बल्कि एक ऐसा नासूर है जिसका इलाज हर कीमत पर होना चाहिए। इस बार हम पूरे महीने आंतकवाद से कैसे लड़े इस बिन्दु पर आपके साथ विमर्श करेंगे। हम सभी मिलकर इस लड़ाई में अपनी अपनी भूमिका तय करेंगे। नो डिबेट ओनली एक्शन के मूल मंत्र के साथ आप भी हमसे अपने विचार अपने तरीके हमारे देश विदेश में बैठे सभी सुधि पाठकों के साथ बाटें। उल्टा तीर आपका अपना मंच है। हम सभी मिलकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर लडेंगे।
इस लड़ाई को हमें आचरण में लाना होगा "
एक अच्छा कल लाने के लिए हम सब मिलकर लड़े
हम में से कोई भी न भूले
तबाही की काली रात का मंज़र
हमारे दिलो में अब जिंदा रहे
एक आग बनकर
एक तड़प एक टीस
दिलों में जिंदा रहे
हम न भूले
हम न भूले
धधकते अंगारे सीने में जलने होंगे
सीने में आग जले
मैं चाहूँगा अब ये दर्द
हम में से कोई भी न भूले
कोई सांत्वना नही
कोई दिलासा नही
घावों पर कोई अब
मैं आँखे खोल के रखना चाहता हूँ
इस दर्द इन घावों से
मुझे अब मायूसी में
मुझे अब शोक में
मैं तो आग लगाना चाहता हूँ
अब इस वहशत का अंत चाहता हूँ
सीने में अब ये आग जलती रहे
पीड़ा ये सुलगती रहे
घाव हमें दिखते रहे
इस दर्द से आँख मिलाये हम सभी
इस दर्द को हम न भूले अब कभी
इस दर्द को बना ले
अपनी ताक़त हम सभी !!
उल्टा तीर सम्पादकीय मंडल
आतंकवाद के विरुद्ध किए जा रहे आप के प्रयासों की जितनी भी सराहना की जाए, कम है. बहुत अच्छा... लगे रहें...
जवाब देंहटाएंFrom-
‘मेरी पत्रिका’
Link : www.meripatrika.co.cc
"ये दर्द अब हौसला बने ये दर्द अब फ़ैसला बने"
जवाब देंहटाएंयही कहना चाहता हूँ . कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद .
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
जवाब देंहटाएंइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.
पहला कदम- जनप्रतिनिधियों को नेगेटिव वोटिंग के आधार पर वापस बुलाने की प्रक्रिया सरल की जाए.
आपका प्रयास प्रशंसनीय है.
जवाब देंहटाएंअमित भाई, आपने ये काम बड़ा अच्छा किया कि आतंकवाद जैसे मुद्दे पर शब्दों की बयानबाजी बन्द कर लोगों को कुछ करने के लिए उकसाया. आतंकवाद के नाम पर लोग मरते हैं और इसका दर्द हम अपने सीनों में लिए फिरने के लिए मजबूर होते हैं, तो फिर वो कौन से कारण हैं कि हम आजतक ये सब चुपचाप सहते आ रहे हैं?
जवाब देंहटाएंक्यों हम इन नालायक राजनेताओं के बहलावे में आते हैं? क्यों हमें कुछ चन्द स्वघोषित बुद्धिजीवी कभी मुस्लिम आतंकवाद, कभी हिन्दू आतंकवाद और जब कुछ नहीं बचता तो वर्ग विभेद के नाम पर फुसलाते रहते हैं?
हम खुद क्यों नहीं तय कर सकते हैं कि हमारे लिए उचित क्या है और इसके लिए हम अपना हक़ क्यों नहीं छीनते हैं (माँगने से वो मिलता नहीं)? वक़्त आ गया है (शायद बहुत पहले ही आ गया था) कि अब हम अपनी ज़िन्दगियों का फैसला खुद करें. किसी नेता, किसी स्वघोषित बुद्धिजीवी के हाथों में इसकी डोर न जाने दें.
अजित सिंह
जैसे भी हो, एक मत हो कर, एक जुट हो कर जनता ही आतंकवाद से लोहा लेने का रास्ता निकाल सकती है!... राजकीय नेताओं को हम आजमा चुके है!...उनसे कुछ नही हो रहा... सिवाय आश्वासन के वे कुछ नहीं दे सकते!... आपके विचारों से मै सहमत हूँ!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग (मेरी माला, मेरे मोती) पर देखिए... कविता ' आतंकवाद को नेस्त-नाबूद कर दो यार ' कविता में मैंने ऐसा ही कुछ कहा है!
जवाब देंहटाएंइस दर्द से आँख मिलाये हम सभी
जवाब देंहटाएंसुंदर लिखा है आपके ये विचार की अब हमे एक होकर लड़ना होगा भारत देश अब आतंक नही देखे इस दुआ के साथ .....
हम आपके साथ है
क्या बात है आपकी कविता वाह वाह वाह!नए साल की ................. हार्दिक शुभकामनाएं
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