

इसमें कोई संदेह नही कि सम्प्रति हिन्दी का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है. हिन्दी बाज़ार की भाषा भी बन रही है. हिन्दी ग्लोबल भी हो रही है. बावजूद इसके क्या हमारे अपने देश में हिन्दी को बतौर राष्ट्र भाषा समुचित सम्मान मिल पा रहा है? आज भी ख़ुद हिन्दी भाषियों को कहीं न कहीं लगता है कि अगर अंग्रेजी को वो नही अपनाएंगे तो समय की तेज़ रफ्तार- चाल में वे पिछड़ जायेंगे. ऐसा क्यों है कि आज भी हमारा समाज अग्रेजी को ही उन्नति की भाषा मानता है. क्या हिन्दी की दुर्दशा का दोषी ख़ुद हिन्दी भाषी ही है. उल्टा तीर में इस पूरे महीने बहस में भाग लीजिये. इस बार बहस का विषय है- "क्या केवल अंग्रेजी से ही हमारा समाज उन्नत हो सकता है?"
“आज़ादी” पर बहस का निष्कर्ष पढने के लिए "उल्टा तीर निष्कर्ष" पढ़ना न भूले ।
आपने स्वयम आज़ादी वाले सवाल मे पुछा था और मैंने बहुत से सवाल किए थे और उनका एक सवाल ये भी है की जब हम आज तक आजाद ही नही है तो अपनी जबान मे कैसे बात कह कर तररकी हो सकती है लेकिन आज भी आम भारतीय जिस भाषा मे अपनी भावना पर्दिशित करते है वो हिन्दी ही है और ये किसी भी अन्य किसी के दया के पात्र नही है बल्कि हम सब का जीवन है
जवाब देंहटाएंयदि समाज को कोइ भाषा समाज को जोड़ती है तब तो ठीक है लकिन यदि वह शोषण का कर्ण बनती हो तो उस भाषा का न होना ही व्यक्ति और समाज दोनों के हित मे होता है इसी प्रकार अंग्रेजी भाषा है वह केवल उन लोगो के दोवारा अधिकांस ताकतवर तबका जो अंग्रेज सरकार के वफादार थे और अंग्रेजो के लिए हिन्दी भाषी लोगो की मुखबरी करते थे ऐसे लोगो ने ही आज की अंगेरजी की नीव रखी है आज भी जब अंगेरजी की वकालत की जाती है ऐसे ही उदाहरण दिए जाते है की अंगेरजी देश को देखो वो अंग्रेजी के बल पर कहा पहुच गए है और नाना प्रकार अंग्रेजी की तरफदारी करते है लकिन यदि हम हिन्दी या मात्र भाषा मे भी समाज को ज्ञान दे सके तो चीन जापान फ्रांश जर्मन और भी अनगिनत देशो की तरह तरीके कर सकते है
जवाब देंहटाएंआपके सावल के जवाब जरूर मिलने की आशा मे
जिस देश के निवासियों में आत्मसम्मान व स्वाभिमान की भावना हो ही न, वहां इन सब की कोई गुंजाइश ही नहीं है, हिन्दी विरोधी अपने तर्क खोज लेंगे अंग्रेजी और अंग्रेजियत के पक्ष में, सीखना है तो जापानियों से सीखिये.
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