
- श्री रत्नम जी सभी रसों में दक्षता के साथ लिखने वाले विनम्र स्वभाव के ओजस्वी कवि थे. आपने दिल्ली साहित्य समाज की स्थापना की, अनके सफल साहित्यिक -सामाजिक आयोजन किए व आपको अपने लेखन क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से आप अलंकृत हुए।
अपनी कविताओं से मंच की शोभा बढाने वाले कवि श्री रत्नम जी की कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं- जैसे;
१॰ त्याग और बलिदान (देशभक्तों पर), २॰ जिन्दा रावण बहुत पडे हैं (कविता संगह), ३॰ ई-मेल फी-मेल (कहानी संगह), ४॰ अनेकता में एकता (कहानी संगह), ५॰ बिरादरी की नाक (कहानी संगह), ५॰ कुछ मैं भी कह दूं (कविता संगह), ६॰ गीतों की पाती (कविता संगह), ७॰ जय-घोष (कविता संगह), ८॰ जलती नारी (कविता संगह)इत्यादि ... एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी आपने 10 गाइडें लिखकर अपना अमूल्य योगदान दिया। कई पुस्तकों का सम्पादन व कई बार टेलीविजन पर आपने अपनी कवितायेँ पढ़कर श्रोताओं को बांधे रखा। आप अपनी रचनाओं से समाज को एक सकारात्मक सन्देश देते हुए हमें हमारे यथार्थ से रू-ब-रू कराते रहे। आप वीर-व्यंग्य-हास्य कवि के रुप में प्रख्यात हुए.
साहित्य में आपके अमूल्य योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
~!~रिश्तों पर दीवारें~!~
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्ते नाते हुए पराये, जो कल तक थे अपने।।
अंगुली पकड़ कर पांव चलाया, घर के अंगनारे में,
यौवन लेकर सम्मुख आया, वह अब बटवारे में।
उठा नाम बटवारे का तो, सब कुछ लगा है बटने।।
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्तों की अब बूढ़ी आंखें, देख–देख पथरायीं,
आशाओं के महल की साँसे , चलने से घबरायीं।
कल का नन्हा हाथ गाल पर, लगा तमाचा कसने।।
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
दीवारों पर चिपके रिश्ते, रिश्तों पर दीवारें,
घर आंगन सब हुए पराये, किसको आज पुकारें।
रिश्तों की मैली–सी चादर, चली सरक कर हटने।।
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
हर घर में बस यही समस्या, चौखट पार खड़ी है,
जिसको छू–कर देखा ‘रत्नम्’ विपदा वहीं बड़ी है।
हर रिश्तों में पड़ी दरारें, लगा कलेजा पफटने।।
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।