'उल्टा तीर पत्रिका' का दूसरा अंक "दिनकर" प्रकाशित हो चुका है । उल्टा तीर अपने सभी सुधि पाठकों और "दिनकर" में रचनात्मक व प्रेरणात्मक योगदान देने वाले रचनाकारों, टिप्पणीकारों का दिल से आभार व्यक्त करता है। "जश्न-ए-आज़ादी" पत्रिका के बाद अब "दिनकर" पत्रिका पढिये पूरे महीने भर। और भाग लीजिये उल्टा तीर पर जारी बहस में। उल्टा तीर की पत्रिका पढने के लिए "दिनकर" पर क्लिक कीजिए।

आपके अपने बहस वाले मंच पर इस माह का विषय था; क्या अंग्रेजी से ही हमारा समाज उन्नत हो सकता है?। विश्व हिन्दी दिवस के मौके पर दस्तूर भी था और हमारा विचारणीय चिंतन भी कि हम जानें व बहस करें कि क्या बदलते हुए परिवेश में क्या इतना कुछ बदल गया है कि हमें या हिन्दुस्तान को विकसित श्रेणी में दर्ज होने के लिए बिलायती भाषा 'अंग्रेजी' का इतना सहारा लेना होगा; कि हिन्दुस्तान की मातृभाषा का वजूद खतरे में आजायेगा...और जो सवाल हिन्दुस्तान के लिए मुंह उठाये खडा हो गया है ; कि, क्या अंग्रेजी से ही हमारा समाज उन्नत हो सकता है? बहस के पहलू में सवालों की तमाम गुत्थियां हैं, जिन्हें सुलझना जरूरी है...तो आप तैयार हैं अपने दायित्व के लिए? सितम्बर माह की १ तारीख से शुरू हुई ये बहस अभी भी जारी है...आपके पास 'उल्टा तीर मंच' है अपनी बात को स्वतंत्र रूप से कहने का. तर्क-वितर्क करने का...क्योंकि बहस अभी जारी है मेरे दोस्त...बहस में खुल कर भाग लीजिये । अपनी आवाज़ मुखर कीजिए...
साथ ही कल उल्टा तीर निष्कर्ष पर पिछले माह चली बहस "क्या आज़ादी अपने आप में एक बड़े बहस है" पर निष्कर्ष जरूर पढ़ें व अपनी बेबाक राय दें.उल्टा तीर पत्रिका का यह दूसरा अंक आपको कैसा लगा हमें अपने सुझावों अवश्य भेजिए. ताकि भविष्य में हमआपको और भी अधिक रोचक और पठनीय सामग्री इस पत्रिका के माध्यम से देते रहें।
- अमित के. सागर