इस लिहाज से अगर यह कहा जाए कि वर्तमान अध्यक्ष दिखाने के अध्यक्ष तो खुद हैँ लेकिन पर्दे के पीछे से काँग्रेस की बागडोर उस मठाधीश ने थाम रखी है ।
शनिवार, 16 सितंबर 2017
लो क सं घ र्ष !: काँग्रेस मठाधीश ने अपने प्यादोँ से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर को घेरा
इस लिहाज से अगर यह कहा जाए कि वर्तमान अध्यक्ष दिखाने के अध्यक्ष तो खुद हैँ लेकिन पर्दे के पीछे से काँग्रेस की बागडोर उस मठाधीश ने थाम रखी है ।
रविवार, 1 जनवरी 2012
शुभ हो नववर्ष
नया वर्ष आ गया; वर्ष 2012 आ गया; पुराना वर्ष 2011 चला गया। इस समय समाचारों में लोगों का उत्साह दिखाया जा रहा है। घर के कमरे में बैठे-बैठे हमें यहां उरई में खुशी में फोड़े जा रहे पटाखों का शोर सुनाई दे रहा है। लोगों की खुशी को कम नहीं करना चाहते, हमारे कम करने से होगी भी नहीं।
कई सवाल बहुत पहले से हमारे मन में नये वर्ष के आने पर, लोगों के अति-उत्साह को देखकर उठते थे कि इतनी खुशी, उल्लास किसलिए? पटाखों का फोड़ना किसलिए? रात-रात भर पार्टियों का आयोजन और हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी किसलिए? कहीं इस कारण से तो नहीं कि इस वर्ष हम आतंकवाद की चपेट में नहीं आये? कहीं इस कारण तो नहीं कि हम किसी दुर्घटना के शिकार नहीं हुए? कहीं इस कारण तो नहीं कि हमें पूरे वर्ष सम्पन्नता, सुख मिलता रहा?
इसके बाद भी नववर्ष के आने से यह एहसास हो रहा है कि बुरे दिन वर्ष 2011 के साथ चले गये हैं और नववर्ष अपने साथ बहुत कुछ नया लेकर ही आयेगा। देशवासियों को सुख-समृद्धि-सफलता-सुरक्षा आदि-आदि सब कुछ मिले। संसाधनों की उपलब्धता रहे, आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।
कामना यह भी है कि इस वर्ष में बच्चियां अजन्मी न रहें; कामना यह भी है कि महिलाओं को खौफ के साये में न जीना पड़े; कामना यह भी है कैरियर के दबाव में हमारे नौनिहालों को मौत को गले लगाने को मजबूर न होना पड़े; कामना यह भी कि कृषि प्रधान देश में किसानों को आत्महत्या करने जैसे कदम न उठाने पड़ें; कामना यह भी कि भ्रष्टाचारियों की कोई नई नस्ल पैदा न होने पाये और पुरानी नस्ल का विकास न होने पाये....कितना-कितना है कामना करने के लिए....नये वर्ष के साथ होने के लिए।
आइये चन्द लम्हों के आयोजन में हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी कर देने के साथ-साथ इस पर भी विचार करें। इस विचार के साथ ही आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें...कामना है कि आप सभी को ये वर्ष 2012 सुख-सम्पदा-सुरक्षा-सम्पन्नता-सुकून से भरा मिले।
मंगलवार, 26 जुलाई 2011
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011
डोंगरे की 'शादी पर सीधी बात' (SHADI PAR BAHAS)
'जर्नलिस्ट अमर उजाला'
लोग शादियां क्यों करते हैं? ये तो वे ही जानें, और मैं शादी क्यों कर रहा हूं। यह आपको ३० अप्रैल के बाद पता चल जाएगा। जब आप थोड़ा पसर्नल डोंगरे से रूबरू हो सकेंगे। फिलहाल बहस में हिस्सा लेते हुए हम आपको कुछ सोचना के लिए मजबूर कर रहे हैं।
कई यूथ अपनी लाइफ को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते। इसलिए भी अविवाहित रहने का मन बना लेते हैं। यह गल्र्स और ब्वॉयज दोनों पर लागू होता है। फिर सब शादी करके ही कौन-सा तीर मार लेते है। वहीं दूसरा पहलू यह भी है कि ज्यादातर शादीशुदा जोड़े देश की आबादी बढ़ाने में अतिमहत्वपूर्ण सहयोग देना जरूर अपना कत्र्तव्य समझते हैं।
हम शादी क्यों करना चाहते क्योंकि...?
- शादी व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हैं.
- सदियों से चली आ रही शादी की परंपरा को निभाना चाहते हैं.
- अपने खानदान को चलाने के लिए वंश प्राप्त करना चाहते हैं.
- या कि सिर्फ शारीरिक सुख, सुरक्षित सेक्स हासिल करने के लिए शादी करना चाहते हैं.
- क्या ज्यादातर शादियां देश की आबादी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
क्या एक व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए शादी की जाए?
तो मुझे नहीं लगता कि हर व्यवस्था का हिस्सा बनना सभी के लिए जरूरी है। और बात जहां तक वंश चलाने के लिए संतान हासिल करने की होती है, तो आज के आधुनिक युवाओं के लिए यह कोई इश्यु नहीं रह गया है। अविवाहित रहने वाले ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं सोचते। इनमें से कुछ लोग बच्चों को गोद ले लेते हैं। बिना शादी के भी आप माता-पिता होने की जिम्मेदारी निभा सकते है।
अब हम बात सेक्स या शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए शादी की करते हैं। ?
तो ज्यादातर युवा इन दिनों शादी से पहले या बाद में सेक्स के लिए शादी की अनिवार्यता को नकारते नजर आ रहे हैं। फिर भी ज्यादातर युवा सुरक्षित सेक्स के लिए शादी करने का ही विकल्प अपनाते हैं। क्योंकि बगैर शादी के सेक्स का रास्ता सभी के लिए उतना आसान नहीं है। बहुत सारे लोग शादी से कतराते हैं। इसका एक कारण यह है कि लड़के किसी अन्य का दायित्व उठाने से बचना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि वे अपनी बीवी के नखरे और डिमांड को पूरा नहीं कर पाएंगे।
उधर, दूसरी तरफ लड़कियों का भी शादी से मोहभंग होता जा रहा है। क्योंकि उनको लगता है कि शादी उनके कॅरियर पर विराम लगा देती है। कई मामलों में यह सच भी साबित हुआ है। मेरा भी कई ऐसी लड़कियों से सामना हुआ है जिन्होंने शादी के नाम से ही तौबा कर ली है। लड़कियां अपनी आजादी को खोना नहीं चाहती। उन्हें इस बात का भी डर होता है कि पता नहीं उनका जीवनसाथी कैसा होगा। उनकी तरक्की में सहायक बनेगा या घर-गृहस्थी और बच्चों में उलझा के रख देगा।
अपनी ही संतान का लेबल लगाने के लिए शादी !?
शादी व्यवस्था का जन्म अपनी ही संतान होने का लेबल लगाने के लिए हुआ था।? क्योंकि पति-पत्नी के संबंधों के बाद होनी वाली संतान को पुरुष अपना खून कहता आया है। यानी उसे इस बात का यकीन होता है कि यह संतान उसका अपना ही खून है। अपने वारिस की प्राप्ति के लिए भी शादी की जाती रही है। जाहिर सी बात है कि पुरुष प्रधान समाज ने अपने कायदे-कानून खुद तय किए। इनमें से कुछ आज तक भी चल रहे है।?
पुरुष मानसिकता में बदलाव लाए बिना मौजूदा शादी व्यवस्था में महिलाओं का विकास संभव नहीं है। चूंकि देखा यही जाता है कि पत्नी को ही तथाकथित त्याग करने के लिए मजबूर किया जाता है। शादी-बच्चे होते ही कॅरियर को तिलांजलि।
कुछ विचार
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मशहूर लेखिका शोभा डे का मानना है कि वर्तमान विवाहों में विवाह वाली बात रही ही नहीं है। अधिकांश लोग 'बस निभाना है...इसलिए शादी का बंधन निभाते हैं। शोभा का मानना है, विवाह ऐसे लोगों के लिए बना ही नहीं है।
ऐसे लोग जो शादी का सच जानना चाहते हैं, जिनके दिमाग में शादी क्यों, कैसे और किसलिए जैसे प्रश्न घुमड़ते रहते हैं, वे जो शादी के उतार-चढ़ाव से रू-ब-रू होना चाहते हैं.... ऐसे सभी लोगों के लिए मशहूर लेखिका शोभा-डे का उपन्यास 'स्पाउस' से रूबरू हुआ जा सकता है।