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शनिवार, 16 सितंबर 2017

लो क सं घ र्ष !: काँग्रेस मठाधीश ने अपने प्यादोँ से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर को घेरा





उत्तर प्रदेश मेँ निष्प्राण पडी काँग्रेस मेँ प्रत्यक्ष या परोक्ष कब्जेदारी को लेकर अभी भी घात प्रतिघात जारी हैँ और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष फिलहाल इन चालोँ मेँ फँसते दिखाई दे रहे हैँ ।
ऊपरी तौर पर अभी उत्तर प्रदेश काँग्रेस मेँ भले अभी सब ठीक ठाक दिखाई दे रहा हो लेकिन पर्दे के पीछे तलवारेँ भाँजे जाने की शुरूआत हो चुकी है , वजह है काँग्रेस हाईकमान की निगाह मेँ काफी दिनोँ से सँदिग्ध और अपनी सीट बचाने के लिए काँग्रेस की दर्जनोँ सीटेँ समाजवादी पार्टी के हाथ गिरवीँ रखने वाला एक चर्चित मठाधीश बाकी क्षत्रपोँ को प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर को अपने प्यादोँ के जरिए अपनी घेरेबन्दी मेँ कामयाब होता दिखाई दे रहा है ।


दर असल वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष उत्तर प्रदेश मेँ खुद से जुडे कार्यकर्ताओँ की सँख्या के लिहाज से निप्स अकेले हैँ । उनके साथ केवल एक कार्यकर्ता है जो कानपुर का युवा व्यवसाई और साधनसम्पन्न व्यक्ति है लेकिन राजनीतिक समझ और जमीनी पकड के लिहाज से शून्य है , चर्चा है कि राजबब्बर को सँसाधन वही उपलब्ध करवा रहा है और राजबब्बर की राजनीतिक हैसियत का उसी अनुपात मेँ लाभ उठा रहा है । उसकी यह कार्यशैली आमतौर पर प्रदेश काँग्रेस कमेटी मेँ बैठने वालोँ को अखर रही है लेकिन राजबब्बर की राहुल गाँधी पर मजबूत पकड के चलते ये पीसीसी ब्राँड काँग्रेसजन खुद को मजबूर पा रहे हैँ । इसका पूरा फायदा हाईकमान की निगाह मेँ सँदिग्ध उस शातिर मठाधीश ने उठाया और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री के कार्यकाल मेँ पीसीसी मेँ घुसेडे गए अपने प्यादोँ के जरिए वर्तमान अध्यक्ष को पूरी तरह से अपने घेरे मेँ ले लिया ।

इस लिहाज से अगर यह कहा जाए कि वर्तमान अध्यक्ष दिखाने के अध्यक्ष तो खुद हैँ लेकिन पर्दे के पीछे से काँग्रेस की बागडोर उस मठाधीश ने थाम रखी है ।


अब स्थिति यह है कि उस मठाधीश की पकड से राजबब्बर को निकालने के लिए गोलबँदी का दौर शुरू हो चुका है और इस विपक्षी लाबी का कहना है कि राजबब्बर ने उस मठाधीश के प्यादोँ के घेरे से खुद को बाहर ना निकाला तो 2019 मेँ काँग्रेस भाजपा से नहीँ आपस मेँ ही लडती दिखाई देगी ।


इतने दिनोँ तक बाकी क्षत्रप तो चुप रहकर मौके का इँतजार कर रहे थे लेकिन विगत 13 सितँबर को इन्दिरा गाँधी जन्मशती समारोह मेँ राजबब्बर ने यह मौका खुद बाकी मठाधीशोँ को सौप दिया जब इस समारोह का मीडिया सँयोजन प्रदेश काँग्रेस के मीडिया प्रमुख व पूर्वमँत्री सत्यदेव त्रिपाठी की जगह उस मठाधीश की विधायक बेटी व एक अपने एक अन्य प्यादे के हाथ मेँ दिलवा दिया । तिहत्तर वर्षीय सँघर्षशील नेता सत्यदेव त्रिपाठी के लिए यह बडा आघात था और इससे आहत होकर उन्होने त्यागपत्र देने का मन बना लिया था । किन्तु यह बात फैलते ही बाकी क्षत्रप और अन्य उपेक्षित काँग्रेसी सत्यदेव त्रिपाठी के इर्दगिर्द इकट्ठा होने लगे और उन पर इस्तीफा ना देकर काँग्रेस के हित मेँ तन कर खडे होने का दबाव बनाया और वे इसमेँ कामयाब भी हुए ।


-भूपिंदर पाल सिंह

रविवार, 1 जनवरी 2012

शुभ हो नववर्ष


नया वर्ष आ गया; वर्ष 2012 आ गया; पुराना वर्ष 2011 चला गया। इस समय समाचारों में लोगों का उत्साह दिखाया जा रहा है। घर के कमरे में बैठे-बैठे हमें यहां उरई में खुशी में फोड़े जा रहे पटाखों का शोर सुनाई दे रहा है। लोगों की खुशी को कम नहीं करना चाहते, हमारे कम करने से होगी भी नहीं।

कई सवाल बहुत पहले से हमारे मन में नये वर्ष के आने पर, लोगों के अति-उत्साह को देखकर उठते थे कि इतनी खुशी, उल्लास किसलिए? पटाखों का फोड़ना किसलिए? रात-रात भर पार्टियों का आयोजन और हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी किसलिए? कहीं इस कारण से तो नहीं कि इस वर्ष हम आतंकवाद की चपेट में नहीं आये? कहीं इस कारण तो नहीं कि हम किसी दुर्घटना के शिकार नहीं हुए? कहीं इस कारण तो नहीं कि हमें पूरे वर्ष सम्पन्नता, सुख मिलता रहा?

इसके बाद भी नववर्ष के आने से यह एहसास हो रहा है कि बुरे दिन वर्ष 2011 के साथ चले गये हैं और नववर्ष अपने साथ बहुत कुछ नया लेकर ही आयेगा। देशवासियों को सुख-समृद्धि-सफलता-सुरक्षा आदि-आदि सब कुछ मिले। संसाधनों की उपलब्धता रहे, आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।

कामना यह भी है कि इस वर्ष में बच्चियां अजन्मी न रहें; कामना यह भी है कि महिलाओं को खौफ के साये में न जीना पड़े; कामना यह भी है कैरियर के दबाव में हमारे नौनिहालों को मौत को गले लगाने को मजबूर न होना पड़े; कामना यह भी कि कृषि प्रधान देश में किसानों को आत्महत्या करने जैसे कदम न उठाने पड़ें; कामना यह भी कि भ्रष्टाचारियों की कोई नई नस्ल पैदा न होने पाये और पुरानी नस्ल का विकास न होने पाये....कितना-कितना है कामना करने के लिए....नये वर्ष के साथ होने के लिए।

आइये चन्द लम्हों के आयोजन में हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी कर देने के साथ-साथ इस पर भी विचार करें। इस विचार के साथ ही आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें...कामना है कि आप सभी को ये वर्ष 2012 सुख-सम्पदा-सुरक्षा-सम्पन्नता-सुकून से भरा मिले।


चित्र गूगल छवियों से साभार


मंगलवार, 26 जुलाई 2011

सन्देश (अमित के सागर)


व्यस्त हूँ दोस्तो.
जल्द लौटूंगा आप सबके बीच :-)

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

डोंगरे की 'शादी पर सीधी बात' (SHADI PAR BAHAS)



रामकृष्ण डोंगरे
'जर्नलिस्ट अमर उजाला'
शादी ... क्यों ?
लोग शादियां क्यों करते हैं? ये तो वे ही जानें, और मैं शादी क्यों कर रहा हूं। यह आपको ३० अप्रैल के बाद पता चल जाएगा। जब आप थोड़ा पसर्नल डोंगरे से रूबरू हो सकेंगे। फिलहाल बहस में हिस्सा लेते हुए हम आपको कुछ सोचना के लिए मजबूर कर रहे हैं।

कई यूथ अपनी लाइफ को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते। इसलिए भी अविवाहित रहने का मन बना लेते हैं। यह गल्र्स और ब्वॉयज दोनों पर लागू होता है। फिर सब शादी करके ही कौन-सा तीर मार लेते है। वहीं दूसरा पहलू यह भी है कि ज्यादातर शादीशुदा जोड़े देश की आबादी बढ़ाने में अतिमहत्वपूर्ण सहयोग देना जरूर अपना कत्र्तव्य समझते हैं।

हम शादी क्यों करना चाहते क्योंकि...?
  • शादी व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हैं.
  • सदियों से चली आ रही शादी की परंपरा को निभाना चाहते हैं.
  • अपने खानदान को चलाने के लिए वंश प्राप्त करना चाहते हैं.
  • या कि सिर्फ शारीरिक सुख, सुरक्षित सेक्स हासिल करने के लिए शादी करना चाहते हैं.
अब सवाल कुछ तीखा ...
  • क्या ज्यादातर शादियां देश की आबादी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
शादी ... क्यों और किसलिए? क्या इसलिए कि यह एक व्यवस्था है, जिसका हिस्सा हम सबको बनना होता है? या एक परंपरा है, जिसे हमें निभाना पड़ता है, खानदान चलाने के लिए वंश प्राप्त करने का जरिया है। अगर हम थोड़ा बोल्ड होकर कहें तो क्या इसलिए कि यह शारीरिक सुख, सेक्स हासिल करने का परंपरागत तरीका है। इस बारे में सभी की राय अलग-अलग हो सकती है।

क्या एक व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए शादी की जाए?

तो मुझे नहीं लगता कि हर व्यवस्था का हिस्सा बनना सभी के लिए जरूरी है। और बात जहां तक वंश चलाने के लिए संतान हासिल करने की होती है, तो आज के आधुनिक युवाओं के लिए यह कोई इश्यु नहीं रह गया है। अविवाहित रहने वाले ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं सोचते। इनमें से कुछ लोग बच्चों को गोद ले लेते हैं। बिना शादी के भी आप माता-पिता होने की जिम्मेदारी निभा सकते है।

अब हम बात सेक्स या शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए शादी की करते हैं। ?

तो ज्यादातर युवा इन दिनों शादी से पहले या बाद में सेक्स के लिए शादी की अनिवार्यता को नकारते नजर आ रहे हैं। फिर भी ज्यादातर युवा सुरक्षित सेक्स के लिए शादी करने का ही विकल्प अपनाते हैं। क्योंकि बगैर शादी के सेक्स का रास्ता सभी के लिए उतना आसान नहीं है। बहुत सारे लोग शादी से कतराते हैं। इसका एक कारण यह है कि लड़के किसी अन्य का दायित्व उठाने से बचना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि वे अपनी बीवी के नखरे और डिमांड को पूरा नहीं कर पाएंगे।

उधर, दूसरी तरफ लड़कियों का भी शादी से मोहभंग होता जा रहा है। क्योंकि उनको लगता है कि शादी उनके कॅरियर पर विराम लगा देती है। कई मामलों में यह सच भी साबित हुआ है। मेरा भी कई ऐसी लड़कियों से सामना हुआ है जिन्होंने शादी के नाम से ही तौबा कर ली है। लड़कियां अपनी आजादी को खोना नहीं चाहती। उन्हें इस बात का भी डर होता है कि पता नहीं उनका जीवनसाथी कैसा होगा। उनकी तरक्की में सहायक बनेगा या घर-गृहस्थी और बच्चों में उलझा के रख देगा।

अपनी ही संतान का लेबल लगाने के लिए शादी !?
शादी व्यवस्था का जन्म अपनी ही संतान होने का लेबल लगाने के लिए हुआ था।?  क्योंकि पति-पत्नी के संबंधों के बाद होनी वाली संतान को पुरुष अपना खून कहता आया है। यानी उसे इस बात का यकीन होता है कि यह संतान उसका अपना ही खून है। अपने वारिस की प्राप्ति के लिए भी शादी की जाती रही है। जाहिर सी बात है कि पुरुष प्रधान समाज ने अपने कायदे-कानून खुद तय किए। इनमें से कुछ आज तक भी चल रहे है।?

पुरुष मानसिकता में बदलाव लाए बिना मौजूदा शादी व्यवस्था में महिलाओं का विकास संभव नहीं है। चूंकि देखा यही जाता है कि पत्नी को ही तथाकथित त्याग करने के लिए मजबूर किया जाता है। शादी-बच्चे होते ही कॅरियर को तिलांजलि।
सीधी बात अभी बाकी है... शादी अभी बाकी है  *-*-* डोंगरे की शादी पर सीधी बात... जारी रहेगी...
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कुछ विचार
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मशहूर लेखिका शोभा डे का मानना है कि वर्तमान विवाहों में विवाह वाली बात रही ही नहीं है। अधिकांश लोग 'बस निभाना है...इसलिए शादी का बंधन निभाते हैं। शोभा का मानना है, विवाह ऐसे लोगों के लिए बना ही नहीं है।
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ऐसे लोग जो शादी का सच जानना चाहते हैं, जिनके दिमाग में शादी क्यों, कैसे और किसलिए जैसे प्रश्न घुमड़ते रहते हैं, वे जो शादी के उतार-चढ़ाव से रू-ब-रू होना चाहते हैं.... ऐसे सभी लोगों के लिए मशहूर लेखिका शोभा-डे का उपन्यास 'स्पाउस' से रूबरू हुआ जा सकता है। 
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ब्लॉग: डोंगरे के ७ फेरे ! ई मेल: dongre.trishna@gmail.com
"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका 8th march Binny Binny Sharma DGP Domestic Violence Debate-2- FWB Friends With Benefits SHADI PAR BAHAS amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage dharm ya jaati dongre ke 7 fere festival friendship ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के १५ अगस्त

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)