tag:blogger.com,1999:blog-7695654499245448037.post4353936575135179380..comments2024-01-23T17:57:45.300+05:30Comments on उल्टा तीर: धर्म या जातिउल्टा तीर [अमित के सागर - अकेसा]http://www.blogger.com/profile/02851512989313528812noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7695654499245448037.post-47698523148262887532010-04-06T03:19:43.690+05:302010-04-06T03:19:43.690+05:30mahoday!
bahut prabhavkari hai aap ka lekh.
Dr.Dan...mahoday!<br />bahut prabhavkari hai aap ka lekh.<br />Dr.Danda Lakhaviडॉ० डंडा लखनवीhttps://www.blogger.com/profile/14536866583084833513noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7695654499245448037.post-66379874878453158932010-03-30T13:08:19.935+05:302010-03-30T13:08:19.935+05:30ब्रह्मण परिवार में जन्म के साथ ही , कुछ न कहे गए ...ब्रह्मण परिवार में जन्म के साथ ही , कुछ न कहे गए संस्कार भी आप पा लेते हो , ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी था , हालाँकि न तो मुझे कोई दंभ था न ही कोई द्वेष , "जिक्र " बस इसलिए की आपका आलेख किसी पुरानी घटना को जीवंत करता चला गया ॥<br />लगभग २ दशक पहले , आंगन में भूक से कर्हती आवाज़ सुनी , कोई ६० बरसातों का भीगा हुआ ढांचा , दो मुट्ठी चांवल की गुहार किये जा रहा था । माँ घर पर न थी और रसोई का मेरा ज्ञान बस पेट भर भोजन तक ही था ,सो "चांवल" के अस्तित्व का आभास न था , फिर भी माँ ने कुछ रोटियां रखी थी सो ले आया , थाली में , कटोरी और गिलास भी थे , बिलकुल जैसा मुझे परोसा जाता था वैसा ही , जून की गर्मी से पथराई ऑंखें यकाय आश्चर्य और भय से तिलमिला उठी , "ये क्या करते हो , बाबु दो मुठी चांवल दे दो काफी होगा " , उस ब्ल्यावस्था में मुझे समझ नहीं आया की अगर ये भूखा है तो खा क्यूँ नहीं लेता ? पुछा ,तो जैसे मैंने उसके मरे हुए वजूद को लात मरी हो ....<br /><br />वो उठा बिना कुछ लिए ... शायद आशीर्वाद देना चाहता था , क्यूंकि मुद्रा वाही थी ... यकायक रुका ... कुछ सोचा... बोला "मै अछूत हूँ बाबु "। <br /><br />२० वर्ष हो गए , और आज भी , ये शब्द शायद सुनाई न दें ,पर कही न कही मेहसूस हो ही जाते हैं ... खेद है , किन्तु आश्चर्य ज्यादा है .... की फिर भी हम विकासशील देशो की दौड़ में सबसे आगे हैं .......Rajat Ghildiyalhttp://www.unmuktvichar.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7695654499245448037.post-18984174177099746322010-03-26T17:01:01.706+05:302010-03-26T17:01:01.706+05:30समाज में समरसता बनाने की आवश्यकता है....समाज में समरसता बनाने की आवश्यकता है....संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7695654499245448037.post-89806176391169164982010-03-16T12:28:52.131+05:302010-03-16T12:28:52.131+05:30-उल्टा तीर के जागरूक पाठक "डॉ.वेद शर्मा"...-उल्टा तीर के जागरूक पाठक "डॉ.वेद शर्मा" द्वारा मेल से भेजी गई प्रतिक्रिया-<br /><br />आप ने बहुत कुछ सच लिखा है पर एक तरफ तो अंत हीन आरक्षण जो एक हथियार के रूप में प्रयोग हो रहा है क्या आज के समाज में वर्तमान आरक्षण का उपयोग उचित हो रहा है? इस पर भी तो विचार करें <br /><br />डॉ.वेद व्यथितAmit K Sagarhttps://www.blogger.com/profile/15327916625569849443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7695654499245448037.post-8520511577632278632010-03-14T19:43:15.464+05:302010-03-14T19:43:15.464+05:30कुवर जी
सागर जी को ऐसे मुद्दों का सुझाव देने के लि...कुवर जी<br />सागर जी को ऐसे मुद्दों का सुझाव देने के लिए धन्यवाद यदि आप इस पर कोई अन्य लेख लिखना चाहते है तो सागर जी को जरूर बतायेkarmowalahttps://www.blogger.com/profile/13293541237818023254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7695654499245448037.post-29948094820603992292010-03-10T20:07:02.465+05:302010-03-10T20:07:02.465+05:30बहुत बढ़िया. समाज में समरसता बनाने की आवश्यकता है, ...बहुत बढ़िया. समाज में समरसता बनाने की आवश्यकता है, न कि विद्वेष फैलाने की.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.com