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रविवार, 14 मार्च 2010

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी...!!!


बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक काफी जद्दोज़हद के बाद आखिर संसद का राज्यसभा में पेश हो गया. कुछ सहयोगी विपक्षी पार्टियों के हो हल्ला और वाकआउट के बावजूद यूपीए की सरकार चौदह साल बाद संसद उच्च सदन में बिल के पक्ष में १८६ मत और विरोध में १ मत हासिल कर महिला आरक्षण विधेयक का पहला बैरियर पार कर लिया. लेकिन सहयोगी विपक्षी पार्टियों के नेताओं की जाति आधारित महिलाओं ला आरक्षण की मांग पर किए जा रहे हंगामे से पता चलता है कि यूपीए की सरकार इस बिल को लोकसभा में अभी लाने के मूड में नहीं है. महिला आरक्षण विधेयक को अपनी मंजिल तक पहुंचने में अभी काफी लम्बा सफ़र और बैरियर्स का सामना करना पड़ेगा. सरकार के ढुलमुल रवैए से साफ हो जाता है कि " न नौ मन ताल होगा न राधा नाचेगी." न महिला आरक्षण विधेयक पर राजनीतिक आम सहमती बनेगी और न यह बिल अपनी परिणति को प्राप्त होगा.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ( ८ मार्च ) को पूरे विश्व ने अपने तरीके से मनाया. भारत ने भी कुछ अनूठे अंदाज़ में इसे मनाया. देश की आधी आबादी ( ४९.६५ करोड़ ) के अरसे से लंबित लोकसभा व राज्यसभा में ३३ प्रतिशत आरक्षण की मांग के बिल को राज्यसभा में पेश कर मनाया. ये और बात है कि सरकार को इस बिल को अमली जामा पहनाने में पूरी कामयाबी हासिल नहीं हुई है. आम जनता महंगाई की आग में जल ही रहि थी कि उस आग को नज़रअंदाज़ कर सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक का शिगूफ़ा छोड़ दिया. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि देश में जब भी कोई घोटाला, आम जनता से जुड़ी कोई घटना या दुर्घटना होती है तो सरकार लोगों को भरमाने के लिए एक जांच समिति गठित कर देती है. जांच शुरू हो जाति है. उस जांच में एक पीढ़ी जवान हो जाति है और एक पीढ़ी का अवसान हो जाता है. फिर भी जांच चलती रहती है. कोई कमी रह जाने पर दूसरी जांच समिति गठित कर दी जाती है. जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई को जांच समिति की सुविधा सेवा में खर्च कर दिया जाता है. वैसे भी हम भावुक भारतीय लोग प्रवृत्ति से काफी भरमशील और भूलनशील होते हैं. इसलिए, कौन सी समिति कब बनी ? उसने क्या किया ? उस पर कितना धन खर्च हुआ ? आम लोगों को उससे कितना फायदा पहुंचा ? समय बीतने पर सब भूल जाते हैं. सरकार जांच समिति का खेल खेलती रहती है. 

आम जनता अभी इसी सवाल के जवाब ढूढ़ने में उलझी थी कि एनडीए शासनकाल में हर तीसरे दिन गैस सिलिंडर वाला कहाँ से गैस लेकर आ धमकता था. और वर्तमान सरकार समय में ऐसा क्या हो गया कि महीनों बुकिंग के बाद भी गैस नहीं मिलती. आम आदमी की जरूरत की चीज़ें उसकी पहुँच से दूर होती जा रहि है. कमरतोड़ महंगाई ने आम आदमी के चाय की चुस्कियों के स्वाद " शुगर फ्री "  कर दिया है. ऐसे समय में महंगाई की धूप से ध्यान हटाने के लिए सरकार ने ३३ प्रतिशत के जिन्न को जनता के बीच छोड़ दिया. 

३३ प्रतिशत आरक्षण को पेश करने के लिए राज्यसभा को ६ बार स्थगित करना पड़ा. आरक्षण बिल की प्रतियों को विरोधियों ने द्रौपदी के चीरहरण की मानिंद फाड़कर चिंदी-चिंदी कर दिया. बिल की पार्टियों को फाड़ने वाले पुरुषों ने अपने कृत्य से आधी आबादी को संकेत दे दिया कि- " अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आंखों में पानी."  वे कभी आधी आबादी को पूरी आबादी में तब्दील होने देना नहीं चाहते. हालाँकि इस अमर्यादित कृत्य के लिए उन सात सांसदों को निलंबित कर दिया गया. लेकिन क्या निलंबन से आधी आबादी के आँचल पर उछाले गए कीचड़ के दाग साफ हो पायेगा ? शायद, हो भी जाए, क्योंकि भारत की आधी आबादी में भावुकता ३३ प्रतिशत से ज्यादा पायी जाति है. तभी तो कबीर ने कहा है कि- " नारी की झाईं परत, अंधा हॉट भुजंग, कबिरा तिन की कौन गति, नित नारी को संग." 

जिन्हें अपना आधार खिसक जाने का डर सता रहा है वे महिला आरक्षण विधेयक को हरसंभव पारित नहीं होने देंगे. उन्हें यह भय सताता है कि जिस दी आधी आबादी उनके समक्ष अपने बहुमत के साथ बैठेगी तो अपने बातों के बेलन से छुद्र राजनेताओं की बोलती बंद कर देगी. इसलिए, बिल के विरोधी नेताओं ने जाति आधारित आरक्षण का पासा फेंककर ३३ फीसदी के बिल को बिलबिलाने पर मजबूर कर रहे है.

जिस मुल्क में दुनिया की सर्वाधिक योग्य पेशेवर महिलाएं हैं. जहां अतिविकसित अमेरिका से ज्यादा महिलाएं डाक्टर, सर्जन्स, वैज्ञानिक और प्रोफेसर्स हैं. दुनिया की सबसे ज्यादा कामकाजी महिलाएं जिस मुल्क में हैं, वह भारत देश अपने पड़ोसी मुल्कों से बहुत पीछे है. ११५ करोड़ आबादी वाले हम भारतियों के लिए यह निहायत शर्म की बात है. हम भारत को इक्कीसवीं सदी का भारत बनने का सपना देखते हैं. जब हम ३३ प्रतिशत स्थान तक महिलाओं को नहीं दे पा रहे तो इक्कीसवीं सदी के भारत का सपना कैसे पूरा होगा ? 

इस व़क्त मुझे मुनव्वर  राना साहब द्वारा रचित कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं. आपकी पेशे-नज़र करता चलूँ...

'धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारे घर के
मैं समझती थी कि काम आएगा बेटा अपना.'
'मुकद्दर में  लिखाकर आए हैं हम दरबदर फिरना
परिंदे, कोई मौसम हो परेशानी में राहते हैं.'
'बोझ उठाना शौक कहाँ है, मजबूरी का सौदा है
राहते-राहते लोग स्टेशन पर कुली हो जाते हैं.'
[प्रबल प्रताप सिंह]

गुरुवार, 11 मार्च 2010

क्या जरूरी है शादी से पहले बातचीत?


शादी से पहले बातचीत जरूरी है या नही यह बहस का विषय है सच तो यह है कि समय परिवर्तन व जीवनशैली में आने वाले बदलावों का असर हमारे संबधों रीति -रिवाजों तौर तरीको पर भी पडता है । जब लडका-लडकी खुले शहरी वातावरण में पले हो तो यह सोचना असंभव सा है की है वह बिना बातचीत किए शादी कर लेगे । कुछ जगहों पर अभी भी शादी से पहले बातचीत नही की जाती पर अब वह समय नही रहा जीवन की जटिलताओ में शादी कर दो अजनबियों को विवाह बंधन में बांध जिन्दगी गुज़ारने के लिए नही छोडा जा सकता ।

नई पीढी से इस संबंध में बात करे तो वह यह नही मान सकते की बिना किसी से बात करे शादी कैसे कर ले एक बार बात कर फैसला करना वह ज्यादा ठीक समझते है कि शादी करनी है या नही बिना बात करे शादी कैसे कर ले यह गुजरे जमाने की बात हो गयी है ।यदि लडकी पढी लिखी व समझदार है तो मां-बाप भी चाहते है कि उनकी लडकी एक बार अपने होने वाले जीवन साथी से बात कर ले।

जो लोग शादी से पूर्व लडका लडकी की बातचीत शादी से पहले नही करवाते उनमें हमेशा यह अंसतोष बना रहता है काश वह एक बार विवाह पूर्व बात कर लेते इसके लिए एक उदाहरण देती हूं मेरी एक सहेली की शादी माता-पिता की मर्जी से हई लडकी पढ रही थी शादी तय करने से पहले कोई बातचीत नही हई बस शादी कर दी गयी लडका आई ए एस की तैयारी कर रहा था जो बन नही सका काई रोजगार न होने के कारण लडकी के घर में ही घरजंमाई बन गया क्योंकि शहर की लडकी उस लडके के घर जो की गांव में था नही रह पायी वह हमेशा कहती थी कि उसका पति बेरोजगार है जिसकी वजह से उसे बहुत तकलीफ होती है घर के लोग कुछ नही कह सकते थे क्योकि शादी उन्होने ही करवायी थी ।

एक अन्य उदाहरण में एक ऎसी लडकी के बारे में है जिसने शादी से पहले लडके से बात नही की इसका मलाल उसे इसलिए रहा कि वह उच्चशिक्षित है लेकिन अपने पति के रहन सहन वह आदतों से दुखी थी आखिरकार दोनो का तलाक हो गया वह भी सिर्फ इसलिए कि उस लडकी के पिता ने कहो कि अब इस आदमी के साथ नही रहना व उसे घर ले आये वह तो जैसे तैसे निर्वाह कर ही रही थी खामियाजा उसके साथ उसकी दो बेटियों को भी झेलना पड रहा है जो पिता के प्यार से वंचित अपने नाना के घर पर रह रही है.

इसमें भी उस महिला का कहना है काश वह एक बार शादी से पहले अपने भावी पति से बात की होती तो वह ऎसे आदमी से विवाह कभी न करती बातचीत से काफी हद तक पता चल जाता है किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा है तभी जीवन संग गुजारने की राय बन पाती है यही सब लडको पर भी लागू होता वह भी चाहते है कि शादी से पहले एक दुसरे से बातचीत कर ले आज के दौर में सभी यह चाहते है बिना बात किए शादी करना गुजरे जमाने की बात हो गयी है...।

[सुनीता शर्मा]
स्वतंत्र पत्रकार

बुधवार, 10 मार्च 2010

धर्म या जाति

आज समाज धर्म या जाति के भंवर में ऐसा फंसा हुआ है कि उचित-अनुचित की सुध-बुध ही खो सी गयी है! धर्मान्तरण पर तो चर्चा खूब जोर-शोर से होती है लेकिन इस पर गौर नहीं किया जाता के ये हो ही क्यों रहा है!

यदि हम देखे तो जो हिन्दू बहुत गरीब या अनपढ़ है वो ही धर्म परिवर्तन जैसी गलतिया कर रहे है! उनमे भी अधिकतर वो हिन्दू है जिनको कुछ "विशेष हिन्दू" बड़ी घृणा की दृष्टी से देखते है! जो जैसा भी है उसको वैसा ही सम्मान तो मिलना ही चाहिए! ये तो ठीक है पर दण्ड तो अपराधी को ही देना चाहिए!

तो उस गरीब, अनपढ़ हिन्दू का यही अपराध है के वो एक हिन्दू है! वो बेचारा क्या करेगा? जिन आँखों में उसे अपने लिए सम्मान दिखाई देगा वो तो उन्हें ही अपना हमदर्द समझेगा, यही होना भी चाहिए! उन भोलो-भालो को नहीं पता के ये सम्मान नकली है, या ये कोई षड़यंत्र है!

मेरे एक मित्र की भावनाए जो मैंने महसूस की,  उनको अपने शब्द देने की कोशिश की है! यदि शब्द भी उसी के प्रस्तुत कर दू तो "विशेष हिन्दुओ" को शर्म में डूब मरने के सिवाए कुछ रास्ता भी दिखाई ना दे! 


'तुम' कह रहे हो
टपका दो ये आंसूं,
जो आँखों में
अटक गया है!
टपक जाएगा,
पहला तो नहीं टपकेगा!

तुम कह रहे हो
मत पछताओ,
जो हो गया
सो हो गया,
पहली बार तो नहीं हुआ है!

अरे जब
है 'मै' और 'तुम'
तो
'हमारे' और 'तुम्हारे'
तो होंगे ही!
तुमने तो कह दिया!

मै कैसे कहूं...?

कैसे कहूं कि
कल तक 'हमारो' में हमारा था मै!
आज
"हमारो" में "तुम"
हो के आया हूँ,

'अपनों' में 'तुम' हो कर

अब
रोऊँ मै किसके आगे?

उनके आगे
जो हमारे कभी बताये ही नहीं गए,
या फिर
उन अपनों के आगे
जो अपने ही दिखाई नहीं दिए!

"अपनापन" कहीं गिर ना जाए"

'तुम्हारो' की नज़र में
इसीलिए
नहीं टपकता
ये आँखों में अटका आंसू!

हमें जागना होगा, छोड़ना होगा ये झूठा दंभ! हर किसी में परमात्मा बताता है अपना धर्म, उनमे भी जिनको हम अपने घर में घुसने नहीं देते, अपने आसनों पर बैठने नहीं देते और तो और जो सबसे हास्यास्पद है, अपने भगवान् को भी पूजने नहीं देते! इस से पहले की कोई और क्षुब्ध, आक्रामक, असंतुष्ट धर्म जन्म ले हमे सब में परमात्मा देखना ही होगा!

क्या इस बार ये तीर उल्टा कर यहाँ चल सकता है? इस पर चर्चा होनी चाहिए कि क्या कोई जाति धर्म से श्रेष्ठ हो सकती है! कोई कैसा क्यूँ है इसके कोई भी कितने भी कारण दे सकते है! लेकिन हम किसी के साथ कैसा भी व्यहार करते उसके कारण केवल हम दे सकते है जो कि हमारे चरित्र को, हमारे वयक्तित्व को दर्शाने वाले होते है!

[कुंवर जी]


मैं उम्मीद करता हूँ कि इस विषय पर उल्टा तीर पर आगामी समय में विस्तृत रूप से चर्चा-बहस होगी! बहरहाल, [...ताकि रिश्तों को टूटने से बचा पायें- शादी से पहले क्या...] पर हम सभी मिलकर एक सार्थक बहस, चर्चा करें और किसी निष्कर्ष पर पहुचें इसकी मैं लेखकों एवं सभी पाठकों से अपनी-अपनी राय रखने की अपील करता हूँ! 
[अमित के सागर]

रविवार, 7 मार्च 2010

... ताकि रिश्तों को टूटने से बचा पाएं


महानगरों में रहने वाले दंपतियों के बीच जल्दी आ जाती है तलाक की नौबत

शादी से पहले लड़के और लड़कियों के बीच 'चेहरा दिखाई' के अलावा बातचीत और मुलाकात जरूर होनी चाहिए। और इस बात को कई परिवार समझने भी लगे है। और ऐसा होने भी लगा है। आपस में बातचीत के लिए अगर दोनों को पर्याप्त समय दिया जाए तो ज्यादा अच्छा होता है।

लड़का क्या सोचता है, लड़की क्या सोचती है, अपने कॅरियर, लाइफ के बारे में जानना-समझना बेहद जरूरी है। ताकि बाद में कोई गड़बड़ी पैदा न हो। 'लड़की का जॉब करना या न करना' यह भी आज एक बड़ा इश्यू बन चुका है। अब आप इसे किस कानून के जरिए तय नहीं कर सकते ?

मैं अपने एक ऐसे दोस्त का उदाहरण देना चाहूंगा, जो सोचता था कि उसकी लाइफ पाटर्नर जॉब करें मगर उसका सपना चूर-चूर हो गया। क्योंकि शादी से पहले उसकी बीवी से मुलाकात या बातचीत नहीं हो पाई। उसकी बीवी बीएससी पास है। उसने सोचा था कि कम्प्यूटर कोर्स करवाने के बाद कोई जॉब करवाएंगे। उन्होंने अपनी बीवी को कोर्स करवा दिया। मगर उनकी बीवी किचन से बाहर ही नहीं निकलती।

*-*

क्या शादी से पहले लड़के और लड़कियों के बीच बातचीत होनी चाहिए ? बहुत सारी बातें है। हम बात को ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हुए सीधे-सीधे कहने की कोशिश करते है। मैंने अपने एक परिचित दंपति से जानना चाहा। अगर आपको शादी से पहले एक दूसरे के बारे में जानने-समझनका मौका मिलता तो क्या आप यह शादी करते ? उनका जवाब था बिल्कुल नहीं। मैंने फिर सवाल किया। क्या कमी है आपके रिश्ते में और आप अलग क्यों नहीं हो जाते ? उनका जवाब सुनिए- सबसे पहले तो हमारी पढ़ाई-लिखाई का स्तर ठीक नहीं है। पत्नी ने कहा कि मेरा पति ज्यादा पढ़ा-िखा होता तो अच्छा होता। और ये भी कहा कि हम चाह कर भी अलग नहीं हो सकते। क्योंकि तलाक जैसी बातों को यहां अच्छा नहीं माना जाता।

एक प्रोफेशनल दंपति से मैंने बातचीत की। उनका कहना था कि शादियां तो समझौता पर ही चलती है। ये सोचना बेकार है कि भारतीय शादियों में कहीं कोई खुशी होती है। दो लोग एक साथ रहते है। दोनों की विचारधारा मिलती है। व्यवहार। अगर दोनों के विचार मिलते हो तो जिंदगी बड़ी अच्छी गुजरती है। वरना तो बस कटती है।

देखा आपने एक उच्च शिक्षित दंपति का क्या कहना है। अगर दोनों के विचार मिले तो जीवन बड़ा सुंदर हो जाता है। मतलब साफ है कि आज के समय में शादी से पहले लड़के और लड़कियों के बीच बातचीत, मुलाकात होना जरूरी है। ताकि एक-दूसरे केविचार-व्यवहार केबारे में जाना जा सकें। भविष्य की योजना के बारे में बात की जा सकें। केवल चेहरा देख लेने भर से ही जिंदगी भर का फैसला नहीं किया जा सकता।

लड़का क्या सोचता है, लड़की क्या सोचती है, अपने कॅरियर, लाइफ के बारे में जानना-समझना बेहद जरूरी है। ताकि बाद में कोई गड़बड़ी पैदा हो। 'लड़की का जॉब करना या करना' यह भी आज एक बड़ा इश्यू बन चुका है। अब आप इसे किस कानून के जरिए तय नहीं कर सकते।

पहला नजरिया
कई लड़कों का आज भी सोचना है कि लड़की से शादी के बाद नौकरी नहीं करवाएंगे। इनमें लाखों का पैकेज वाले अफसर और कुछ हजार महीनों की नौकरी करने वाले लड़के दोनों शामिल है। क्या कर सकते हैं आप ? ऐसे में उस लड़की का जीवन तो बर्बाद हो गया जिसने कॅरियर बनाने की चाह में पढ़ाई की थी। लड़की से कह दिया चुपचाप घर में बैठो। अब बताईए इसका क्या समाधान है।

गर शादी से पहले इन दोनों की मुलाकात हो जाती, बातचीत हो जाती तो क्या ये समस्या पेश आती?
दूसरा नजरिया
समय के साथ कदम से कदम मिलाते हुए कुछ लड़कों और लड़कियों का आज ये सोचना है कि दोनों को जॉब, नौकरी करना चाहिए। आखिर किसी (लड़की) की पढ़ाई-लिखाई और काबिलियत, एनर्जी क्यों बेकार जाए। यहां मैं अपने एक ऐसे दोस्त का उदहरण देना चाहूंगा, जो सोचता था कि उसकी लाइफ पाटर्नर जॉब करें मगर उसका सपना चूर-चूर हो गया। क्योंकि शादी से पहले उसकी बीवी से मुलाकात या बातचीत नहीं हो पाई। उसकी बीवी बीएससी पास है। उन्होंने सोचा था कि कम्प्यूटर कोर्स करवाने के बाद कोई जॉब करवाएंगे। उन्होंनअपनी बीवी को कोर्स करवा दिया। मगर उनकी बीवी किचन से बाहर ही नहीं निकलती। अब आप बताईये। इस मामले में क्या किया जा सकता है।

इन दोनों ही मामलों से साफ जाहिर होता है कि शादी से पहले लड़के और लड़कियों के बीच 'चेहरा दिखाई' के अलावा बातचीत और मुलाकात जरूर होनचाहिए। और इस बात को कई परिवार समझने भी लगे है। और ऐसा होने भी लगा है। आपस में बातचीत के लिए अगर दोनों को पर्याप्त समय दिया जाए तो ज्यादा अच्छा होता है।

अब कुछ और दोस्तों का किस्सा सुनिए। जिसमें लड़के और लड़की दोनों शामिल है।

पहले लड़की से सुनिए
एक लड़की ने बताया कि मुझे देखने लड़के रहे है। आते हैं और बिना कुछ बात किए, पूछे, चले जाते है। लाइफ के बारे में कोई बातचीत, कॅरियर को लेकर। पता नहीं क्या देखते हैं? यहां महसूस करते है कि लड़की के मन में यही बात है कि उसका भावी जीवनसाथी उससे बातचीत करें।

लड़के का किस्सा
एक दोस्त ने बताया कि जहां भी लड़की देखने गया दस-पंद्रह लोगों के बीच बैठना होता था। लड़की एक बार चाय, एक बार नाश्ता लेकर आईं। और फिर गायब हो गई। क्या बिना जाने-समझे जिंदगी भर का रिश्ता किया जा सकता है। कदापि नहीं।

अब आप इस पर भी विचार करें कि पहले संयुक्त परिवार होता था। परिवार में कई बड़े बुजुर्ग पुरुष और महिलाएं होती थी, जो पति-पत्नी के बीच बिगड़ती बात को संभाल लेती थी। लेकिन अब जब एकल परिवार है। पति-पत्नी महानगरों में अकेले रहते हैं। इनके बीच तलाक की नौबत जल्दी जाता है। क्योंकि उनके बीच सामंजस्य कायम होने के कारण रिश्ते टूटने लगते हैं।
[रामकृष्ण डोंगरे]
"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)