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मंगलवार, 3 नवंबर 2009

स्त्री-पुरुष और घरेलू हिंसा

-Domestic Violence Debate-2- 

हिंसा की कोई शक्ल नहीं होती, लेकिन हिंसा करने वाले की सूरत को कागज पर जरूर उकेरा जा सकता है. आदिकाल में जब मनुष्य भोजन की तलाश में जंगलों की खाक छाना करता था हिंसा तब भी मौजूद थी. उन निरीह जानवरों के लिए जो किसी का पेट भरने की खातिर मारे जाते थे मनुष्य हिंसा फैलाने वाले दानव की तरह था. वो दानव जो करुण पुकार और दया के भाव से कोसों दूर था. इतना लंबा समय गुजरने के बाद भी करुणा और दया जैसे शब्द मनुष्य के शब्दकोष में ढूंढे से आज भी नहीं मिलते, हिंसा का अस्तित्व अब भी कायम है. फर्क केवल इतना है कि उसका स्वरूप वृह्द हो चला है. मनुष्य जो शुरू से ही क्रूर था आज क्रूरतम बन गया है. पहले उसकी क्रूरता केवल स्वयं और अपनों को बचाने तक ही सीमित थी मगर आज वह उन्हीं अपनों के साथ क्रूरता से पेश आता है. रिश्तेनाते उसके लिए कोई मायने नहीं रखते.

मनुष्य का प्रत्येक रूप फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष हिंसा बोध से ग्रस्त है. पुरुष को इस मामले में थोड़ा आगे रखा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. हिंसा के मायने उसके लिए बिल्कुल अलग हैं.घर की चारदीवारी के भीतर स्त्री पर उठने वाले हाथ को वह हिंसा नहीं मानता, उसके लिए तो यह मर्दानगी का सुबूत है. पुरुष की इस मर्दानगी के किस्से आए दिन खबरों के माध्यम से सुनने में आते रहते हैं. नेशनल क्राइम ब्यूरों के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ अपराध के सालाना 1.5 लाख मामले दर्ज किए जाते हैं, जिनमें से लगभग 50 हजार घरेलू हिंसा से जुड़े होते हैं. मौटे तौर पर कहा जाए तो लगभग पांच मिलियन महिलाएं घर के भीतर हिंसा का शिकार होती हैं, लेकिन महज 0.1 फीसदी ही इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने का साहस जुटा पाती हैं. दरअसल हमारे देश में शुरूआत से लड़कियों को यह बात सिखाई जाती है कि उन्हें हरहाल में अपने पति के साथ रहना है. ऐसे में रिश्तों में कड़वाहट की दशा में भी वो ससुराल की दहलीज से बाहर पैर निकलाने का फैसला लेने से कतराती हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका यह फैसला परिवार के लिए बदनामी का कारण बन सकता है.

एनसीआरबी की 2007-08 की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि तमाम दलीलों और प्रयासों के बावजूद महिलाओं के प्रति क्रूरता में कोई कमी नहीं आई है. रिपोर्ट में आधी आबादी पर अत्याचार के मामले में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बाद आंध्र प्रदेश को दूसरे स्थान पर रहा गया, राय में घरेलू हिंसा के 11,335, दहेज हत्या के 613, बलात्कार के 1079, और अपहरण के 1564 मामले दर्ज किए गये. ऐसे ही उत्तर प्रदेश में दहेज हत्या के 2066, बलात्कार के 1532 और अपहरण के 3819 केस सामने आए. ऐसा तब है जब राय में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक महिला विराजमान है. दिल्ली से सटे हरियाणा में तो स्थिति और भी यादा खराब है, भले ही दूसरे रायों की तुलना में यहां कम मामले दर्ज किए गये हों मगर महिलाओं से क्रूरता की खौफनाक तस्वीर यहां आय दिन देखने को मिलती रहती है. बिहार की बात करें तो नीतिश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी महिलाओं की दशा में कोई सुधार देखने को नहीं मिला. 2007-08 के दौरान यहां करीब 59 प्रतिशत विवाहिताएं घरेलू हिंसा की भेंट चढ़ी, जबकि दहेज हत्या के 1172 और बलात्कार के 1555 मामले दर्ज किए गये. इसी तरह मध्यप्रदेश, कर्नाटका और केरल आदि रायों में भी हिंसा का ग्राफ बाकी रायों की तरह ही रहा.

सबसे यादा अफसोस की बात तो ये है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले केवल निचले तबके तक ही सीमित नहीं हैं. पढ़े-लिखे और संपन्न माने जाने वाले परिवारों में भी ऐसा धड़ल्ले से होता है. 26 अक्टूबर 2006 को देश में घरेलू हिंसा रोकने के लिए नया कानून लागू किया गया, जिसके तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रहने वाली महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में अपने साथी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ -साथ जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया. कानून लागू होने के महज दो दिन बाद यानी 28 अक्टूबर 2006 को इसके अंतर्गत तमिलनाडु से पहली गिरफ्तारी हुई. 47 वर्षीय जोसेफ को अपनी पत्नी से मारपीट के आरोप में हिरासत में लिया गया, इस पहली गिरफ्तारी के बाद एक आस बंधी की शायद महिलाओं के प्रति बरसों से चली आ रही सोच में परिवर्तन देखने को मिलेगा, हालांकि कुछ परिवर्तन जरूर सामने आया लेकिन उसका प्रतिशत हिंसा के मुकाबले काफी कम रहा. कुल मिलाकर कहा जाए तो बदलते जमाने के साथ साथ पुरुष ने अपने आप में अनगिनत बदलाव किए मगर स्त्री को लेकर चली आ रही घिसी-पिटी मानसिकता बदलने की कोशिश नहीं की. पुरुष का यह बहुत ही क्रूरतम चेहरा है मगर इसका मतलब ये भी नहीं लगाया जाना चाहिए कि दर्शाए गये प्रत्येक चेहरे की क्रूरता में उतनी ही सच्चाई हो. महिलाएं बुरे दौर से गुजर रही हैं इसमें कोई दोराय नहीं लेकिन कहीं-कहीं पुरुषों की स्थिति उनसे यादा दयनीय है. घरेलू हिंसा का शिकार उन्हें भी होना पड़ रहा है, इसका कारण है महिलाओं की सुरक्षा को बनाए गये कठोर कानून.

यहां एक शोध का जिक्र करना बेहद जरूरी है, हालांकि उसका मौजूदा विषय से खास ताल्लुक नहीं लेकिन मासूम चेहरे के पीछे छिपी क्रूरता को कुछ हद तक उजागर करने के लिए आवश्यक है. कुछ वक्त पूर्व हुए इसशोध में यह बात सामने आई कि देश की राजधानी दिल्ली में पिछले पांच सालों में दर्ज किए गए बलात्कार के मामलों तकरीबन 20 फीसदी के आसपास फर्जी थे. अधिकतर मामलों को बदला लेने के उद्देश्य के चलते बलात्कार से जोड़ा गया. शोध में उन तमाम मामलों का भी उल्लेख किया गया जिनमें रेप की आड़ में हित साधने की कोशिश की गई. मसलन पूर्वी दिल्ली में रहने वाली एक 16 साल की लड़की ने अपने पिता पर बलात्कार का आरोप लगाया लेकिन जब सच सामने आया तो पता चला कि यह करतूत किसी और की थी और भाई के कहने पर उसने ऐसा किया. ऐसे ही द्वारका की रहने वाली 13 साल की लड़की ने जिन लड़कों पर बलात्कार का आरोप लगाया पुलिस जांच में वो फर्जी पाया गया. बाद में मालूम हुआ कि लड़की के परिवार के कुछ लोगों ने ही उसके साथ रेप किया था लेकिन पारिवारिक दबाव में आकर उसे झूठ बोलना पडा. ऐसे ही तकरीबन 10 साल तक खिंचने वाले एक मामले में अदालत ने अपने दामाद पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिला का सच उजागर किया.विकासपुरी में रहने वाली इस महिला ने दामाद पर डरा-धमकार लंबे समय से यौन शोषण करने कर आरोप लगाया लेकिन कोर्ट में वह अपने झूठ को यादा देर तक कायम नहीं रख पाई. इसी तरह एक शादीशुदा महिला ने अपने अपहरण और बलात्कार का झूठा ड्रामा रचा, उसने पुलिस को बताया कि अज्ञात लोगों ने उसे अगवा कर उसके साथ मुंह काला किया. मगर जांच में मालूम हुआ कि महिला ने अपने प्रेमी के साथ मर्जी से संबंध बनाया और खुद को बचाने के लिए यह कहानी गढ़ी. इस सब के बाद इतना तो कहा ही जा सकता है कि क्रूरता के मामलों में जितना सच्चाई नजर आती है दरअसल उतनी होती नहीं. महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं, ये सही है. लेकिन ये भी सही है कि पुरुष भी इससे अछूते नहीं. क्योंकि दोनों ही हिंसाबोध से ग्रस्त हैं.
उल्टा तीर के लिए
[नीरज नैयर]

5 टिप्‍पणियां:

  1. नीरज जी आपने एकदम ठीक लिखा कि घर की चारदीवारी में हाथ उठाने वाले पुरूष उसे हिंसा नही मानते।

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  2. aaj apka poora blog dekha ..... bahut achcha laga.......... aap bahut hi achcha kaam kar rahe hain..... lekhan bhi kaafi prabhaavshali hai........

    yeh lekh bhi jagrook karne wala hai..... infact......... saare lekh jaagrookta se bharpoor hain....

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  3. घरेलू हिंसा रोकने के लिये मात्र शिक्षा का प्रसार काफी नहे है । पुरुषप्रधान समाज की मानसिकता को बदलना होगा और यह परिवर्तन अचानक सम्भव नही है ..समय लगेगा ।

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  4. मनुष्य का प्रत्येक रूप फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष हिंसा बोध से ग्रस्त है लेखक का ये कहना किसी हद तक सही जिसके कारन ही मनुष्य प्रजाति को भी पशु कहा जाता है फर्क इतना है की इसके पास एक बुद्धि है जिसका वो इस्तेमाल अपने लिए कर के अन्य जाती को अपना गुलाम बनता आया है ये युगों युगों से जारी है और जारी है रहेगा
    जय श्री राम

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  5. घरेलू हिंसा रोकने के लिये मात्र शिक्षा का प्रसार काफी नहे है । पुरुषप्रधान समाज की मानसिकता को बदलना होगा और यह परिवर्तन अचानक सम्भव नही है ..समय लगेगा ।

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)