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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

यहां फरेब है {Friends with Benefits} बहस-१०


हम इन्सान है. गुस्सा, हंसी, रोना, उदास होना, खुश होना, प्रेम करना ये सब किसी भी इन्सान की सहज प्रवृत्तियां हो सकती है. किसी भी व्यक्ति के व्यक्तितत्व का निर्धारण उसका परिवेश, परवरिश, शिक्षा, संगत आदि बहुत सी बातें है जो उसके जीवन पर असर डालती है. तब एक जीवन का निर्माण होता है। मै यहां यह सब क्यों कह रही हुं? क्योकि  विषय तो बहस का यह है समाज में प्रचलित एक रिश्ता जिसे "फ्रेन्डस विद बेनेफिटस" का नाम दिया है.  हमारे समाज में ये रिश्ता व्याप्त हो चुका है जिसके बारे काफी कुछ बतलाया जा चुका है. पूरी बहस में तमाम ऎसे उदाहरण भी दिये गये जिसमें बहुत सी छिपी बातों का खुलासा भी हो चुका है। क्या इन रिश्तों के पीछे कारण आज के जीवन की देन कहा जाये या फिर टुटता परिवार, खत्म होता  समाजिक  नियन्त्रण, सामाजिक खुलापन या जीने की आजादी व खुलापन कारण अनलिमिटेड है। बस अहम है तो यह कि प्यार जो कभी साथ जीने मरने सारी जिन्दगी निभाने का दायित्व या बोध होना कि चाहे कुछ भी कभी रिश्ते टूटे न लेकिन आज छोटी बातों पर लोग रिश्ते खत्म कर देते है. 

बदलाव हर रिश्ते में आया है। फिर इन रिश्तों का बढना या अस्तित्व में आना कोई नयी बात नही रह गयी। सवाल यह उठता है कि  स्त्री पुरूषों के लिए यौन-सम्बन्ध रखने के लिए समाजिक तौर पर विवाह संस्था का चलन व स्वीकार्य होना है यही समाज में समाजिक तौर पर यौन सम्बन्धों पर नियन्त्रण व अराजकता की स्थित से बचाव का उपाय भी था । आज जब समाज में अस्वीकृत तौर पर या स्वीकृत तौर पर फ्रेन्डस विद बेनेफिटस जैसे रिश्तों का समाजिक सम्बधों को सरल बनायेगा या जटिल इससे लोगो को खुशिया मिलेगी या गम ये तो समय के साथ चलता रहेगा लेकिन कुछ ऎसे उदाहरण सामने आये है जिससे ये पता चला है कि इन रिश्तो में जो लोग रहे उन्हे आखिर में मानसिक अवसाद या डिपरेशन के सिवा कुछ हासिल न हुआ जिस खुशी या क्षणिक सुख के बदले बाद में दुख ही मिला ये मनुष्य की चारित्रिक विशेषता भी हो सकती है कि वह अपनी बात पर कितना दृढ रहता है. क्योकि एक के बाद दसरे के साथ यौन सम्बन्ध वाले रिश्ते बनाना सिर्फ अपने इनजायमेन्ट के लिए भारतीय संस्कुति के विरूद्व है. पर दुसरी सभ्यताओं की देखा देखी ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव की वजह से भी भारतीय समाज की वर्जनाये टूट रही हैं और हर चीज में पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण ने भले ही हमारे लाइफ-स्टाइल को प्रभावित किया हो पर शायद कही कोने में दिल है हिन्दुस्तानी वाली बात जरूर छिपी हई होती है।

जीने के लिए साथ व सानिध्य की आवश्यकता मनुष्य को उम्र के हर पडाव पर पडती है सुविधाओं की उपलबधियों आज समाज की सेक्स वर्जनाओ कही तोडा भी है.  पर अमित जी ने पिछली पोस्टों में  इस रिश्तें को मानने वालों के कुछ सुक्षाव भी सामने रखे क्योंकि जिस तरह इसको मांग व आपूर्ति का रिश्ता भी कहा गया है उसके लिए भावुकता का यहां कोई स्थान नही है भावुक व भावनाये रखने वाले लोगो को इन बातो से परे ही रहने की सलाह दी गयी । यहां फरेब है... यहां इस रिश्ते को निभाने के पीछे कोई प्रतिबद्वता तो है नही. जब जिसका मन चाहे वो रिलेशन रखे या न रखे कोई कारण नही जब चाहे तब दुसरे के साथ दुसरा रिलेशन बना सकता है इसलिए यहां जिन्दगी तलाशने वाले दूर ही रहे....! 

उल्टा तीर के लिए
[सुनीता शर्मा]
स्वतंत्र पत्रकार

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा आलेख

    बेहतरीन लफ्ज़ों में शानदार बात..........
    अभिनन्दन !

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  2. यह तीर तो बिलकुल सीधा धँस गया

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  3. आप सभी का मैं तहे दिल से शुक्रिया कहती हुं कमेट जो आपने इस लेख के लिए किये। आपको लेख की बातें पसन्द आयी इससे ज्यादा खुशी क्या हो सकती है कि हम सचमुच हिन्दुस्तानी है... .......

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  4. बड़ी सहजता से आपने अपनी बात रखी ! दिल को भेदने वाला यह तीर बिना रुके गतिशील रहे !

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)