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गुरुवार, 17 सितंबर 2009

मेरे प्रिय भारत देश "एक चिट्ठी देश के नाम"

मेरे प्रिय भारत देश,
सादर नमन
क्या कहें और कैसे कहें क्योंकि आज तक हम तुमसे कुछ न कुछ लेते ही रहे। तुम्हें देने की जब भी बात आई हम स्वयं को कतार में सबसे पीछे खड़ा पाते रहे। यह तो तुम्हारी उदारता और महानता है कि इसके बाद भी तुम हमें अपने प्यार से सराबोर करते रहे।

अभी हमने आजादी का जश्न मनाया। जश्न तो मनाया पर समझ नहीं सके कि जश्न किसकी आजादी का था; तुम्हारी आजादी का या अपने आजाद होने का? सन् 1947 में तुम्हारे कुछ सपूतों की शहादत काम आई; उन वीरों की कुर्बानियाँ काम आईं जो वर्षों वर्षों से तुम्हारी सेवा में लीन रहे। अंग्रेजों के हाथों से छूटे तो भारतीय लाटसाहबों के शिकंजे में फँस गये। आजाद तो हुए मगर लहुलुहान हो गये। कुछ स्वार्थ, कुछ लोभ, कुछ अहं और बस हम तैयार हो गये तुम्हें बाँट देने को; काट कर बाँट देने को। तुम्हारा बहता लहु किसी ने न देखा, बस बहते लहू को हिन्दू का लहू, मुस्लिम का लहू समझा। तुम्हारे घाव को किसी ने न देखा, किसी को भारत का घाव लगा किसी को पाकिस्तान का।

आज इतने वर्ष बीत गये आजादी के हमने स्वयं को स्वतन्त्र तो समझा पर तुम्हें स्वतन्त्र समझने का, स्वतन्त्र करने का प्रयास नहीं किया। किसी न किसी रूप में आजादी के बाद हम तुम्हारी प्रतिष्ठा को दाँव पर लगाते रहे; कभी दंगों के रूप में, कभी आतंकवाद के रूप में। तुम्हारे ऊपर कभी हम हमला करते रहे, कभी हमें कमजोर देखकर बाहर वाले हमला करते रहे। हर हमले के बाद हम कहते रहे कि हम पहले से अधिक ताकतवर होकर उभरे हैं; हमें कोई ताकत झुका नहीं सकती; हम हर नापाक ताकत को मुँहतोड़ जवाब देंगे, इसी तरह की बयानवाजी करते रहे।

हम अधिक ताकतवर होकर तो उभरे मगर हथियारों की मदद से। हमने स्वयं को शक्तिसम्पन्न किया पर नाजायज तरीकों से। तुम्हारी गोद में पढ़े लिखे और अपनी मेधा को, अपने ज्ञान को, अपनी शिक्षा को दूसरे देशों में लगाते रहे। तुम्हारे खजाने को लूट-लूट कर विदेशों में पहुँचाते रहे। शायद हम उस पानी को सुखा चुके हैं जो 15 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराते समय हमारी आँखों से बहा था? अपनी उस शपथ को भुला बैठे हैं जो तुम्हें शान से इठलाते देखकर, शान से लहराते तिरंगे को देखकर ली थी?

ऐसा नहीं है कि तुम्हारे सभी बेटे-बेटियों ने तुम्हें दुखी किया हो। तुम्हारे कुछ सपूत तुम्हारे लिए सर्वस्य न्यौछावर करने को तत्पर रहे। तुम्हारी शान को विश्व में सर्वत्र रोशन किया। धरती के साथ साथ आकश की ऊँचाइयों को नापा तो सागर की गहराई तक को कदमों तले रौंदा। खेलों में तुम्हारे तिरंगे को विदेशों तक में लहराने दिया तो विज्ञान के बूते पर संसार को नतमस्तक कराया। अंतरिक्ष रहा हो या परिवहन; खेल रहा हो शिक्षा; विज्ञान रहा हो या तकनीक; चिकित्सा हो या फिर व्यापार; राजनीति हो या फिर समाजसेवा सभी में तुम्हारे लिए कुछ भी कर गुजरने वालों की कमी नहीं रही। तुम्हारे धवल वस्त्र को और भी रजतमय बनाने का प्रयास होता रहा। तुम्हारे सर्वोच्च पदों पर पहुँचने के लिए तुम्हारा आशीष हमेशा लिया। इन्हीं लोगों की सहायता से तुमने हमें क्या-क्या न दिया।

तुमने हमें क्या क्या न दिया पर हम शायद तुम्हारे इस कर्मठ सपूतों का न पहचान सके और न ही तुम्हारे दिए को पहचान सके; सँभाल सके। यत्र तत्र बिखरी रियासतों को एक कर गणतांत्रिक स्वरूप हमें तुमसे ही मिला। समता, बंधुत्व, समाजवाद से ओतप्रोत संविधान हमें तुमसे ही मिला है। आर्थिक तरक्की के रास्ते खोलते कारखाने, बड़े-बड़े बाँध हमें तुम्हीं ने दिये। सम्पूर्ण विश्व को अपनी बुद्धि से नतमस्तक करा देने वाले शिक्षण संस्थान तुम्हीं ने दिये। धरती से अंतरिक्ष तक की यात्रा को आसान बनाने की कला तुम्हीं ने सिखाई। विश्व को ज्ञान और देह का अद्भुत साम्य तुम्हीं ने सिखाया। संस्कृति की विविधता के मध्य भी एकता का अनुपालन करना तुम्हीं ने सिखाया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमें अपने से बाँधे रखा। कल-कल करती नदियाँ, धवल, रजत पर्वत, फलों से लदे बाग-बगीचे, खाद्यान्नों के हरे-भरे खेत हमें तुमने ही दिये।

हाय इसके बाद भी हम पता नहीं किस स्वार्थ में लिप्त रहे? तुम्हें ही मिटाने में लगे रहे, घाव पर घाव देने में लगे रहे। साम्प्रदायिक हम होते हैं पर भूल जाते हैं कि कष्ट तुम्हें होगा। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई कहकर तुम्हें बहलाते हैं पर मौका पड़ने पर इन्हें कत्ल करने से भी नहीं चूकते हैं। भारतीयता हमारा धर्म होना चाहिए किन्तु हम मूर्तियों, इमारतों को अपना धर्म बताते हैं। जात-पात, क्षेत्र में बाँटकर हम स्वयं को महान साबित करते हैं।

ओ मेरे देश, तुम्हें क्या क्या बतायें, सब तो तुम्हें मालूम है। तुम्हारी आँखें बन्द नहीं हैं और न ही तुम उन्हें बन्द किये हो बस हम ही उनसे बहते आँसू, रिसता लहू नहीं देख पा रहे हैं। दुःख हमने तुम्हें बहुत दिये हैं पर तुमने तो हमें सुख ही सुख दिये हैं। हमें माफ कर दो कि हम तुम्हारे सच्चे सपूत न बन सके। क्षमा कर दो हमें कि हम तुमसे सुखों की चाह रखते रहे और तुम्हें कोई सुख न दे सके। क्षमा कर दो उन्हें भी जो तुम्हारे विकास के लिए, तुम्हें सुख देने के लिए चुन-चुन कर प्रदेश-प्रदेश में और केन्द्र में आते रहे। वे भी तुम्हारा नहीं अपना ही विकास करते रहे। उनके साथ साथ हमें भी माफ कर दो क्योंकि उन्हें हम ही वहाँ पहुँचाते रहे। माफ कर दो उन्हें भी जो नैतिकता, संस्कार, सिद्धांतों के स्थान पर तुम्हारे विकास के लिए अस्त्र-शस्त्र, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, जात-पात को प्रमुख मानते रहे।

हम समझ सकते हैं कि तुम्हें चोट बहुत अधिक पहुँची होगी। हम मानते हैं कि तुम्हें मर्माहत करने में हम पीछे नहीं रहे। हम यह स्वीकार करते हैं कि तुम्हारे बहते हुए लहू के लिए हम ही जिम्मेवार हैं पर तुम्हारे बेटे-बेटी होने के कारण हम तुमसे ही क्षमा की उम्मीद कर सकते हैं। तुम्हें यह पत्र इसी कारण से लिख रहे हैं कि हम कहीं न कहीं अपनी गलती स्वीकार कर प्रायश्चित करना चाहते हैं। तुम्हारे सच्चे सपूतों का अनुसरण कर तुम्हारे लिए कुछ करना चाहते हैं।

मेरे देश क्या तुम हमें हमारी गलतियों के लिए माफ कर सकोगे? यही एक सवाल है जो मन को व्यथित कर रहा है और इस पत्र का कारक है। आशा है कि तुम हमेशा की तरह हमें क्षमा कर अपनी पावन गोद में शरण दोगे, अपने प्यार भरे आँचल की शीतल छाँव दोगे, अपनी विराट विरासत का हमें भी अंग बनने का एक और अवसर प्रदान करोगे।
तुम्हारा बेटा
[डा. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर]
*-*-*
बिना भूमिका की यह चिट्ठी खुद में  एक मुक़म्मल सा दस्तावेज है जिसके बारे में मैं इशारों से कोई बात नहीं करना चाहता था...अब आपने इस "एक चिट्ठी देश के नाम" को पढ़ लिया है तो लिख दीजिए बेझिझक अपनी बात!
एक जलते हुए मग़र हवाओं और तूफानों से बुझते हुए दीप को कई जलाए रखने के लिए एक हाथ से बढ़कर कई हाथ मिल जाएँ तो यकीनन रौशनी थमी रहेगी और दीप जलता रहेगा, आंधी-तूफानों को लौट जाना होगा! थम जाना होगा! [उल्टा तीर]
*-*-*  
 लेखक का परिचय-
१९७३ में उत्तर प्रदेश के नगर उरई में जन्मे डा. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने लेखन की शुरुआत १९८२-८३ में एक कविता (प्रकाशित) होने के साथ की और अभी तक लेखन कार्य में सक्रिय हैं. सेंगर जी के हिन्दी भाषा के प्रति विशेष लगाव ने विज्ञान स्नातक होने के बाद भी हिन्दी साहित्य से परास्नातक और हिन्दी साहित्य में ही पी-एच0डी0 डिग्री प्राप्त की। लेखन के साथ-साथ पत्रिकारिता में भी हस्तक्षेप रखने वाले कुमारेन्द्र सिंह सेंगर की रचनाओं का प्रकाशन देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में होता रहता है. रचनाओं में विशेष रूप से कविता, ग़ज़ल, कहानी, लघुकथा, आलेख प्रिय हैं। अभी तक एक कविता संग्रह (हर शब्द कुछ कहता है), एक कहानी संग्रह (अधूरे सफर का सच), शोध संग्रह (वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यासों में सौन्दर्य बोध) सहित कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है।

युवा आलोचक, सम्पादक श्री, हिन्दी सेवी, युवा कहानीकार का सम्मान प्राप्त डा0 सेंगर सामाजिक संस्था ‘दीपशिखा’, शोध संस्था ‘समाज अध्ययन केन्द्र’ तथा ‘पी-एच0 डी0 होल्डर्स एसोसिएशन’ के साथ-साथ जन-सूचना अधिकार का राष्ट्रीय अभियान का संचालन व सम्प्रति एक साहित्यिक पत्रिका ‘स्पंदन’ का सम्पादन कार्य कर रहे हैं। एक शोध-पत्रिका का भी सम्पादन किया जा रहा है।  सेंगर जी ने इंटरनेट पर लेखन की शुरुआत ब्लाग के माध्यम से की। अपने ब्लाग के अतिरिक्त कई अन्य ब्लाग की सदस्यता लेकर वहाँ भी लेखन करते हुए शीघ्र ही एक इंटरनेट पत्रिका का संचालन करने की योजना भी बना रहे हैं. 
लेखक का ब्लॉग: कुमारेन्द्र 

6 टिप्‍पणियां:

  1. कुमारेन्द्र जी,
    आपका लेखन पहली बार पढा,पोस्ट को थोडा आसान भाषा में लिखे तो यह ज्यादा असर करेगी.....

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  2. Excellent Idea.
    Good way to share the feelings.
    Imresive one for thinking a lot about the country.
    Congrats

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  3. डॉक्टर साहब आज़ादी की सालगिरह के एक माह पश्चात भी आप देश के नाम खत लिख रहे हैं मतलब कोई फाँस है जो दिल मे चुभी हुई है यह यथार्थ हम किससे कहें दुश्यंत के शब्दो मे " यहाँ तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते है..." बहर हाल इस चिठ्ठी पर पता ज़रूर लिखे ,मुझे नही पता यह देश कहाँ रहता है ।

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  4. एक संवेदनशील नागरिक की पीडा की प्रभावी अभिव्यक्ति ,बधाई

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  5. I feel that I have not played my role properly

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  6. धन्यवाद कुमारेन्द्र जी जो इस बात को सामने रखा । कम या ज्यादा ये बातें समझ में बहुत सारे लोगों की आती हैं । जेहन में तो रहती हैं पर आपाधापी और भागदौड़ में दब जाती हैं । आपके ऐसे पत्र जैसे उद्दीपक से ये बातें सामने आने लगती हैं । ऐसे उद्दीपक जागने वालों को जगाए रखने के लिए बहुत आवश्यक हैं ।

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)