* उल्टा तीर लेखक/लेखिका अपने लेख-आलेख ['उल्टा तीर टोपिक ऑफ़ द मंथ'] पर सीधे पोस्ट के रूप में लिख प्रस्तुत करते रहें. **(चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक, ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिखें ) ***आपके विचार/लेख-आलेख/आंकड़े/कमेंट्स/ सिर्फ़ 'उल्टा तीर टोपिक ऑफ़ द मंथ' पर ही होने चाहिए. धन्यवाद.
**१ अप्रैल २०११ से एक नए विषय (उल्टा तीर शाही शादी 'शादी पर बहस')के साथ उल्टा तीर पर बहस जारी...जिसमें आपका योगदान अपेक्षित है.*[उल्टा तीर के रचनाकार पूरे महीने भर कृपया सिर्फ और सिर्फ जारी [बहस विषय] पर ही अपनी पोस्ट छापें.]*अगर आप उल्टा तीर से लेखक/लेखिका के रूप में जुड़ना चाहते हैं तो हमें मेल करें या फोन करें* ULTA TEER is one of the well-known Hindi debate blogs that raise the issues of our concerns to bring them on the horizon of truth for the betterment of ourselves and country. आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं! *आपका - अमित के सागर | ई-मेल: ultateer@gmail.com

गुरुवार, 29 मई 2008

सूत्रधार के सूत्र -बहस वही (३)

मुझे लगता है पहली ही पोस्ट ने नर और नारी दोनों को "उल्टा तीर" ने भेद लिया है. तीर वही जो घायल कर दे... की तर्ज़ पर पुरुषों के बीच खामोशी का ज़लज़लेसार संगीत बज उठा है तो वहीं स्त्रियाँ तिलमिला गयीं हैं, इस घोर कड़वी (उन्हें लगता है शायद) वाणी से-कि या क्या कह दिया है लिख दिया है? तो वहीं कुछ लेखिकाएँ वास्तव में हल की ओर रुख करने हेतु अपने विचारों को व्यक्त कर रही हैं. जिससे स्पष्ट होता है कि नारी को वास्तव में आरक्षण, आजादी, परिवार इत्यादी मसलों के लिए उचित व अनुचित क्या लग रहा है ...वो कह रही हैं...मगर पुरुष न तो बोल ही रहा है और न सुन ही रहा है...बस देख रहा है...शायद यही कि "उल्टा तीर" पर इक़ बालक का ये विषय-बहस में कोई सार्थकता है कि नहीं और फिर इसका निष्कर्ष वन टू वन टू ही होगा या फिर बंद कर दिया जायेगा या कुछ निकल कर भी आएगा। जिसके उल्टे तीरों ने सचमुच इक़ बारगी तो सभी को घायल कर रखा है, मनो या न मनो की तर्ज़ पर। इसीलिए न आह! की आवाज़ होती है न थाह के कदम मिल रहे हैं।

"क्या नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है?" पर पिछले कई दिनों से चुप्पी छाई हुई है। लोग आते-जाते हैं, देखते हैं "हाले-वार्ता" अब क्या है? और चले जाते हैं...यूँ तो उन्हें गालियाँ देने तक की जरुरत नहीं लगती...तो इसका मर्म वो क्या खाक समझेंगे?।

इस बहस के संबंध में २-४ जगह और भी लिखा गया है, जो दर्शाता है कि इसे अपना ही मुद्दा समझ; उचित -अनुचित के भले के लिए संवेदनाएं तो निकल रही हैं...लेकिन थोडी दूर चलते ही न भाव का पता चलता है न निष्कर्ष की ओर कोई कदम बढता है। ये वो कदम है जो राजनीती व कानूनों के नक्शे-कदम पर ही चलना सीख पायेंगे, इन्हें जबरन बेल की तरह हांका जायेगा तब ये न चाहकर भी इस राह पे चलते जायेंगे। यूँ तो इस बहस का इसका कतरा-कतरा हममें ही डूबा है...मगर हम खुदको इससे बचाकर कोई सीधा तीर चलाने में कामयाब हो रहे हैं...जो शायद भलाई के रास्ते प्रदान करता हो, मगर ये बचकाना ही है., ये महज़ दुबकने की प्रक्रिया है, जो बिना धमाकों के आंसू तक नहीं लातीमानवीय भलाई के लिए बहस आज समाज की इक़ बड़ी ज़रूरत है।

कुछ लोगों को तो वास्तव में "बहस" है क्या और क्यों इस बात का भी इल्म नहीं लगता! मगर वो लिख रहे हैं कि कुछ लोग (स्त्री-पुरूष) नारी को लेके न जाने कौन सी राजनीति पढ़-पढा रहे हैं...नारियों के खिलाफ जा रहे हैं...(इकदम नकारने वाली बेहूदगी;-बुरा बेशक लगे...और अगर यूँ भी हो तो मैं जानता हूँ की ब्लड प्रेसर का स्तर बढेगा...पर उम्मीद मत करना कि मैं वन टू वन करूंगा...और आप अपना गुबार मुझ पर उतार कर हल्का महसूस करोगे...चूँकि अगर ये ध्येय इस बहस का होता तो अब तक न जाने क्या होता, हाँ, मैं शुक्रगुजार रहूंगा...आप सबका...आप गालियाँ दोगे तब भी...और अपनी जिम्मेदारी की बाबत कुछ कहोगे तब भी!!

कुछ लोग शर्मशार हैं...बस चुपचाप देख रहे हैं...देखो आगे-आगे होता है क्या? हाँ, शायद अब तक बहस का ध्येय ही समझ नहीं आया हो लोगों को? या फिर जानबूझ के अनजान बन रहे हों? तो बहुतियात की ये भी होशियारी है कि मैं कल मोस्ट टॉप ब्लोग्गर न बन जाऊं?

अंततः मुझे अपने मित्र "करमबीर पंवार" की इक़ बात याद आती है जोकि जब हम इसी बहस को लेके चर्चा कर रहे थे तब उन्होने कहा था " सागर, संवेदनहीन समाज में संवेदना आती ही नहीं है! तो क्या ये अब मान लिया जाए? इस ताने-बाने को यूँ ही छोड़ दिया जाए? "

*अमित के. सागर
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अपनी राय प्रतिक्रियाएँ भेजते रहिये क्योंकि बहस अभी जारी है मेरे दोस्त...
जो भी लगे बस लिख दीजिये !!
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शुक्रवार, 23 मई 2008

बहस के पूरक प्रश्न : ज़रा ये भी सोचिये ? बहस वही (२)










जरा ये भी सोचिये...

बहस के पूरक प्रश्न...

...
पुलिस ने आरुषी हेमराज हत्या का परदा फाश कर दिया आरोपी और कोई नही बल्कि आरुषी के पिता ने ही उसकी हत्या की आरुषी की मौत बीते पूरे हफ्ते मीडिया की सबसे अहम् खबर रही
टेलिविज़न की ख़बरों मे पिछले हफ्ते केवल आरुषी मर्डर ही मुख्य हेडलाइन रहा और तो और इस ख़बर के कारण जयपुर ब्लास्ट जैसी अहम् ख़बर भी नेपथ्य में चली गयी इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने अपनी पूरी ऊर्जा और ताक़त संसाधन बस नॉएडा के इस डबल मर्डर पर ही झोंक दी हर घर मे हर गली में जेम्स बोंड /गोपीचंद जासूस पैदा हो गए ? ये मर्डर लोगो की पे चढ़ गया, कुछ मुद्दे दब गए, कयासों का बाज़ार गर्म हो गया लोग इस पहेली को अपने अपने ढंग से सुलझाने लगे हमारे सवाल इस मर्डर की गुत्थी से भी बड़े हैं "क्या बड़े शहरों मे मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ने लगी है ? " परिवार टूटने और बिखरने लगे हैं ? रिश्तो के मायने बदलने लगे हैं? नारीवाद पर हमारी बहस अब अभी भी जारी है...इस मर्डर केस ने एक तरह से हमारे उस दावे को मजबूती दे दी है जिसमे हमारे एक पाठक ने ये कहा था कि वक्त गया है कि अब टूटते बिखरते परिवारों को सँभालने के लिए महिलाये घर के भीतर कर परिवारों को सहारा दे कुदरती तौर से महिलाएं प्रेम शक्ती की अद्भुत कृति हैं महिलाएं परिवार के दायित्व को समझे तभी जाकर भविष्य में इस तरह की वारदात नही घटेंगी आज बड़े शहरों मे माँ और बाप काम पे चले जाते हैं बच्चे घर मे दोनों के प्यार के लिए तरसते रह जातें हैं नई पीढ़ी माँ बाप के प्रेम से वंचित है आरुषी का केस इसलिए (खास तौर से समूची नारी जाति के लिए एक आई ओपनर है यही घड़ी है नारी समाज अब समाज राष्ट्र भावी पीढ़ी के हित में घरो की ओर अपना रुख कर ले कहीं ऐसा हो कोई आरुषी फिर शिकार बन जाए ..ज़रा सोचिये !!

अपनी राय प्रतिक्रियाएँ भेजते रहिये क्योंकि बहस अभी जारी है मेरे दोस्त...
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ये तो हुआ बहस का एक पहलू जो हमे एक पाठक ने भेजा है। इस राय पर अपने विचार दीजिये क्योंकि बहस अभी बाकी है मेरे दोस्त !! "उल्टा तीर" पढ़ते रहिये.

**उल्टा तीर मे प्रकाशित किसी भी विचार के लिए ब्लॉग मोडरेटर की कोई जिम्मेवारी नही है। पाठक के अनुरोध पर उनका नाम गोपनीय रखा गया है
(उल्टा तीर:तीर वही जो घायल कर दे )

शनिवार, 17 मई 2008

"नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है?" (१)

इये शामिल हो जाइये अब तक की सबसे बड़ी बह"नारीवाद का विचार मक्कार पुरुषों की देन है? " में ! नारीवाद के रहनुमाओं को खुली चुनौती... नारीवाद पर अब तक सबसे उत्तेजक बहस "उल्टा तीर" पर !!

ये बहस आख़िर क्यों ?


सम्प्रति महिला समाज संसद के भीतर और बाहर महिला आरक्षण के मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया जा रहा है। कुछ पुरुष तो बाकायदा नारीवादी हो गए हैं. समाज में येसे पुरुषों की कमी नहीं जो मर्द होकर भी धीरे-धीरे स्त्री होते जा रहे हैं. दरअसल, अब ये वक़्त आ गया है कि माता तुल्य इन देवियों से करबद्ध प्रार्थना कि जाए कि हे! देवियों अब आप घर में बेठो, घर की चार दीवारियों को आपकी जरुरत है. महिलाओं के घर से बाहर निकलने की वजह से परिवार टूट रहे हैं? अपराध बढ़ रहे हैं? नई नसलें माँ के प्यार को तरस रही हैं! समाज इक़ बड़े विघटन की कगार पर खडा है. चौका-चुल्हा, घर को सँवारने का काम तो लगता है नारी भूल ही गई है. और तो और महिलायों के आगे आजाने से देश में बेरोजगारी भी बड़ रही है. पुरुष घर पर निठल्ले होते जा रहे हीं. उनकी उर्जा विध्वंस का कारण बन रही है.

परिवार जैसी सस्थाओं से नयी उम्र की महिलाओं का भरोसा उठने लगा है। समाज में एक अलग तरह की परिपाटी बनती जा रही है कामकाजी महिलाएं बाह्य परिवेश को तो सवांर रही हैं लेकिन घर मानो उनकी वजह से टूटने लगे हैं। पश्चिम का ये अंधानुकरण न जाने हमारे समाज और राष्ट्र को किस ओर ले जाएगा। गंभीरता से सोचने वाली बात है !!

समाज के चन्द निठल्ले पुरूष जो वाकई में कुछ भी काम-काज नही करना चाहतें हैं वो ज़ोर-शोर से नारीवाद के आन्दोलन को हवा दे रहे हैं? साथ ही मेरी उन कथित महिलाओं से भी विनती है जिन्होंने पचास की उम्र पार कर ली है, समूची दुनिया को देख लिया है, वे नारीवाद के बहाने कम से कम नयी उम्र की महिलाओं को बहलाना छोड़ दें। उनका वैवाहिक जीवन बसने दें, उनको घर-संसार को सजाने का अवसर दें। अगर घर मज़बूत होंगे तो यकीनन इसका श्रेय समाज केवल और केवल नारियों को ही देगा। हमारे मुल्क में नारियों को भगवान् का दर्जा दिया गया है। ताने-बाने को ऐसा ही रहने दें?

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ये तो हुआ बहस का एक पहलू जो हमे एक पाठक ने भेजा है। इस राय पर अपने विचार दीजिये क्योंकि बहस अभी बाकी है मेरे दोस्त !! "उल्टा तीर" पढ़ते रहिये.

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उल्टा तीर मे प्रकाशित किसी भी विचार के लिए ब्लॉग मोडरेटर की कोई जिम्मेवारी नही है। पाठक के अनुरोध पर उनका नाम गोपनीय रखा गया है
(उल्टा तीर:तीर वही जो घायल कर दे )

सोमवार, 12 मई 2008

उल्टा तीर भूमिका

"ल्टा तीर" ब्लॉग शुरू करते हुए मैं तरह तरह के विचारो से दो चार हो रहा था। शायद इसलिए भी इसकी भूमिकाको लिखने में मुझे एक लंबा अरसा लगा। अब जबकि आज "उल्टा तीर" की पहली पोस्ट आपके सामने आ रही है, तो मैं पहले ही स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि " उल्टा तीर" उत्तेजक विचारों का मंच है, जहाँ आप खुलकर अपनेविचारों को रख सकते है।
देश दुनिया राजनीति या अपने बारे मे या फ़िर ब्लोग्गिंग जगत के बारे में जो भी आपके विचार हैं, इस ब्लॉग मेंउनका तहे-दिल से इस्तकबाल किया जाएगा। आप अपने विचारों को (कविता, शेर-औ"शायरी, ग़ज़ल, लेख-आलेख आदि) किसी भी अंदाज़ में लिख सकते हैं. खुल कर लिखिए, खुलकर कहिये; क्योंकि ये आपका अपनामंच है। भाषा की कोई बाध्यता नही है, किसी भी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति कीजिए. सम्प्रति, ब्लोग्गिंगजगत मे आए दिन कुकुरमुत्ते की तरह ब्लॉग आ रहे हैं, ये ब्लॉग उन पर भी अपनी पैनी नज़र रखेगा. आपसे भीयही अपेक्षा है कि आप भी सजग रहें! मुझे दुष्यंत याद आ रहे हैं... " हाथों मे अंगार लिए सोचता हूँ, कोई मुझे अंगार की तासीर बताये"

साथ ही मैं आभारी हूँ अपने मित्रों; सुनील कुमार अलेडिया (संपादक अभी इंडिया), करमवीर पवार (सहायकसम्पादक अभी इंडिया,...), रामकृष्ण डोंगरे (अमर उजाला क्षेत्रीय डेस्क), अवनीश शुक्ला (समाज विद/शिक्षाविद) प्रभात पाण्डेय (आई बी एन ७), प्रेम परिहार (दिल्ली दूरदर्शन-वीडियो जर्नलिस्ट, कवी) व मेरे परम स्नेही मित्रभाई अमिताभ फौजदार (ब्लॉगर/स्वतंत्र लेखक/...) का, जिनका मार्गदर्शन और स्नेह मुझे हमेशा मिलता रहताहै। मैं दिल से आभारी हूँ उन सभी का जिनका जिक्र यहाँ नही कर पा रहा हूँ...लेकिन वो ये बात अच्छी तरह जानतेहैं। साथ ही आप सभी का भी आभारी हूँ...ब्लॉग पे आते रहिये...अपना सक्रिय योगदान दीजिये।

इसी आशा के साथ आपका
*अमित के. सागर
"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)