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मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

ज़ख्म ताज़ा रखो, कुछ कर गुज़रो

घटना चाहे मुंबई की हो या फ़िर दिल्ली की या देश के किसी भी कौने की, लोग ४ दिन के बाद आया-गया कर देते हैं या फ़िर कर देंगे. ख़ुद सरकार भी. आख़िर क्यों हम अपने इस खोखले तंत्र को और अपनी झूंठी शान को कायम रखते हैं हमेशा...क्यों तभी भड़कते हैं जब कोई अमानवीय हादसा हो ही जाता है. क्यों लोग इस कदर अपने-अपने में खो गए हैं कि उनके दिलों में दूसरों का दर्द महसूस करने की शक्ती नहीं रही. क्या हम तभी बौखलाते हैं जब हमारा कोई अपना या फ़िर जानकार या रिश्तेदार उस हादसे का शिकार होता है. और उससे पहले हमारे लिए सब कुछ इक तमाशे की तरह होता है। मैं मानता हूँ कि अगर हमें बेहतर आज और कल चाहिए, तो दुनिया के हर एक नागरिक के साथ साथ जो इस देश को चला रहे हैं, जिनके कन्धों पर आम आदमी की हिफाज़त का बोझ है...सभी को ईमानदार रहना होगा हर एक काम में. बेमानी जहाँ भी होगी, वहाँ के हालत बद से बदतर ही रहेंगे हमेशा ही. मुझे ये बात कहने में कोई शर्मिंदगी नहीं कि हमारे तंत्र की जड़ें ही बेकार हैं, जिन्हें या तो नए सिरे से उगाया जाए या फ़िर इनकी ऐसी मरम्मत की जाए कि हमेशा के लिए लोहा बन जाएँ अमानवीय क्रतों के ख़िलाफ़. हर आदमी को निस्वार्थ होना होगा, यह एक बड़ी शर्त होनी चाहिए स्वंय आदमी के लिए. यहाँ बहुत कुछ सिर्फ़ इसलिए बुरा घटित होता ही रहता है चूँकि उसमें किसी न किसी का स्वार्थ छुपा रहता है. इस तरह मुमकिन नहीं कि हम इक स्वच्छ समाज और देश की बात करें. सब ढोंगी पाखंडियों की भाती क्यों हो चले हैं?...इक पत्रकार इस बात में खुश रहता है कि वो सबसे पहले पहुंचकर घटनाक्रम को कैमरे में उतार रहा है, इक-इक बात को बयां कर रहा है. इसके लिए उसे बड़ा इनाम भी मिलेगा और साथ ही उसका नाम भी बढेगा. वो पत्रकार ये नहीं करता कि जितना सम्भव हो सके उसमें उस घटना को शांत करे, उसे होने से बचाए, अपना योगदान इस बात के लिए दे कि वो इक इंसान है, और जिसका भी जिस भी प्रकरण में लहू बह रहा है वही लहू उसके ख़ुद के अन्दर भी है. एक पुलिस वाला सिर्फ़ कुछ मामलों को इसलिए दवा देता है चूँकि उसे रिश्वत में कुछेक हज़ार रुपये मिल जाते हैं. एक secuirty गार्ड किसी को भी अन्दर इस लिए जाने देता है क्योंकि उसे टिप में ५० या १०० रुपये मिल जाते हैं. पेट की भूंख इतनी क्यों है...कि वो कैसे भी बुझती ही नहीं. दुनिया की बड़ी बड़ी खुफिया एजेंसियां दुनिया के विचित्र और बड़े-बड़े केसों को सिर्फ़ इसलिए फाइलों में ही अंततः बिना अपराधी को सजा दिए इसलिए बंद कर देतीं हैं चूँकि उन्हें करोड़ों में धन-राशि मिल जाती है. और आम जनता कभी उससे सवाल-जवाब करने की हिमाकत नहीं करती. शेष बचे अमीर, उनके पास समय नहीं। वाकी के बचे हुए लोगों के बीच निश्चित ही यह धन राशि बंटती हो (jo baudhik paksh bhi hai), तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। और राजनेताओं की तो बात ही निराली है. इनको सबसे पहले अपनी जीत प्यारी है. राजनीति में ये मौतों पर भी राजनीति करने से नहीं चूकते वाकी का हाल क्या होगा...कहना ज़रूरी नहीं. यकीनन....लोगों का लोगों से यकीन गायब है. क्या सब इसी तरह चलता रहेगा...इसकी हम उम्मीद न करें...मगर किस और दूसरी खोखली बिना पर...और कब तक?

मुंबई में जो कुछ भी बुरा घटित हुआ है. मुमकिन है सिर्फ़ एक तारीख बन जाना. मगर अब भी जल रहे हैं दिल और आंखों में नाच रहे हैं मौतों के मंज़र और तबाहियों की तस्वीरें अब भी हैं आंखों में तो वक़्त है अभी कि आँसू पोंछ हम वो काम करें जिससे आगामी हो सकने वाली इस तरह की घटनाओं पर इस बात का यकीन फरमा सकें कि अब ये मुमकिन नहीं चूँकि हम ईमानदार हैं एक-दूसरे के लिए. हम इतने अपाहिज तो नहीं कि ये मातम कुछ-कुछ महीनों बाद अक्सर ही देखते रहें. अब हमें घटना का खंडन नहीं करना चाहिए बल्कि अमल कर अपने दुश्मन से लड़ना चाहिए. बहुत हो गया. यही वक़्त सही है (जैसा कि हर घटना के बाद होता है...पर वो भी जाया ही होके रह जाता है) जब हम सब संगठित होकर कर दें आगाज़ क्रान्ति का...यही वक़्त है जब हम अपने हरे ज़ख्मों के साथ दुगनी शक्ती के साथ लड़ सकते हैं दुशमनों के ख़िलाफ़...आतंकवाद के खिलाफ़. और अगर अभी नहीं तो शायद कभी नहीं!

"संगठित हों, बुराई के ख़िलाफ़ ताकत बनें. एक-दूसरे के साथ हों, महफूज़ हर कदम चलें."
जय हिंद
अमित के. सागर
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सभी सुधी पाठकों व लेखकों सूचित किया जाता है कि जनवरी माह में "उल्टा तीर पत्रिका" आंतंकवाद पर एक विशेष "वेब पत्रिका" प्रकाशित करने जा रहा है. आप सभी से अनुरोध है कृपया अपने लेख-आलेख, गीत, कवितायें, ग़ज़ल, शायरी इत्यादि 25 दिसम्बर 08 तक "उल्टा तीर" पर अपनी एक तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ मेल करें. आपका अनमोल सहयोग व मार्गदर्शन अपेक्षित है. आओ हम सभी मिलकर आतंकवाद से लड़ें. आभार; "उल्टा तीर" E-Mail: ultateer@gmail.com, ocean4love@gmail.com


8 टिप्‍पणियां:

  1. "ज़ख्म ताज़ा रखो, कुछ कर गुज़रो"
    ये जख्म अब तलक तो नासूर बन चुके है अमित जी ताजा रखने की तो शायद जरूरत ही नही उन कुछ बड़े लोगो की जिनकी तारीफ आपने की शायद याद तो वो रखेंगे क्युकी उन्होंने पहली बार आज़ादी के बाद ये मंजर देखा है हम तो मुंबई धमाको के बाद से लगातार साल भर भी नही शोये होंगे की फ़िर कोई नया धमाका हमे नींद आने ही नही देता मजबूर है इस कदर की घर से बहार निकलते ही बच्चो का या अपने लिए लम्बी उम्र की दुआ उस रब से करते है और रोज़ी-रोटी कमाने की चिंता करते है जिस दिन ये चिंता भी नही रही तो भी मुमकिन नही की हम उन दरिंदो से लड़ पाये क्युकी जब तक तो इस समाज की तरह हम भी नामर्दों की जमात मई शामिल हो चुके होंगे

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  2. ठीक कहा भाई अमित,

    खण्डनों का समय नहीं है अब आक्रमण का समय है हमें उग्रवाद और उग्रवादियों पर आक्रमण करना चाहिए। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।

    मुझे लगता है कि आपने अपने लेख में नेता, अमीर, गरीब और सभी वर्गों को तो जागने के लिये कहा लेकिन एक वर्ग को छोड दिया जो एक सशक्त वर्ग है और वही एक वर्ग है जो अगर एकजुट हो जाए तो न भ्रष्ट नेता रहेंगे और न गलत नुमाईंदे चुनकर आएंगे और न ही किसी की हिम्मत होगी कि हमारे मुल्क के चैनो अमन में ख़लल डाले। वो वर्ग है मतदाता!

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  3. kab tak jakhmo pe marham lagaoge
    chand deeno ke baad phir so jaoge
    yhi rit hai bhai amit jee sundar likha apne achhach laga ...

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  4. अमित जी, दिक्कत यही है कि आदमी सहानुभूति तो जताता है स्वानुभूति का प्रयास नहीं करता, यदि सिर्फ इतना प्रयास कर ले कि अगर सामने वाले की जगह मैं होता तो मुझे कैसा लगता, सारी समस्यायें हल हो जायेंगी. लेकिन हम भारतीयों ने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया और न लेना चाहते हैं. बुरा मानने की बात नहीं दर-असल हम लोग जाहिल, निकम्मे और नाकारा हैं, अपनी स्वार्थसिद्धि के अतिरिक्त कुछ करने के लिये हाथ पैर ही नहीं हिलते. याददाश्त तो कमजोर है ही, जनता के अरबों रुपये पीने वाले लोगों को यहां के लोग चुन लेते हैं, इस मानसिक दिवालियेपन को आप क्या नाम देंगे.

    amit jI, aap apni patrika ke liye agar mere blog se kuchh chahen to aap khushi se le sakte hain.

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  5. बहुत समयानुकूल विचार है आपके काश लोग (आका लोग ) आपकी भावनाएं समझ पाते

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  6. आतंकवाद का मुकाबला संगठित हो कर ही किया जा सकता है.... कुछ दिन रोष दिखाने बाद भुला देना, हमारी गलती ही है|... आपके विचारों से मै सहमत हूँ!

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  7. ज़ख्म ताज़ा रखो, कुछ कर गुज़रो"

    aaj is soch ki jarurat hum jaishe yowao ko jyada hai....shirshak acha laga....likte rahiye..

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आप सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप अपने कीमती वक़्त से कुछ समय निकालकर समाज व देश के विषयों पर अपनी अमूल्य राय दे रहे हैं. इस यकीन के साथ कि आपका बोलना/आपका लिखना/आपकी सहभागिता/आपका संघर्ष एक न एक दिन सार्थक होगा. ऐसी ही उम्मीद मुझे है.
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बने रहिये हर अभियान के साथ- सीधे तौर से न सही मगर जुड़ी है आपसे ही हर एक बात.
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आप सभी लोगों को मैं एक मंच पर एकत्रित होने का तहे-दिल से आमंत्रण देता हूँ...आइये हाथ मिलाएँ, लोक हितों की एक नई ताकत बनाएं!
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आभार
[उल्टा तीर] के लिए
[अमित के सागर]

"एक चिट्ठी देश के नाम" (हास्य-वयंग्य) ***बहस के पूरक प्रश्न: समाधान मिलके खोजे **विश्व हिन्दी दिवस पर बहस व दिनकर पत्रिका १५ अगस्त 8th march अखबार आओ आतंकवाद से लड़ें आओ समाधान खोजें आतंकवाद आतंकवाद को मिटायें.. आपका मत आम चुनाव. मुद्दे इक़ चिट्ठी देश के नाम इन्साफ इस बार बहस नही उल्टा तीर उल्टा तीर की वापसी एक चिट्ठी देश के नाम एक विचार.... कविता कानून घरेलू हिंसा घरेलू हिंसा के कारण चुनाव चुनावी रणनीती ज़ख्म ताजा रखो मौत के मंजरों के जनसत्ता जागरूरकता जिन्दगी या मौत? तकनीकी तबाही दशहरा धर्म संगठनों का ज़हर नेता पत्नी पीड़ित पत्रिकारिता पुरुष प्रासंगिकता प्रियंका की चिट्ठी फ्रेंडस विद बेनेफिट्स बहस बुजुर्गों की दिशा व दशा ब्लोगर्स मसले और कानून मानसिकता मुंबई का दर्दनाक आतंकी हमला युवा राम रावण रिश्ता व्यापार शादी शादी से पहले श्रंद्धांजलि श्री प्रभाष जोशी संस्कृति समलैंगिक साक्षरता सुमन लोकसंघर्ष सोनी हसोणी की चिट्ठी amit k sagar arrange marriage baby tube before marriage bharti Binny Binny Sharma boy chhindwada dance artist dating debate debate on marriage DGP dharm ya jaati Domestic Violence Debate-2- dongre ke 7 fere festival Friends With Benefits friendship FWB ghazal girls http://poetryofamitksagar.blogspot.com/ my poems indian marriage law life or death love marriage mahila aarakshan man marriage marriage in india my birth day new blog poetry of amit k sagar police reality reality of dance shows reasons of domestic violence returning of ULTATEER rocky's fashion studio ruchika girhotra case rules sex SHADI PAR BAHAS shadi par sawal shobha dey society spouce stories sunita sharma tenis thoughts tips truth behind the screen ulta teer ultateer village why should I marry? main shadi kyon karun women

[बहस जारी है...]

१. नारीवाद २. समलैंगिकता ३. क़ानून (LAW) ४. आज़ादी बड़ी बहस है? (FREEDOM) ५. हिन्दी भाषा (HINDI) ६. धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद . बहस नहीं विचार कीजिये "आतंकवाद मिटाएँ " . आम चुनाव और राजनीति (ELECTION & POLITICS) ९. एक चिट्ठी देश के नाम १०. फ्रेंड्स विद बेनेफिट्स (FRIENDS WITH BENEFITS) ११. घरेलू हिंसा (DOMESTIC VIOLENCE) १२. ...क्या जरूरी है शादी से पहले? १३. उल्टा तीर शाही शादी (शादी पर बहस- Debate on Marriage)